वायु प्रदूषण नियंत्रण की कोशिशें लाने लगी रंग, 50 शहरों की आबोहवा में आई सुधार
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits : Pixabay)

नई दिल्ली : दूषित हवा के मामले में खतरनाक स्तर पर पहुंचे देश के 102 शहरों में वायु प्रदूषण नियंत्रण की कार्ययोजना का शुरुआती असर दिखने लगा है. इस साल जनवरी में शुरु किये गये राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत 10 लाख से अधिक आबादी वाले 50 शहरों में हवा को दूषित बनाने वाले पार्टिकुलेट तत्वों (पीएम 10 और पीएम 2.5), सल्फर डाई ऑक्साइड (एसओ2) और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड (एनओ2) के स्तर में गिरावट दर्ज की गयी है.

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इन परिणामों के आधार पर हवा में घुले दूषित तत्वों के अस्थिर स्तर वाले 28 महानगरों (जिनकी आबादी दस लाख से अधिक है) को प्राथमिकता दी है ताकि इन शहरों की तर्ज सभी 102 शहरों की हवा को 2024 तक वायु प्रदूषण नियंत्रण के मानकों के अनुरूप लाया जा सके.

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मंत्रालय द्वारा राज्यसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक सभी 50 शहरों में एसओ2 का स्तर हवा की गुणवत्ता के राष्ट्रीय मानकों के भीतर पाया गया, जबकि एनओ2 का स्तर 16 शहरों में घटा है, 17 शहरों में यह बढ़ा है, 16 शहरों में अस्थिर और एक शहर में यह स्थिर है. इसी प्रकार पीएम 10 का स्तर 14 शहरों में घटा, 14 शहरों में बढ़ा और 22 शहरों में यह घटता-बढ़ता रहा.

मंत्रालय को पीएम 2.5 के जिन 17 शहरों के आंकड़े प्राप्त हुये हैं, उनमें से आठ शहरों में इसका स्तर बढ़ा है जबकि चार शहरों में यह घटा और पांच शहरों में यह स्तर घटता-बढ़ता रहा है. उल्लेखनीय है कि एनसीएपी के तहत 102 शहरों के 170 स्थानों से हवा में दूषित तत्वों की रियल टाइम आधार पर निगरानी की जा रही है.

पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि वायु प्रदूषण से सर्वाधिक प्रभावित 15 राज्यों के 28 महानगरों में पांच शहर उत्तर प्रदेश (कानपुर, लखनऊ, आगरा, वाराणसी और इलाहाबाद) के हैं. वहीं, महाराष्ट्र के मुंबई, नवी मुंबई, नागपुर और पुणे इनमें शामिल हैं. औद्योगिक गतिविधियों की अधिकता वाले इन महानगरों में सूरत, ग्वालियर, बेंगलुरू, लुधियाना, पटियाला, कोलकाता, भिलाई और धनबाद सहित अन्य शहर शामिल हैं.

उन्होंने कहा कि एनसीएपी में शामिल 102 शहरों में से 80 शहरों के लिये समयबद्ध कार्ययोजना बना ली गयी है और जल्द ही इसे लागू कर दिया जायेगा. इन शहरों के स्थानीय प्रशासन को ठोस कचरा प्रबंधन, धूल, वाहन और उद्योग जनित प्रदूषण के नियंत्रण को लेकर तकनीकी विशेषज्ञों के अलावा अन्य स्तरों पर मदद मुहैया करायी जायेगी.