बिहार: नालंदा जिले का मारी गांव शांति, सद्भाव और धर्मनिरपेक्षता कम जीता जागता उदहारण है. इस गांव के हिंदू निवासी पूरे मन और सद्भाव से मस्जिद की देखभाल करते हैं. ख़बरों के अनुसार गांव में मुस्लिम आबादी धीरे-धीरे खत्म हो गई और मस्जिद की देखभाल के लिए कोई नहीं बचा. तब इस गांव के हिन्दू आगे आए और एक जूट होकर मस्जिद को संरक्षित किया. मस्जिद परिसर में झाडू लगाने और पोछा लगाने से लेकर अज़ान को सही समय पर बजाना, दीवारों को रंगवाना आदि यहां के लोग कर रहे हैं. वे नमाज की दिनचर्या को नहीं जानते है, लेकिन एक पेन ड्राइव की मदद वे रोजाना अज़ान बजाते हैं, जिसके बाद मंदिर में हिन्दू मुस्लिम भाइयों की तरह नमाज के लिए इकठ्ठा होते हैं.
क्या आपको नहीं लगता कि इस तरह के भाई चारे की जरूरत पूरे देश में है. मुसलमान बेरोजगारी की वजह से धीरे-धीरे मारी गांव छोड़कर वहां चले गए जहां कुछ पैसे कमाकर अपना पेट पाल सके. लुधियाना के एक गांव में एक मस्जिद के हिन्दूओं द्वारा संरक्षण के प्रयास का एक और समान उदाहरण है. विभाजन के दौरान लुधियाना के मुस्लिम हेडन बेट छोड़कर पाकिस्तान चले गए. मुसलमानों को गए 70 साल हो गए हैं. हालांकि में विभाजन के पूर्व की मस्जिद अभी भी लंबी है और किसी ने भी इसे ध्वस्त करने की कोई बात नहीं की है.
डेली सिख अपडेट्स के अनुसार, गांव में सिख बुजुर्ग यह निर्धारित करते हैं कि जब तक वे जीवित रहेंगे, वे 1920 में बनी इस मस्जिद के अतिक्रमण को रोकने के लिए खड़े होंगे. गांव के बुजुर्गों ने बताया कि, हेडन बेट में रहने वाले 50 मुस्लिम परिवारों ने 1947 में विभाजन के दौरान देश छोड़ दिया और पाकिस्तान चले गए.