वाशिंगटन: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने अपने "हायर अमेरिकन" एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए कई उपाय किए हैं. इसी क्रम में सोमवार को उन्होंने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसमें संघीय एजेंसियों को विदेशी नागरिकों को अनुबंधित करने खासकर एच 1-बी वीजा धारकों को नौकरी देने से रोका गया है. नए प्रतिबंध 24 जून से प्रभावी हो गए है. यह भारतीय आईटी पेशेवरों के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है, जो सबसे अधिक एच 1-बी (H1-B) वीजा के सहारे अमेरिका नौकरी करने आते है.
सोमवार को ट्रम्प ने कहा, "हम एच 1-बी रेगुलेशंस को अंतिम रूप दे रहे हैं ताकि किसी भी अमेरिकी कर्मचारी को फिर से प्रतिस्थापित न किया जाए. एच 1-बी को ऐसी टॉप और अत्यधिक भुगतान की जाने वाली प्रतिभाओं के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए जो अमेरिकियों के लिए नौकरियां पैदा करें, न कि अमेरिकियों की नौकरियों को खत्म करने के लिए सस्ते श्रम कार्यक्रम के रूप में काम करे." ‘यूएससीआईस ने रोजगार आधारित वीजा कार्यक्रमों में दुरुपयोग, फर्जीवाड़ा रोकने के लिए कई कदम उठाए’
अमेरिकी राष्ट्रपति पहले ही इस साल के अंत तक के लिए अधिकांश एच 1-बी और कुछ अन्य वर्क वीजा को फ्रीज कर चुके हैं. एच 1-बी वीजा भारतीय आईटी पेशेवरों के बीच सबसे अधिक मांग वाला एक गैर-आप्रवासी वीजा है, जो अमेरिकी कंपनियों को विशेष व्यवसायों में विदेशी श्रमिकों को नियुक्त करने की अनुमति देता है, जिन्हें सैद्धांतिक या तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है. अमेरिका स्थित प्रौद्योगिकी कंपनियां साथ ही संघीय एजेंसियां हर साल हजारों विदेशी कर्मचारियों को नौकरी पर रखती है. चूंकि नए नियम विदेशी श्रमिकों को रोकते है, जिससे अब संघीय एजेंसियां अब एच 1-बी वीजा धारकों को नहीं लेंगी. साथ ही उन भारतीय कंपनी को भी अनुबंध नहीं दे सकती है, जहां एच 1-बी वीजा धारक काम करते हैं. इसलिए, अप्रत्यक्ष रूप से ट्रंप प्रशासन के इस कदम का असर अमेरिका की भारतीय कंपनियों पर भी पड़ेगा.
गौरतलब है कि ट्रंप ने 22 जून को शासकीय आदेश जारी कर इस साल के अंत तक एच-1बी कार्य वीजा जारी करने पर अस्थायी रोक लगा दी. बता दें कि एच1-बी वीजा धारकों में सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की ही है. 74 फीसदी वर्क वीजा भारतीयों के पास हैं.