आस्था और श्रद्धा में जब लाखों लोग एक साथ जुटते हैं, तो वो नज़ारा अद्भुत होता है. लेकिन कभी-कभी यही भीड़ एक भयानक हादसे की वजह बन जाती है. हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर में भगदड़ से 6 लोगों की मौत की खबर ने एक बार फिर से वही पुराना और डरावना सवाल हमारे सामने खड़ा कर दिया है. आखिर क्यों हमारे धार्मिक स्थलों पर इस तरह के हादसे बार-बार होते हैं? आखिर वो कौन सी चूक है, जो दर्जनों जिंदगियों को एक पल में खत्म कर देती है?
यह कोई पहली बार नहीं है. वैष्णो देवी से लेकर प्रयागराज के कुंभ तक, हादसों की एक लंबी लिस्ट है जो हमें सोचने पर मजबूर करती है. आइए नजर डालते हैं हाल के कुछ बड़े हादसों पर, जिन्होंने पूरे देश को हिलाकर रख दिया.
ये सिर्फ आंकड़े नहीं, दिलों को दहलाने वाले हादसे हैं
- हाथरस सत्संग (2 जुलाई, 2024): यह देश के सबसे दर्दनाक हादसों में से एक है. एक सत्संग में जुटी आस्था की भीड़ पर मौत का ऐसा साया पड़ा कि 121 से ज़्यादा लोगों की जानें चली गईं, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएँ और बच्चे शामिल थे. यह हादसा অব্যবস্থা और लापरवाही का एक भयावह उदाहरण है.
- तिरुपति मंदिर, आंध्र प्रदेश (8 जनवरी, 2025): देश के सबसे अमीर मंदिरों में से एक तिरुपति में भी भगदड़ का मंजर दिखा. मुफ्त दर्शन पास पाने के लिए हजारों लोग एक साथ जमा हो गए, और इस अफरा-तफरी में 6 लोगों की मौत हो गई.
- नैना देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश (31 मार्च, 2023): रामनवमी के दिन एक प्राचीन कुएं के ऊपर बनी पटिया (स्लैब) के टूटने से भगदड़ मच गई. इस हादसे ने 36 श्रद्धालुओं की जान ले ली.
- श्री लैराई देवी मंदिर, गोवा (3 मई, 2025): गोवा में एक सालाना उत्सव के दौरान भीड़ का संतुलन बिगड़ा और देखते ही देखते जश्न का माहौल मातम में बदल गया. इस भगदड़ में 6 लोगों की मौत हुई और 100 से ज्यादा घायल हो गए.
- इंदौर मंदिर हादसा (31 मार्च, 2023): इंदौर में भी रामनवमी के दिन एक मंदिर की बावड़ी की छत धंस गई. हवन के लिए जुटे लोग सीधे बावड़ी में जा गिरे और इस दर्दनाक हादसे में 36 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी.
- वैष्णो देवी मंदिर, जम्मू-कश्मीर (1 जनवरी, 2022): साल 2022 का पहला दिन ही देश के लिए बुरी खबर लेकर आया. वैष्णो देवी मंदिर में भारी भीड़ के कारण मची भगदड़ में 12 भक्तों की मौत हो गई थी.
- और अब हरिद्वार (जुलाई, 2025): इस लिस्ट में अब हरिद्वार का नाम भी जुड़ गया है, जो हमें एक बार फिर याद दिलाता है कि हमने पुरानी गलतियों से कोई सबक नहीं सीखा है.
तो आखिर चूक होती कहां है?
जब हम इन सभी घटनाओं को देखते हैं, तो कुछ गलतियाँ साफ नजर आती हैं:
- भीड़ प्रबंधन की भारी कमी: अक्सर आयोजक यह अनुमान लगाने में नाकाम रहते हैं कि कितनी भीड़ आ सकती है. आने-जाने के रास्ते संकरे होते हैं, और इमरजेंसी के लिए कोई अलग रास्ता नहीं होता.
- कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर: इंदौर और नैना देवी के हादसे बताते हैं कि निर्माण कितना कमजोर था. पुरानी इमारतों और जगहों पर क्षमता से ज्यादा भीड़ का दबाव हादसे को न्योता देता है.
- अफवाहें और घबराहट: भीड़ में फैली एक छोटी सी अफवाह भी भगदड़ मचा सकती है. लोग घबराकर भागने लगते हैं, जिससे हालात बेकाबू हो जाते हैं.
- प्रशासन की लापरवाही: पुलिस, प्रशासन और मंदिर मैनेजमेंट के बीच तालमेल की कमी होती है. सुरक्षा के इंतजाम अक्सर सिर्फ खानापूर्ति के लिए होते हैं.
- इमरजेंसी प्लान का न होना: अगर कोई हादसा हो जाए, तो उससे कैसे निपटना है, इसकी कोई तैयारी नहीं होती. एम्बुलेंस और मेडिकल टीम को घटनास्थल तक पहुंचने में ही काफी समय लग जाता है.
ये हादसे बताते हैं कि समस्या हमारी आस्था में नहीं, बल्कि उसके प्रबंधन में है. हर बार हादसे के बाद जांच कमेटियां बनती हैं, वादे किए जाते हैं, लेकिन कुछ समय बाद सब कुछ भुला दिया जाता है. जब तक इन चूकों को गंभीरता से लेकर सुधारा नहीं जाता, नियमों को सख्ती से लागू नहीं किया जाता और आयोजक अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते, तब तक आस्था के इन केंद्रों पर ऐसे जानलेवा हादसों का खतरा बना रहेगा.













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