POSCO केस पर बोला हाईकोर्ट- सहमति से बना था रिश्ता, साबित नहीं हुआ की लड़की थी नाबालिग, पॉक्सो का दोषी बरी
उच्च न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि पीड़िता नाबालिग थी. अदालत ने यह भी कहा कि पीड़िता ने अदालत में बयान दिया था कि कथित अपराध के समय उसकी उम्र 18 साल थी और उसने आरोपी के साथ सहमति से संबंध बनाए थे
Gauhati High Court Acquits POCSO Convict: गौहाटी उच्च न्यायालय ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को इस आधार पर बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा "अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि पीड़िता नाबालिग थी. आरोपी और पीड़िता के बीच संबंध सहमति से बने थे.
आरोपी उत्पल देबनाथ को निचली अदालत ने 2020 में दोषी ठहराया था और सात साल जेल की सजा सुनाई थी. उसने सजा को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. उच्च न्यायालय ने 9 मई को अपने आदेश में कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि पीड़िता नाबालिग थी. अदालत ने यह भी कहा कि पीड़िता ने अदालत में बयान दिया था कि कथित अपराध के समय उसकी उम्र 18 साल थी और उसने आरोपी के साथ सहमति से संबंध बनाए थे. ये भी पढ़ें- Divorce For Denying Sex: हाई कोर्ट ने पति के सेक्स करने से मना करने के आधार पर महिला को तलाक दे दिया
अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में भी नाकाम रहा है कि आरोपी ने पीड़िता का अपहरण किया था या उसे डराया था. कोर्ट ने कहा, "मुझे लगता है कि अभियोजन पक्ष अपीलकर्ता के खिलाफ उचित संदेह से परे आरोप साबित करने में विफल रहा है मैं अपील स्वीकार करता हूं और अपीलकर्ता को बरी करता हूं."
उच्च न्यायालय के आदेश का बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया है, जिन्होंने कहा है कि यह एक मजबूत संदेश भेजता है कि अदालतें POCSO अधिनियम के तहत झूठे मामलों को बर्दाश्त नहीं करेंगी.
POCSO अधिनियम एक कठोर कानून है जिसे 2012 में बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए बनाया गया था. कानून में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के दोषी लोगों के लिए आजीवन कारावास सहित कठोर सजा का प्रावधान है. हालांकि, ऐसे आरोप लगाए गए हैं कि कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है और निर्दोष लोगों को POCSO अधिनियम के तहत झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है.