झारखंड में 18 साल से कम उम्र में ब्याह दी जा रहीं हर दस में से तीन लड़कियां- सर्वे
झारखंड देश के उन राज्यों में है, जहां सबसे ज्यादा बाल विवाह होते हैं. यहां प्रत्येक दस में से तीन लड़कियां 18 वर्ष से कम उम्र में ब्याह दी जा रही हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के ताजा आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं.
रांची, 18 दिसंबर : झारखंड देश के उन राज्यों में है, जहां सबसे ज्यादा बाल विवाह होते हैं. यहां प्रत्येक दस में से तीन लड़कियां 18 वर्ष से कम उम्र में ब्याह दी जा रही हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के ताजा आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं. ऐसे में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष किये जाने का केंद्र सरकार का फैसला झारखंड के लिए बेहद अहम है. झारखंड के चतरा क्षेत्र के सांसद सुनील कुमार सिंह ने लोकसभा में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान के असर और झारखंड में लिंगानुपात को लेकर सवाल उठाया था, जिसपर सरकार की ओर से एनएफएचएस-4 और एनएफएचएस-5 के आंकड़ों का हवाला देते हुए जवाब दिया गया है. 2020-21 के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में बाल विवाह के 32.2 प्रतिशत मामले दर्ज किये गये हैं.
एनएफएचएस-4 के 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार बाल विवाह के 37.9 प्रतिशत मामले दर्ज किये गये थे. इस लिहाज से देखें तो बाल विवाह के अनुपात में इन पांच वर्षों में मामूली गिरावट दर्ज की गयी है. सबसे चिंताजनक स्थिति लिंगानुपात के मामले में है. एनएफएचएस-4 के 2015-16के आंकड़ों के अनुसार झारखंड में प्रति 1000 पुरुषों पर 919 लड़कियां थीं. एनएफएचएस-2 यानी 2020-21 में यह आंकड़ा 899 हो गया है. यानी बेटी बचाओ अभियान के बावजूद झारखंड में लिंगानुपात में गिरावट आयी है. देश की बात करें तो लिंगानुपात में सुधार दर्ज किया गया है. अभी देश में यह अनुपात 1000 पुरुषों पर 929 महिलाएं हैं. यह भी पढ़ें : प्रधानमंत्री मोदी बोले, ‘यूपी की जनता कह रही, योगी प्लस यूपी बहुत है उपयोगी’
झारखंड के अलावा बिहार, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, गोवा जैसे राज्यों में भी लिंगानुपात में गिरावट दर्ज की गयी है. हालांकि झारखंड सरकार के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य में चाइल्ड सेक्स रेशियो 948 है. झारखंड में लिंगानुपात, भ्रूण हत्या, स्त्री-पुरुष असमानता जैसे विषयों पर शोध करने वाले सुधीर पाल कहते हैं कि राज्य के जनजातीय बहुल इलाकों में लिंगानुपात बेहतर है. जनजातीय समाज में शिक्षा का स्तर भले बहुत बेहतर नहीं है, लेकिन वहां भेदभाव नहीं के बराबर है.