Gyanvapi Mosque Case: सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमा जिला जज को ट्रांसफर किया, जारी रहेगी 'शिवलिंग' की सुरक्षा
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मुकदमे में शामिल मुद्दों की जटिलता और संवेदनशीलता को देखते हुए, सिविल जज (सीनियर डिवीजन, वाराणसी) के समक्ष वाद को उत्तर प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा के एक वरिष्ठ और अनुभवी न्यायिक अधिकारी के समक्ष पेश किया जाना चाहिए. इस पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा भी शामिल हैं.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को वाराणसी (Varanasi) की ज्ञानवापी मस्जिद मामले (Gyanvapi Mosque Case) में सुनवाई करते हुए मस्जिद में पूजा के अधिकार की मांग करने वाले हिंदू पक्ष के मुकदमे की कार्यवाही जिला न्यायाधीश को हस्तांतरित कर दी. सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि उसका 17 मई का अंतरिम आदेश आगे भी जारी रहेगा, जिसमें मुसलमानों के नमाज अदा करने के अधिकार को बाधित किए बिना 'शिवलिंग' की सुरक्षा का निर्देश दिया गया था. Gyanvapi Mosque Survey: ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे कर रही टीम का मोबाइल फोन हुआ जमा, भारी सुरक्षाबल की तैनाती
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा के साथ न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि जिला न्यायाधीश मामले को प्राथमिकता के आधार पर तय करेंगे. शीर्ष अदालत का 17 मई का अंतरिम आदेश आवेदन पर निर्णय होने तक और उसके बाद आठ सप्ताह की अवधि के लिए लागू रहेगा.
अदालत ने कहा कि 17 मई का अंतरिम आदेश मामले में जिला न्यायाधीश के फैसले के बाद आठ सप्ताह तक लागू रहेगा, ताकि पीड़ित पक्ष फैसले के खिलाफ अपील कर सके. पीठ ने कहा कि जिला न्यायाधीश के पास करीब 30 साल का अनुभव है और वह इस मामले को संभालने में सक्षम होंगे.
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मुकदमे में शामिल मुद्दों की जटिलता और संवेदनशीलता को देखते हुए, सिविल जज (सीनियर डिवीजन, वाराणसी) के समक्ष वाद को उत्तर प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा के एक वरिष्ठ और अनुभवी न्यायिक अधिकारी के समक्ष पेश किया जाना चाहिए. इस पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा भी शामिल हैं.
शीर्ष अदालत ने सुनवाई के लिए सिविल जज, सीनियर डिवीजन के समक्ष लंबित मामले को जिला जज वाराणसी को ट्रांसफर करने का निर्देश दिया. शीर्ष अदालत ने वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करने के लिए पार्टियों से परामर्श करने के लिए भी कहा कि 'वुजू' (नमाज से पहले हाथ मुंह धोना) के लिए उचित व्यवस्था हो.
प्रबंधन समिति अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद वाराणसी का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने तर्क दिया कि परिसर को सील करके 500 वर्षों की यथास्थिति पहले ही बदल चुकी है. उन्होंने आगे कहा कि यथास्थिति, जो पहले मौजूद थी, जारी रहनी चाहिए.
शीर्ष अदालत ने कहा कि 17 मई को उसका अंतरिम आदेश दोनों पक्षों के हितों को संतुलित करेगा. अहमदी ने कहा कि एक कहानी बनाई जा रही है और आयोग की रिपोर्ट चुनिंदा रूप से लीक की जा रही है. उन्होंने कहा, "यह सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ रहा है. इसे केवल एक ही नजरिए से न देखें. देश भर में इसके प्रभाव को देखें."
शीर्ष अदालत ने मस्जिद के वीडियो सर्वेक्षण पर एक रिपोर्ट के लीक होने पर भी गंभीरता से विचार किया. अदालत ने कहा, "केवल ट्रायल कोर्ट ही रिपोर्ट खोल सकता है. जमीनी स्तर पर शांति बनाए रखने की जरूरत है."
जैसा कि अहमदी ने आयुक्त की नियुक्ति पर सवाल उठाया था, क्योंकि इसे पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के तहत रोक दिया गया था, पीठ ने कहा कि अधिनियम की विभिन्न बारीकियां हैं जो विचार के लिए गिरेंगी. शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई जुलाई में तय की है.