कांवड़ यात्रा: मुजफ्फरनगर पुलिस के फरमान से मचा हड़कंप
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

यूपी के मुजफ्फरनगर जिले की पुलिस ने खाद्य सामग्री बेचने वालों से कहा है कि वो अपनी दुकानों, ढाबों, ठेलों और होटलों पर साफ-साफ अपना नाम लिखकर रखें ताकि खाने वाले को पता रहे कि वो किसकी दुकान पर खा रहे हैं.हिंदू तीर्थयात्री हर साल सावन के महीने में कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं. इस दौरान गंगा नदी से पानी लेने के लिए यात्री पैदल चलकर उत्तराखंड जाते हैं और फिर वहां से गंगा जल लाकर शिव मंदिरों में चढ़ाते हैं. इस बार कांवड़ यात्रा आगामी 22 जुलाई से शुरू हो रही है. इस दौरान हरिद्वार से दिल्ली की ओर हजारों की संख्या में लोग कांवड़ लेकर आते हैं. इसी रास्ते पर मुजफ्फरनगर जिले का भी बड़ा हिस्सा पड़ता है. लेकिन मुजफ्फरनगर पुलिस के एक आदेश को लेकर काफी विवाद पैदा हो गया है.

मुजफ्फरनगर के पुलिस अधीक्षक अभिषेक सिंह ने कांवड़ यात्रा मार्ग के किनारे स्थित होटल, ढाबों और खाद्य सामग्री बेचने वाली अन्य दुकानों को अपने मालिकों और कर्मचारियों के नाम अपनी-अपनी दुकानों के बाहर लिखने के लिए कहा है. एसपी अभिषेक सिंह ने कहा कि राज्य सरकार ने ठेले वालों को भी इस आदेश का अनुपालन करने के लिए कहा है. उनके मुताबिक, ऐसा इसलिए कहा गया है ताकि ‘कांवड़ियों के बीच किसी तरह के भ्रम की स्थिति न हो और न ही इस वजह से कोई अप्रिय स्थिति उत्पन्न हो जिससे कि बाद में कानून-व्यवस्था में कोई बाधा पैदा हो.

क्यों बना आलोचना का विषय

इस आदेश की काफी आलोचना हो रही है लेकिन बताया जा रहा है कि इस आदेश के पीछे कुछ हिन्दू संगठनों की मांग थी जिसमें कहा गया था कि रास्ते में मुसलमानों की दुकानों से उन्हें खाने-पीने की चीजें लेनी पड़ती हैं जो कि वो नहीं लेना चाहते. इन संगठनों ने इससे पहले कई बार इस बात को लेकर हंगामा भी किया है कि मुस्लिम समाज के लोग हिन्दू देवी-देवताओं के नाम पर फल-जूस इत्यादि की दुकानें खोलते हैं और इस भ्रम में हिन्दू ग्राहक वहां चले जाते हैं.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस महीने की शुरुआत में मुजफ्फरनगर के बीजेपी विधायक कपिल देव अग्रवाल ने भी कहा था, "मुसलमानों को यात्रा के दौरान अपनी दुकानों का नाम हिंदू देवी-देवताओं के नाम पर नहीं रखना चाहिए क्योंकि जब कांवड़ियों को पता चलता है कि जिन दुकानों पर वे खाना खाते हैं वे मुस्लिमों द्वारा चलाई जाती हैं तो इस वजह से कई बार विवाद हो जाता है.”

मुजफ्फरनगर पुलिस के इस आदेश के बाद ही विवाद खड़ा हो गया और राजनीतिक दलों के अलावा अन्य लोगों ने भी इसकी आलोचना की. हैदराबाद के सांसद और एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इसकी तुलना दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद और नाजी जर्मनी में यहूदियों के खिलाफ किए जाने वाले भेदभाव से की. ओवैसी ने कहा कि ‘मुजफ्फरनगर पुलिस का यह आदेश संविधान के आर्टिकल 17 का उल्लंघन है क्योंकि ऐसा करके यूपी सरकार अस्पृश्यता को बढ़ावा दे रही है.'

वहीं कांग्रेस नेता पवन खेड़ा कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने मुजफ्फरनगर पुलिस के इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा, "सिर्फ राजनीतिक दलों को ही नहीं, बल्कि सभी लोगों और मीडिया को भी इस राज्य प्रायोजित कट्टरता के खिलाफ खड़ा होना चाहिए. हम भाजपा को देश को अंधकार युग में धकेलने की इजाजत नहीं दे सकते.”

पुलिस विभाग का क्या कहना है

सोशल मीडिया पर कई और लोगों ने भी इस कदम की आलोचना की है जबकि मुजफ्फरनगर पुलिस ने इस फैसले पर स्पष्टीकरण देते हुए इस बात से इनकार किया है कि उसके इस निर्देश का उद्देश्य धार्मिक आधार पर लोगों के साथ भेदभाव करने का है. पुलिस ने यह भी स्पष्ट किया है कि ऐसा पहले भी होता रहा है.

