झारखंड में फिलहाल उदासीन है 'इंडिया', अपने मोर्चे पर अकेले डटे हैं हेमंत सोरेन
छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भाजपा की जीत पर झारखंड के सीएम और जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन से पत्रकारों ने जब प्रतिक्रिया मांगी तो उनका जवाब थोड़ा चौंकाने वाला था. उन्होंने कहा, “चुनावों में जो जैसी मेहनत करेगा, वैसे ही परिणाम आएंगे.… इन नतीजों का क्या असर पड़ेगा, यह तो आने वाले समय बताएगा.
रांची, 9 दिसंबर : छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भाजपा की जीत पर झारखंड के सीएम और जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन से पत्रकारों ने जब प्रतिक्रिया मांगी तो उनका जवाब थोड़ा चौंकाने वाला था. उन्होंने कहा, “चुनावों में जो जैसी मेहनत करेगा, वैसे ही परिणाम आएंगे.… इन नतीजों का क्या असर पड़ेगा, यह तो आने वाले समय बताएगा.” सोरेन के इस जवाब का निहितार्थ समझने की कोशिश करें तो उन्होंने इंडिया गठबंधन की सबसे बड़ी साझीदार कांग्रेस को संकेतात्मक तौर पर एक समझाईश देने की कोशिश की. समझाईश यह कि चुनावों में जीत हासिल करनी है तो भाजपा के मुकाबले मेहनत ज्यादा करनी पड़ेगी.
झारखंड में जो मौजूदा सियासी हालात हैं, उसमें इंडिया गठबंधन के लिए आगे के चुनावों की राह कतई आसान नहीं है. हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में जीत के बाद झारखंड में भाजपा नए उत्साह से लबरेज है. हेमंत सोरेन को इस बात का एहसास है कि जीत से उत्साहित भाजपा की ओर से उन पर हमले और तेज होंगे. इस चुनौती से जूझने के लिए वह इंडिया गठबंधन के बाकी दलों कांग्रेस, राजद, जदयू वगैरह की ज्यादा परवाह किए बगैर अकेले दम पर मैदान में उतर आए हैं. उन्होंने अपनी व्यस्तता का हवाला देकर बीते छह दिसंबर को दिल्ली में इंडिया गठबंधन की तयशुदा बैठक से किनारा कर लिया था. हालांकि, गठबंधन दलों के ज्यादातर प्रमुख नेताओं के न पहुंचने की वजह से यह बैठक ही टाल दी गई थी. यह भी पढ़ें : ‘इंडिया गठबंधन’ को सनातन, राम मंदिर, राष्ट्रीय सुरक्षा और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरती रहेगी भाजपा
सोरेन इन दिनों “आपकी योजना, आपकी सरकार, आपके द्वार” अभियान के तहत राज्य के जिलों का लगातार दौरा कर रहे हैं. यूं तो यह सरकार का अभियान है, लेकिन इसके तहत हो रही जनसभाओं में सोरेन अपने राजनीतिक एजेंडे के मुताबिक जमकर बोल रहे हैं. वह एक तरफ अपनी सरकार की उपलब्धियां गिना रहे हैं तो दूसरी तरफ भाजपा और केंद्र सरकार पर जमकर हमला भी कर रहे हैं. उनकी कोशिश है कि वह झारखंड मुक्ति मोर्चा की अपनी जमीन पर किलेबंदी को किसी हाल में कमजोर न पड़ने दें. उनकी सरकार की साझीदार बाकी दो पार्टियां कांग्रेस और राजद अपने मोर्चे किस हद तक संभाल पाती हैं, इसकी चिंता तो उनके नेताओं को ही करनी होगी.
बात झारखंड कांग्रेस की करें तो बीते 3 दिसंबर को आए चुनावी नतीजों के बाद पार्टी के नेता-कार्यकर्ता उदासीन स्थिति में हैं. पार्टी ने दो महीने पहले तय किया था कि राज्य कांग्रेस कार्यालय में हर हफ्ते हेमंत सरकार में शामिल कांग्रेस कोटे के चार मंत्री बारी-बारी से जनता की समस्याएं सुनेंगे. पिछले तीन-चार हफ्तों से इस पर अमल नहीं हो पा रहा. पार्टी स्तर पर पब्लिक कनेक्ट का फिलहाल कोई और उल्लेखनीय कार्यक्रम भी नहीं चल रहा. राज्य में सरकार की तीसरी साझीदार पार्टी राजद में भी संगठनात्मक कार्यक्रमों को लेकर चुप्पी जैसी स्थिति है.
