Gujarat Assembly: दस वर्षों में 13 बार पेपर लीक के बाद गुजरात विधानसभा ने पारित किया विधेयक

एक दशक में गुजरात सरकार की प्रतियोगी परीक्षाओं के 13 पेपर लीक हो गए. गुरुवार को राज्य विधानसभा ने गुजरात सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक 2023 पारित किया.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Pixabay)

गांधीनगर, 26 फरवरी : एक दशक में गुजरात सरकार की प्रतियोगी परीक्षाओं के 13 पेपर लीक हो गए. गुरुवार को राज्य विधानसभा ने गुजरात सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक 2023 पारित किया. इसमें दोषियों के लिए न्यूनतम 10 साल की कैद और 1 करोड़ रुपये के जुर्माने का प्रावधान हैं. 29 जनवरी को गुजरात पंचायत सेवा चयन बोर्ड (जीपीएसएसबी) ने पेपर लीक होने पर जूनियर क्लर्क परीक्षा को रद्द कर दिया था. 1150 पदों के लिए करीब 9 लाख उम्मीदवारों ने फॉर्म भरा था.

अगले दिन 30 जनवरी को प्राथमिक शिक्षक प्रमाणपत्र धारक 21 वर्षीय पायल करसनभाई बरैया ने जहर खा लिया. 12 फरवरी को भावनगर के एक अस्पताल में उसकी मौत हो गई. मृतक के छोटे भाई आशीष बरैया ने कहा,वह छह महीनों से जूनियर क्लर्क परीक्षा की तैयारी कर रही थी. मेरे माता-पिता ने उसे भावनगर में कोचिंग क्लास में रखा था. परीक्षा रद्द होने का मतलब है, खर्च और तनाव. क्या वह अपने माता-पिता की आकांक्षाओं को पूरा कर पाएगी, इसी चिंता ने उसे इतना बड़ा कदम उठाने के लिए प्रेरित किया. यह भी पढ़ें : PM Modi On Kashi: क्रिसमस पर गोवा से ज्यादा काशी में होटल की बुकिंग, सांसद के नाते मुझे बहुत आनंद आया: पीएम मोदी

आशीष ने कहा, हमारे पास कुछ कृषि भूमि है, लेकिन मेरी बहन को सरकारी नौकरी मिलने की बहुत उम्मीद थी, जिसका मतलब था कि उसके और परिवार के लिए सामाजिक सुरक्षा, लेकिन सिस्टम ने उसे विफल कर दिया. वह अकेली नहीं है. गांधीनगर के एक महत्वाकांक्षी उम्मीदवार निकुंज पटेल के अनुसार, कई उम्मीदवार समान आघात, तनाव और अवसाद का अनुभव करते हैं, लेकिन इसे व्यक्त करने में असमर्थ रहते हैं.

मैं एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी का बेटा हूं, और मेरे परिवार ने निजी कोचिंग कक्षाओं पर हजारों रुपये खर्च किए हैं, ताकि मैं परीक्षा पास कर सकूं और सरकारी नौकरी पा सकूं, उन्होंने कहा, जब पेपर लीक होता है, तो यह यह न केवल दर्दनाक होता है, बल्कि उम्मीदवारों को हतोत्साहित करता है, युवाओं और उनके परिवार के सदस्यों को निराश करता है. इसके साथ सबसे बड़ी चुनौती यह है कि क्या मैं अपने माता-पिता की अपेक्षाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाऊंगा.

दक्षिण गुजरात के संदीप वसावा एक निजी कंपनी में काम कर रहे थे. छह महीने पहले उन्होंने नौकरी छोड़ दी और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लग गए. वसावा ने सोचा था कि कुछ महीने पैसे बचाकर परिवार का खर्च चला लूंगा और परीक्षा के बाद फिर से प्राइवेट नौकरी कर लूंगा. लेकिन अब जब परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं, तो वह असमंजस में है.

सामाजिक कार्यकर्ता और युवा नेता युवराजसिंह जडेजा के अनुसार, गुजराती युवाओं पर दो कारणों से सरकारी नौकरी पाने का दबाव है. पहला, वित्तीय सुरक्षा के लिए, क्योंकि निजी रोजगार में कोई सुरक्षा नहीं है और दूसरा, एक अच्छा दूल्हा या दुल्हन खोजने के लिए, क्योंकि अगर आपके पास सरकारी नौकरी नहीं है, तो परिवार शादी के लिए राजी होने से कतराते हैं.

जडेजा ने कहा, यदि कोई उम्मीदवार किसी बड़े शहर से नहीं है, तो उसे किराए पर एक कमरा, कोचिंग कक्षाओं में प्रवेश, पुस्तकालय शुल्क, भोजन बिल का भुगतान, और किताबों पर खर्च आदि पर औसतन माता-पिता को प्रति माह 60 हजार से 75 हजार रुपये प्रतिमाह खर्च करने पड़ते हैं. परीक्षा में विलंब से खर्च बढ़ता जाता है.

एक सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं, युवाओं और उनके परिवारों की मदद करने का प्रमुख तरीका राज्य सरकार के लिए विभिन्न विषयों पर अच्छे शिक्षकों को नियुक्त करना है. उम्मीदवारों तक पहुंच के लिए उनके व्याख्यान ऑनलाइन पोस्ट करना और उम्मीदवारों और उनके परिवारों को राहत देने के लिए विषय विशेषज्ञों के साथ ऑनलाइन बातचीत सत्र की व्यवस्था करना है.

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