रूस से संबंधों पर भारत बना नए अमेरिकी प्रतिबंधों का निशाना
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अमेरिका ने रूस के खिलाफ ताजा प्रतिबंध लगाए हैं जिसमें भारत, चीन और तुर्की सहित कई देशों की लगभग 400 कंपनियों और व्यक्तियों को निशाना बनाया गया है.अमेरिका ने दुनिया के अलग-अलग देशों की 398 कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए हैं. इनमें भारत की कई कंपनियां शामिल हैं. यूक्रेन युद्ध के कारण रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद उसके साथ व्यापार कर रहीं कंपनियों पर यह कार्रवाई की गई है. नए प्रतिबंध अमेरिकी वित्त और विदेश मंत्रालयों की एक व्यापक रणनीति का हिस्सा हैं, जिसका मकसद रूस की सैन्य उपकरणों की सप्लाई चेन को तोड़ना है.

जिन देशों की कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं उनमें भारत के अलावा यूएई, तुर्की, थाईलैंड, मलेशिया, स्विट्जरलैंड और चीन समेत एक दर्जन से ज्यादा देश शामिल हैं. इन नए प्रतिबंधों में भारत खासतौर पर निशाने पर है, जहां की कंपनियों पर रूस को उच्च प्राथमिकता वाले सामान की सप्लाई करने का आरोप है. यह स्थिति अमेरिकी सरकार की कड़ी चेतावनियों का कारण बनी है.

भारत की बढ़ती भूमिका पर सवाल

भारतीय कंपनियों को इस नए प्रतिबंध-पैकेज में प्रमुखता से निशाना बनाया गया है. यह प्रतिबंध अमेरिका की अब तक की सबसे बड़ी कोशिश मानी जा रही है, जिसका मकसद प्रतिबंधों से बचाने की तीसरी पार्टियों की कोशिशों को रोकना है. भारत ने पिछले दो साल में रूस से व्यापारिक संबंध काफी मजबूत किए हैं.

भारत स्थित फ्यूटरेवो को विदेश मंत्रालय ने विशेष रूप से निशाना बनाया, क्योंकि उस पर रूस के ओरलान ड्रोन निर्माता को उच्च प्राथमिकता वाला सामान सप्लाई करने का आरोप है. इसके अलावा, एक और भारतीय कंपनी, श्रेया लाइफ साइंसेज प्राइवेट लिमिटेड पर आरोप है कि उसने 2023 से रूस को अमेरिका-ट्रेडमार्क वाली तकनीक की सैकड़ों शिपमेंट्स भेजी, जिनकी कुल कीमत करोड़ों डॉलर है.

एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि भारत की इन गतिविधियों पर चिंता बढ़ रही है. इस अधिकारी ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा, "भारत के साथ हमने इस बारे में बहुत स्पष्ट और सीधी बात की है कि इससे पहले कि वे और आगे बढ़ें, हम इन उभर रही प्रवृत्तियों को रोकना चाहते हैं." अमेरिका ने पिछले साल कई भारतीय कंपनियों का भुगतान इसलिए रोक लिया था कि उन्होंने रूस से व्यापार किया था.

व्यापक प्रतिबंधों की रणनीति

ये प्रतिबंध रूस की उन्नत तकनीकों और उच्च प्राथमिकता वाले सामान की सप्लाई को रोकने की एक व्यापक अमेरिकी रणनीति का हिस्सा है, जिनकी जरूरत रूस को यूक्रेन में अपने युद्ध को जारी रखने के लिए है. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से अमेरिका और उसके सहयोगियों ने रूस पर हजारों प्रतिबंध लगाए हैं. ये प्रतिबंध मुख्य रूप से रक्षा, वित्त और तकनीक जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित हैं.

बुधवार को अमेरिकी वित्त मंत्रालय ने 274 संस्थाओं और व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाए, जबकि विदेश मंत्रालय ने 120 से ज्यादा कंपनियों और व्यक्तियों की सूची जारी की. अमेरिकी वाणिज्य विभाग ने भी 40 कंपनियों और अनुसंधान संस्थानों को व्यापार प्रतिबंध सूची में जोड़ा, जो रूसी सेना का समर्थन करने में शामिल थे.

विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, "यह कदम इन देशों की सरकारों और निजी क्षेत्र के लिए एक गंभीर संदेश है कि अमेरिकी सरकार प्रतिबंधों के उल्लंघन का मुकाबला करने के लिए प्रतिबद्ध है, और रूस पर दबाव बनाए रखेगी ताकि वह यूक्रेन के खिलाफ अपना युद्ध खत्म करे."

उप वित्त मंत्री वॉली अडेयेमो ने भी अमेरिका की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए कहा, "अमेरिका और हमारे सहयोगी निर्णायक कार्रवाई जारी रखेंगे ताकि रूस को उन महत्वपूर्ण उपकरणों और तकनीकों की आपूर्ति रोकी जा सके, जिनकी उसे यूक्रेन के खिलाफ अपने अवैध और अनैतिक युद्ध के लिए जरूरत है."

चीन की भूमिका पर भी ध्यान

चीन भी इन नए प्रतिबंधों में एक बड़ा निशाना रहा. अमेरिकी अधिकारियों ने बताया कि रूस को मिलने वाले 70 फीसदी उच्च प्राथमिकता वाले सामान चीन से आते हैं, जो युद्ध की शुरुआत से अब तक लगभग 22 अरब डॉलर के सामान तक पहुंच चुके हैं. विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि चीन की भूमिका अन्य किसी भी देश से कहीं ज्यादा है, "यह दूसरे सबसे बड़े सप्लायर से 13 गुना अधिक है," जो 2023 में तुर्की था.

बुधवार को निशाना बनाए गए लोगों में हांगकांग और चीन स्थित कंपनियां शामिल थीं, जिन पर आरोप है कि वे रूस को लाखों डॉलर के उन्नत तकनीक आधारित सामान की सप्लाई कर रही थीं. इन सामानों को रूस की सैन्य-औद्योगिक क्षमताओं को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, खासकर उन्नत हथियारों के निर्माण में.

अमेरिका ने रूस के अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों को भी निशाना बनाया, जो उसकी अर्थव्यवस्था और सैन्य क्षमताओं से जुड़े हैं. रूस की आर्कटिक एलएनजी 2 परियोजना का समर्थन करने वाले कई संस्थानों पर भी प्रतिबंध लगाए गए. यह परियोजना रूस के सबसे बड़े एलएनजी संयंत्रों में से एक बनने वाली थी, लेकिन अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों ने इसे बुरी तरह प्रभावित किया है.

हालांकि अब तक उठाए गए कदमों के बावजूद, यह सवाल बना हुआ है कि क्या प्रतिबंध रूस को रोकने में प्रभावी हैं. रूस की अर्थव्यवस्था ने अब तक लचीलेपन का प्रदर्शन किया है. खासकर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में तेल और गैस की बिक्री जारी रखते हुए उसने आर्थिक नुकसान को काफी हद तक कम किया है. फिर भी, अमेरिकी अधिकारियों का मानना है कि समय के साथ प्रतिबंध रूस की सैन्य क्षमताओं को कमजोर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.

वीके/आरपी (रॉयटर्स, एपी)