दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में महामहिम राष्ट्रपति का चुनाव बेहद अनुठे तरीके से होता है. इसे आप सबसे अच्छा संवैधानिक तरीका भी कह सकते हैं. राष्ट्रपति चुनाव के लिए विभिन्न देशों के संवैधानिक तरीकों का समायोजन है भारत के राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया. यही कारण है कि भारत के राष्ट्रपति चुनाव में देश के सभी राजनैतिक दलों के विजयी उम्मीदवार इस चुनाव वोटिंग का हिस्सा बनते हैं.
इलेक्टोरल कॉलेज करता है राष्ट्रपति का चुनाव
आम तौर पर चुनाव प्रक्रिया में चुनाव आयोग यानी इलेक्शन कमिशन चुनाव कंडक्ट करवाता है लेकिन राष्ट्रपति के चुनाव के लिए यही काम एक इलेक्टोरल कॉलेज यानी निर्वाचक मंडल करता है, लेकिन इसमें सदस्यों का प्रतिनिधित्व अनुपातिक होता है. यानी उनका सिंगल वोट ट्रांसफर होता है, लेकिन उनकी दूसरी पसंद की भी गिनती होती है. इस चुनाव में जनता राष्ट्रपति को सीधे नहीं चुनती बल्कि जनता द्वारा चुने गए विधायक और सांसद जनता के बिहाफ पर वोट करते हैं. इसे अप्रत्यक्ष निर्वाचन कहते हैं.
राष्ट्रपति चुनने के लिए वोट का अधिकार किसे
भारत का राष्ट्रपति चुनने के लिए वोट देने का अधिकार सिर्फ उन लोगों को होता है जिन्हें जनता सीधे वोट देकर चुनती है. इसमें देश की सभी राज्यों की विधानसभाओं में जनता द्वारा चुने गए सदस्य और वो सांसद जिन्हें जनता ने वोट देकर लोकसभा भेजा है. जबकि, नियमों के मुताबिक, राष्ट्रपति द्वारा संसद में मनोनित सदस्य और राज्यों की विधान परिषदों के सदस्य राष्ट्रपति को वोट देने के लिए पात्र नहीं है. क्योंकि वे जनता द्वारा चुने गए सदस्य नहीं होते हैं.
सिंगल ट्रांसफरेबल क्या है
भारत का राष्ट्रपति चुनने के लिए खास तरीके से वोटिंग होती है. इस तरीके को 'सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम' कहते हैं. यानी वोटर एक ही वोट देता है, लेकिन वह राष्ट्रपति चुनाव में भाग ले रहे सभी उम्मीदवारों में से अपनी प्राथमिकता तय कर देता है. वोट देने वाला बैलेट पेपर पर अपनी पसंद को पहले, दूसरे तथा तीसरे क्रमानुसार बताता है. यदि पहली पसंद वाले उम्मीदवार के वोटों से विजेता का फैसला नहीं हो सका तो उम्मीदवार के खाते में वोटर की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह ट्रांसफर किया जाता है. इस सिंगल ट्रांसफरेबल वोटिंग कहते हैं.
अनुपातिक व्यवस्था क्या होती है
नियमों के अनुसार, वोट डालने वाले सांसदों और विधायकों के वोट का वेटेज अलग-अलग होता है. दो राज्यों के विधायकों के वोटों का वेटेज भी अलग होता है. यह वेटेज जिस तरह तय होता है, उसे अनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था कहते हैं.
विधायक के वोट का वेटेज कैसे तय होता है
अगर विधायक राष्ट्रपति को वोट दे रहा है तो यह देखा जाता है कि विधायक किस राज्य का है उस विधायक की अपनी विधानसभा क्षेत्र की आबादी कितनी है. इसके साथ उस प्रदेश के विधानसभा सदस्यों की संख्या को भी ध्यान में रखा जाता है. वेटेज निकालने के लिए प्रदेश की जनसंख्या को चुने गए विधायकों की संख्या से बांटा जाता है. इस तरह जो भी नंबर मिलता है, उसे फिर एक हजार से भाग दिया जाता है. अब जो आंकड़ा हाथ लगता है, वही उस राज्य के एक विधायक के वोट का वेटेज होता है. एक हजार से भाग देने पर अगर शेष पांच सौ से ज्यादा हो तो वेटेज में एक जोड़ दिया जाता है.
सांसद के वोट का वेटेज कैसे तय करते हैं
वहीं संसद सदस्यों के वोटों का गणित अलग होता है. सबसे पहले सभी रा्ज्यों की विधानसभाओं के चुन गए सदस्य के वोटों का वेटेज जोड़ा जाता है. अब इस सामूहिक वेटेज का राज्यसभा और लोकसभा के चुने गए सदस्य की कुल संख्या से भाग दिया जाता है. इस तरह जो नंबर मिलता है, वह एक सांसद के वोट का वेटेज होता है. अगर इस तरह भाग देने पर शेष 0.5 से ज्यादा बचता हो तो वेटेज में एक का इजाफा हो जाता है.
वोटों की गिनती कैसे होती है
राष्ट्रपति के चुनाव में सबसे ज्यादा वोट हासिल करने से ही जीत तय नहीं हो जाती. यहां मामला बिल्कुल अलग है. महामहिम वही बनता है, जो वोटरों यानी सांसदों और विधायकों के वोटों के कुल वेटेज का आधे से अधिक हिस्सा हासिल कर लेता है. यानी इस चुनाव में पहले से तय होता है कि जीतने वाले को कितने वोट या कितना वेटेज चाहिए होगा. फिलहाल राष्ट्रपति चुनाव के लिए जो इलेक्टोरल कॉलेज है, उसके सदस्यों के वोटों का कुल वेटेज 10,98,882 है. जीत के लिए राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को 5,49,442 वोट हासिल करने होते हैं. राष्ट्रपति पद के लिए जो दावेदार सबसे पहले यह आंकड़ा छूता है, वह चुन लिया जाता है.
पहली पसंद का महत्व क्या है
सबसे पहली पसंद का मतलब है कि सांसद या विधायक वोट देते वक्त अपने मतपत्र पर ही क्रमानुसार अपनी पसंद के उम्मीदवार बता देते हैं. सबसे पहले सभी मतपत्रों पर दर्ज पहली वरीयता के मत गिने जाते हैं. यदि इस पहली गिनती में ही कोई उम्मीदवार जीत के लिए जरूरी वेटेज का कोटा हासिल कर ले तो उसकी जीत हो गई लेकिन अगर ऐसा न हो सका तो फिर प्राथमिकता के आधार पर वोट गिने जाते हैं. वहीं, पहले उस उम्मीदवार को बाहर किया जाता है, जिसे पहली गिनती में सबसे कम वोट मिले, लेकिन उसे प्राप्त वोटों से यह देखा जाता है कि उसकी दूसरी पसंद के कितने वोट किस उम्मीदवार को मिले हैं.
कैसे होते हैं उम्मीदवार बाहर और अंत में कैसे चुने जाते हैं राष्ट्रपति
दूसरी वरीयता के वोट ट्रांसफर होने के बाद सबसे कम वोट वाले उम्मीदवार को बाहर करने की नौबत आने पर अगर दो उम्मीदवारों को सबसे कम वोट मिले हों, तो बाहर उसे किया जाता है, जिसके पहली प्राथमिकता वाले वोट कम हों. लेकिन अगर अंत तक किसी को तय कोटा न मिले तो भी इस कंडिशन में उम्मीदवार बारी-बारी से बाहर होते रहते हैं और आखिर में जिसे भी सबसे अधिक वोट मिलते हैं राष्ट्रपति चुन लिया जाता है.