नोएडा में वरिष्ठ पत्रकार पंकज पाराशर भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि यह आदेश कोई पहली बार नहीं जारी हुआ है बल्कि पहले भी ऐसा होता रहा है. उनके मुताबिक, "पुलिस कप्तान ने जल्दबाजी या जोश में कह दिया. कायदे से उन्हें डीएम के साथ बैठकर संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस करके और लोगों को बैठाकर ये बात कहनी चाहिए थी. ऐसा करते तो कोई समस्या ही न होती. ऐसा पिछले दस-बारह साल से होता आया है. रास्ते में पड़ने वाले ज्यादातर दुकानदारों ने खुद से ही अपने नाम लिख रखे हैं. यहां तक कि रेहड़ी-पटरी और ठेले वालों ने भी खुद से ही अपने नाम लिख रखे हैं. आदेश तो बाद में आया है. और, ऐसा इसलिए है क्योंकि कोई छोटी-मोटी बात भी किसी बड़ी घटना की वजह बन सकती है. ये लोग इन समस्याओं का दंश झेल चुके हैं. और वो खुद कोई अप्रिय स्थिति नहीं पैदा होने देना चाहते.”

क्यों कम चुने जा रहे हैं मुसलमान सांसद

पंकज पाराशर बताते हैं कि इस पूरे रास्ते में तमाम ऐसे इलाके हैं जो मुस्लिम बहुल हैं लेकिन मुस्लिम समुदाय के लोग खुद ही शिविर लगाकर कांवड़ियों की सेवा करते हैं. इन शिविरों पर लोग बाकायदा अपने नाम के बोर्ड लगाकर बैठे रहते हैं ताकि लोगों को ये पता रहे कि शिविर मुसलमानों के हैं. पंकज पाराशर कहते हैं, "हजारों कांवड़िये इन शिविरों में रुकते हैं, आराम करते हैं और खाते-पीते हैं. लेकिन यह भी है कि तमाम कांवड़िये मुस्लिम दुकानों और इन शिविरों पर रुककर नहीं खाना-पीना चाहते. तो उनकी सुविधा के लिए ऐसा कहा जाता है ताकि उन्हें पता रहे कि वो जहां खा रहे हैं, वो दुकान किसकी है. इन वजहों से कई बार विवाद हो चुके हैं. तो पिछले कई साल से ऐसा होता आया है ताकि स्पष्टता रहे.”

नेताओं ने जताया माहौल खराब होने का डर

डीडब्ल्यू से बातचीत में सहारनपुर से कांग्रेस सांसद इमरान मसूद कहते हैं कि कांवड़ यात्रा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आस्था का मामला है, सभी लोग इसमें सहयोग करते हैं और बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. लेकिन उनका कहना है कि इस तरह के आदेशों के जरिए माहौल खराब करने की कोशिश की जा रही है. इमरान मसूद का कहना है कि ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए.

वहीं बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने भी मुजफ्फरनगर पुलिस के इस फरमान पर तंज कसा है और इसे अस्पृश्यता को बढ़ावा देने वाला कृत्य बताया है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (ट्विटर) पर उन्होंने लिखा है, "कुछ अति-उत्साही अधिकारियों के आदेश हड़बड़ी में गड़बड़ी वाली स्थिति पैदा करने वाले हैं. ये अस्पृश्यता की बीमारी को बढ़ावा दे सकते हैं. आस्था का सम्मान होना ही चाहिए. मगर अस्पृश्यता का संरक्षण नहीं होना चाहिए.”

कांवड़ यात्रियों के लिए कैसी है प्रशासन की व्यवस्था

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कांवड़ियों की सुविधा के लिए कांवड़ यात्रा के रास्तों पर खुले में मांस की बिक्री और खरीद पर प्रतिबंध लगा दिया है. इसके अलावा सीएम योगी ने अधिकारियों को तीर्थयात्रा मार्गों पर हेल्प डेस्क स्थापित करने और ठंडा पानी, शिकंजी जैसी चीजों के वितरण की व्यवस्था सुनिश्चित करने के भी निर्देश दिए हैं. साथ ही अधिकारियों से कांवड़ियों पर पुष्प वर्षा का इंतजाम सुनिश्चित करने को भी कहा है.

वहीं यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सवाल किया है कि कुछ नाम तो ऐसे होते हैं कि उनसे हिन्दू-मुस्लिम का पता नहीं चलता, तो उन नामों का क्या होगा. वो लिखते हैं, "और जिसका नाम गुड्डू, मुन्ना, छोटू या फत्ते है, उसके नाम से क्या पता चलेगा? माननीय न्यायालय स्वत: संज्ञान ले और ऐसे प्रशासन के पीछे के शासन तक की मंशा की जांच करवाकर उचित दंडात्मक कार्रवाई करे. ऐसे आदेश सामाजिक अपराध हैं, जो सौहार्द के शांतिपूर्ण वातावरण को बिगाड़ना चाहते हैं'.”