राज्य में 'इंडिया' के सामने बड़ी चुनौती लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे को लेकर पेश आने वाली है. राज्य के मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन में तीन पार्टियां झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल शामिल हैं. वर्ष 2019 में हुए लोकसभा और विधानसभा चुनाव में इन तीनों ही पार्टियों ने आपस में सीटों का बंटवारा किया था. “इंडिया” अगर झारखंड में एक साथ चुनावी मैदान में जाने का संकल्प लेता है तो गठबंधन की छतरी के नीचे आने वाली पार्टियों की संख्या तीन से बढ़कर पांच से छह हो जाएगी और तब सीटों की हिस्सेदारी-दावेदारी का सवाल बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाएगा.
राज्य के मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू और वाम पार्टियों की कोई हिस्सेदारी नहीं है. राज्य में फिलहाल जदयू का कोई विधायक नहीं है, जबकि वामपंथी दलों में से सीपीआई-एमएल का मात्र एक विधायक है. नए गठबंधन इंडिया के भीतर जदयू और वाम पार्टियां भी लोकसभा और विधानसभा सीटों पर दावेदारी पेश करेंगी.
राज्य में लोकसभा की 14 सीटें हैं, जिनके बंटवारे के लिए इंडिया के घटक दलों के बीच सर्वसम्मत फार्मूला बना पाना बेहद टेढ़ी खीर होगा. 2019 के चुनाव में यहां चार दलों कांग्रेस, जेएमएम, जेवीएम और राजद का गठबंधन बना तो था, लेकिन सीटों के बंटवारे पर भारी जिच हुई थी. गठबंधन के भीतर कांग्रेस को सात, झामुमो को चार, बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा को दो और राष्ट्रीय जनता दल को एक सीट मिली थी. 13 सीटों पर एकजुटता कायम रही, लेकिन राष्ट्रीय जनता दल मात्र एक सीट मिलने से संतुष्ट नहीं था. उसने दो सीटों पलामू और चतरा में अपने उम्मीदवार उतार दिए थे.
इस बार “इंडिया” गठबंधन में झामुमो, कांग्रेस और राजद के अलावा जदयू और वाम पार्टियां भी लोकसभा सीटों पर दावेदारी करेंगी. इन पार्टियों की अपनी-अपनी बैठकों में सीटों की दावेदारी-हिस्सेदारी को लेकर चर्चा भी शुरू हो गई है.
कांग्रेस इस बार नौ लोकसभा सीटों पर दावेदारी कर रही है, जबकि पिछली बार वह सात सीटों पर चुनाव लड़ी थी. पार्टी का कहना है कि 2019 में उसने अंदरूनी समझौते के तहत दो सीटें उस वक्त बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (लोकतांत्रिक) के लिए छोड़ी थी. अब झारखंड विकास मोर्चा विघटित हो चुका है और बाबूलाल मरांडी भाजपा में हैं.
उधर, झारखंड मुक्ति मोर्चा पांच से छह सीटों पर दावेदारी करने की तैयारी में है, जबकि पिछली बार उसने चार सीटों पर चुनाव लड़ा था. राजद भी कम से कम दो सीटों पर फिर से दावा करने के मूड में है, जबकि गठबंधन में पिछली बार उसे सिर्फ एक सीट देने पर सहमति बनी थी. वामपंथी पार्टियां अपने लिए कम से कम एक सीट चाहती हैं. उनका दावा हजारीबाग सीट पर सबसे ज्यादा है, जहां से वर्ष 2004 में सीपीआई के भुवनेश्वर प्रसाद मेहता सांसद रह चुके हैं. बताया जाता है कि भाकपा के राष्ट्रीय महासचिव डी. राजा ने इस बार हजारीबाग से चुनाव लड़ने की इच्छा जता दी है.
इधर, जदयू नेताओं और प्रदेश कमेटी की हाल के दिनों में बढ़ी सक्रियता बता रही है कि वह झारखंड में गठबंधन के भीतर अपने लिए लोकसभा की सीट चाहेगी. वह हजारीबाग, कोडरमा और गिरिडीह सीट पर दावेदारी के मूड में है. इसके लिए वह राज्य में अपने पुराने जनाधार और जातीय वोट बैंक का हवाला देगी. हालांकि, यह तय माना जा रहा है कि जदयू की दावेदारी का वजन बहुत ज्यादा नहीं होगा.
सीटों के बंटवारे में सबसे ज्यादा जिच कांग्रेस और झामुमो के बीच ही होगी. 2024 में लोकसभा के साथ ही झारखंड में विधानसभा के भी चुनाव होने हैं. ऐसे में यहां लोकसभा सीटों के लिए कोई भी फार्मूला तय करते वक्त विधानसभा की 81 सीटों के बंटवारे पर भी अनिवार्य तौर पर चर्चा होगी और तब आपसी समझौते के तार उलझ सकते हैं.