Global Teacher Award: अपने नाम का ऐलान होने पर महाराष्ट्र के प्राइमरी टीचर रणजीत सिंह डिसले कुछ इस तरह खुशी से उछल पड़े, देखें विडियो

महाराष्ट्र के सोलापुर के प्राइमरी टीचर रणजीत सिंह डिसले को प्राइमरी स्कूल में लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने और उसे तकनीक से जोड़ने के सराहनीय प्रयासों के लिए ग्लोबल टीचर प्राइज से सम्मानित किया गया है. जब विजेता के तौर पर उनके नाम की घोषणा की गई तो वो खुशी से झूम उठे.

रणजीत सिंह डिसले (Photo Credits: Twitter)

Global Teacher Award: महाराष्ट्र (Maharashtra) के सोलापुर (Solapur) के प्राइमरी टीचर (Primary Teacher) रणजीत सिंह डिसले (Ranjitsinh Disale) को प्राइमरी स्कूल में लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने और उसे तकनीक से जोड़ने के सराहनीय प्रयासों के लिए ग्लोबल टीचर प्राइज (Global Teacher Prize) से सम्मानित किया गया है. 32 वर्षीय विजेता रणजीत सिंह डिसले को ग्लोबल टीचर अवार्ड (Global Teacher Award) के तहत 10 लाख डॉलर (करीब 7 करोड़ 38 लाख रुपए) का पुरस्कार मिला है. इस इनामी राशि में से उन्होंने आधा हिस्सा अपने प्रतिभागी शिक्षकों में बांटने का ऐलान किया है. रणजीत सिंह डिसले इस सम्मान को पाने वाले पहले भारतीय हैं और उनकी उस उपलब्धि पर महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) ने बधाई दी है. डिसले को लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने और क्यूआर कोडेड किताबों के जरिए शिक्षा क्षेत्र में किए गए सराहनीय कार्यों के लिए यह सम्मान दिया गया है.

बेशक इस सम्मान को पाने के बाद रणजीत सिंह डिसले और उनके परिवार वाले बेहद खुश हैं. जब विजेता के तौर पर उनके नाम की घोषणा की गई तो वो खुशी से झूम उठे. आप इस वीडियो को देखकर उनकी खुशी का अंदाजा लगा सकते हैं. देखें उस क्षण को जब पुरस्कार की घोषणा की गई.

देखें वीडियो-

बताया जाता है कि डिसले जब साल 2009 में महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पारितेवादी गांव के प्राइमरी स्कूल में पहुंचे तो स्कूल की हालत बेहद खस्ता थी. स्कूल को देखकर साफ लगता था कि वह पशुओं को रखने और स्टोर रूम के इस्तेमाल में आती थी. वहीं गांव के लोगों का मानना था कि लड़कियों को पढ़ाने से कुछ नहीं बदलने वाला है, इसलिए उन्हें लड़कियों को पढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी.

डिसले ने लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने का जिम्मा उठाते हुए घर-घर जाकर अभिभावकों को समझाने की कोशिश की, फिर एक-एक करके उन्होंने सारी अंग्रेजी की किताबों का मातृभाषा में अनुवाद किया और उसमें एक तकनीक जोड़ दी. यह तकनीक थी क्यूआर कोड देना, ताकि बच्चे वीडियो लेक्चर अटेंड करने के साथ ही अपनी मातृभाषा में कविताएं-कहानियां सुन सकें. यह भी पढ़ें: Nari Shakti Puraskar 2020: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विभिन्न क्षेत्रों में योगदान देने वाली महिलाओं को मिला नारी शक्ति पुरस्कार, देखें पूरी लिस्ट

महाराष्ट्र में किताबों में क्यूआर कोड शुरू करने की पहल का श्रेय भी इसी शिक्षक को जाता है. डिसले की कोशिशों की वजह से ही उन्हें दुनिया के सबसे अद्भुत टीचर का अवॉर्ड मिला है. गौरतलब है कि वारके फाउंडेशन ने असाधारण शिक्षक को उनके सराहनीय योगदान के लिए सम्मानित करने के मकसद से 2014 में इस पुरस्कार की शुरुआत की थी, जिसके लिए पूरे विश्व से 12 हजार शिक्षकों की एंट्री आई थी.

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