मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति गौतम पटेल ने देश में चल रहे ‘मी टू’ अभियान के समर्थन में खुल कर आये हैं और कहा है कि पितृसत्तात्मक दुनिया महिलाओं को खुल कर बोलने की अनुमति नहीं देती है. न्यायमूर्ति पटेल ने गुरूवार को कहा कि वह उन महिलाओं का ‘‘पूरी तरह समर्थन’’ करते हैं जिन्होंने यौन उत्पीड़न के अनुभवों को साझा करने और प्रताड़ित करने वालों का नाम उजागर करने का निर्णय किया है.
इंडियन मर्चेंट चैम्बर की महिला शाखा की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति पटेल ने अमेरिकी हास्य अभिनेता बिल कॉस्बी के मामले का हवाला दिया. बिल को 14 पहले की यौन हिंसा की घटना के सिलसिले में पिछले महीने सजा हुई है. उन्होंने कहा, ‘‘मैं उन महिलाओं का पूरी तरह समर्थन करता हूं जो सामने आ रही हैं और जिनके पास बोलने का साहस है क्योंकि किसी वक्त बोलने के लिए बहुत अधिक साहस की जरूरत होती है.’’
पटेल ने कहा, ‘‘महिलायें आगे क्यों नहीं आती है, यह एक गंभीर समस्या है. इसका कारण है हमारी दुनिया का पितृसत्तात्मक होना. यह इतना पितृसत्तात्मक है और पूर्वाग्रह से ग्रसित है कि महिलाओं को कई बार बोलने की इजाजत नहीं देता जब उन्हें बेालना चाहिए या वे बोल सकती थीं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘अब हमें इस पर चर्चा करने की आवश्यकता है कि पूरी तरह इस छिन्न भिन्न और आस्यास्पद बन चुकी व्यवस्था से कैसे निताज पायी जाए और हमें ही इसकी पहचान करनी है.’’
न्यायमूर्ति पटेल ने कहा कि न्यायपालिका में भी बड़े पैमाने पर इस तरह की घटनायें हो रही है और यह भी पितृसत्तात्मक संस्कृति से घिरी हुई है. पटेल ने इस दौरान अदालतों में बढ़ते बोझ की तरफ भी ध्यान आकर्षित कराने की कोशिश की जो देश की न्यायपालिका के समक्ष एक अन्य समस्या है.