भारत: सुप्रीम कोर्ट ने दी आरक्षण के अंदर आरक्षण की इजाजत

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि आरक्षण के लिए एससी और एसटी वर्गों के अंदर भी उपश्रेणियां बनाई जा सकती हैं.

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भारत: सुप्रीम कोर्ट ने दी आरक्षण के अंदर आरक्षण की इजाजत
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि आरक्षण के लिए एससी और एसटी वर्गों के अंदर भी उपश्रेणियां बनाई जा सकती हैं. जानिए क्या असर होगा सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का.इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ के सामने सवाल था कि राज्य सरकारों के पास आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्गों में उप-श्रेणियां बनाने की शक्ति है या नहीं.

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला त्रिवेदी, पंकज मित्तल, मनोज मिसरा और सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने बहुमत से निर्णय दिया कि राज्यों के पास यह शक्ति है. इस फैसले ने सुप्रीम कोर्ट के ही 2005 के फैसले को पलट दिया है.

क्या है मामला

दरअसल कई राज्यों में एससी और एसटी वर्गों में विशेष जातियों के लिए कोटे के अंदर कोटा देने की व्यवस्था है. ऐसी ही एक व्यवस्था पंजाब में पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम, 2006 के जरिए बनाई गई थी.

इस अधिनियम के तहत कहा गया था कि पंजाब सरकार की नौकरियों में एससी वर्गों के लिए जो 15 प्रतिशत आरक्षण है, उसमें 'वाल्मीकि' और 'मजहबी सिख' समुदायों को पहली प्राथमिकता दी जाएगी.

इस कानून को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी गई और अदालत ने कानून को गलत ठहराया. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहले पांच जजों की एक बेंच और फिर सात जजों की बेंच तक पहुंचा. यह बेंच 2020 से इस मामले में सुनवाई कर रही थी.

क्या था 2005 का फैसला

शुरुआत में ही, यानी पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में पंजाब के कानून को चुनौती सुप्रीम कोर्ट के 2005 एक एक फैसले के आधार पर दी गई थी. ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी वर्गों में उप-श्रेणियां बनाने से इंकार कर दिया था.

अदालत ने कहा था सभी एससी एक सजातीय वर्ग हैं और उनकी उप-श्रेणियां नहीं बनाई जा सकती हैं. फैसले में यह भी कहा गया था कि एससी वर्गों में उप-श्रेणियां बनाना संविधान के अनुच्छेद 341 का उल्लंघन है, जो एससी/एसटी वर्गों की सूची बनाने का अधिकार भारत के राष्ट्रपति को देता है.

इस फैसले को पलट कर सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की पीठ ने ना सिर्फ पंजाब के अधिनियम बल्कि उन सभी राज्यों के अधिनियमों को मान्य ठहराया है जिनके जरिए एससी और एसटी वर्गों में उप-श्रेणियां बनाई गई हैं.

तमिलनाडु में भी तमिलनाडु अरुणथथियार अधिनियम, 2009 के जरिए अरुणथथियार समुदाय को राज्य के सरकारी शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 18 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है.

सुप्रीम कोर्ट का नया फैसला

ताजा फैसले में सात जजों समेत मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि "ऐतिहासिक रूप से आनुभविक सबूत के आधार पर यह देखा गया है कि अनुसूचित जातियां सामजिक रूप से एक विषम समूह" है.

क्या आरक्षण मूल अधिकार नहीं है?

उन्होंने यह भी कहा कि "सब-क्लासिफिकेशन" और "सब-कैटिगराइजेशन" में अंतर होता है और राज्यों को आरक्षित श्रेणी के समुदायों को "सब-कैटेगराइज" करने की जरूरत पड़ सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आरक्षण के

भारत: सुप्रीम कोर्ट ने दी आरक्षण के अंदर आरक्षण की इजाजत
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि आरक्षण के लिए एससी और एसटी वर्गों के अंदर भी उपश्रेणियां बनाई जा सकती हैं. जानिए क्या असर होगा सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का.इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ के सामने सवाल था कि राज्य सरकारों के पास आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्गों में उप-श्रेणियां बनाने की शक्ति है या नहीं.

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला त्रिवेदी, पंकज मित्तल, मनोज मिसरा और सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने बहुमत से निर्णय दिया कि राज्यों के पास यह शक्ति है. इस फैसले ने सुप्रीम कोर्ट के ही 2005 के फैसले को पलट दिया है.

क्या है मामला

दरअसल कई राज्यों में एससी और एसटी वर्गों में विशेष जातियों के लिए कोटे के अंदर कोटा देने की व्यवस्था है. ऐसी ही एक व्यवस्था पंजाब में पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम, 2006 के जरिए बनाई गई थी.

इस अधिनियम के तहत कहा गया था कि पंजाब सरकार की नौकरियों में एससी वर्गों के लिए जो 15 प्रतिशत आरक्षण है, उसमें 'वाल्मीकि' और 'मजहबी सिख' समुदायों को पहली प्राथमिकता दी जाएगी.

इस कानून को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी गई और अदालत ने कानून को गलत ठहराया. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहले पांच जजों की एक बेंच और फिर सात जजों की बेंच तक पहुंचा. यह बेंच 2020 से इस मामले में सुनवाई कर रही थी.

क्या था 2005 का फैसला

शुरुआत में ही, यानी पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में पंजाब के कानून को चुनौती सुप्रीम कोर्ट के 2005 एक एक फैसले के आधार पर दी गई थी. ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी वर्गों में उप-श्रेणियां बनाने से इंकार कर दिया था.

अदालत ने कहा था सभी एससी एक सजातीय वर्ग हैं और उनकी उप-श्रेणियां नहीं बनाई जा सकती हैं. फैसले में यह भी कहा गया था कि एससी वर्गों में उप-श्रेणियां बनाना संविधान के अनुच्छेद 341 का उल्लंघन है, जो एससी/एसटी वर्गों की सूची बनाने का अधिकार भारत के राष्ट्रपति को देता है.

इस फैसले को पलट कर सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की पीठ ने ना सिर्फ पंजाब के अधिनियम बल्कि उन सभी राज्यों के अधिनियमों को मान्य ठहराया है जिनके जरिए एससी और एसटी वर्गों में उप-श्रेणियां बनाई गई हैं.

तमिलनाडु में भी तमिलनाडु अरुणथथियार अधिनियम, 2009 के जरिए अरुणथथियार समुदाय को राज्य के सरकारी शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 18 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है.

सुप्रीम कोर्ट का नया फैसला

ताजा फैसले में सात जजों समेत मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि "ऐतिहासिक रूप से आनुभविक सबूत के आधार पर यह देखा गया है कि अनुसूचित जातियां सामजिक रूप से एक विषम समूह" है.

क्या आरक्षण मूल अधिकार नहीं है?

उन्होंने यह भी कहा कि "सब-क्लासिफिकेशन" और "सब-कैटिगराइजेशन" में अंतर होता है और राज्यों को आरक्षित श्रेणी के समुदायों को "सब-कैटेगराइज" करने की जरूरत पड़ सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आरक्षण के लाभ और भी पिछड़े समूहों को मिल सकें.

उन्होंने आगे कहा, "एससी/एसटी श्रेणी के लोगों को संस्थागत भेदभाव का सामना करना पड़ता जिसकी वजह से वे अक्सर आगे नहीं बढ़ पाते हैं." हालांकि अदालत ने राज्यों को यह भी निर्देश दिया कि कोटा के अंदर कोटा देने से पहले उन्हें ठोस डाटा के जरिए यह दिखाना होगा कि जिस समुदाय को सब-कोटा दिया जा रहा है उसका प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है.

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