नई दिल्ली 28, सितंबर: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि पति द्वारा पत्नी के साथ जबरन अप्राकृतिक यौन (Forcible Unnatural Sex) संबंध बनाना एक जघन्य अपराध है, खासकर तब जब इसकी वजह से महिला आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाती है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उस व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया जो दहेज प्रताड़ना, घरेलू हिंसा और बलात्कार के में आरोपों में दो साल से अधिक समय से हिरासत में है. पीड़िता के भाई ने साल 2019 में हरियाणा के भिवानी जिले के भिवानी सदर थाने में आईपीसी की धारा 148, 149, 323, 377 और 306 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई थी. यह भी पढ़ें: यूपी: हाथरस में कुत्ते के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के आरोप में तीन लोगों पर मामला दर्ज
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने प्रदीप को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिसने कथित तौर पर अपनी पत्नी के साथ जबरन अप्राकृतिक यौन संबंध बनाकर प्रताड़ित किया था, क्योंकि उसका परिवार दहेज की मांग को पूरा करने में विफल रहा था. CJI की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि धारा 377 (बलात्कार) एक बहुत ही गंभीर अपराध है और आरोपी पति जांच के स्तर पर नरमी का पात्र नहीं है. “हमें नहीं पता कि पुलिस क्या कर रही है. शख्स का परिवार दहेज की मांग करने लगा. जब महिला का परिवार उसकी मांगें पूरी नहीं कर सका तो आप उसे प्रताड़ित करने लगे. आपने सोशल मीडिया पर उसकी निजी तस्वीरें और वीडियो प्रसारित किए और उसे ब्लैकमेल करने की कोशिश की. इन सबसे ऊपर, आपने कथित तौर पर उसके साथ जबरन अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए, जिसके कारण उसने आत्महत्या कर ली. आप किसी तरह की नरमी के पात्र नहीं हैं क्योंकि यह एक जघन्य अपराध है." यह भी पढ़ें: उम्रकैद का मतलब है कठोर कारावास : सुप्रीम कोर्ट
जब याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि वह आदमी एक सरकारी कर्मचारी है और अगर उसे जमानत नहीं दी गई तो वह अपनी नौकरी खो देगा, तो पीठ ने कहा, “यह ठीक है अगर ऐसे व्यक्ति अपनी नौकरी खो देते हैं तो बेहतर होगा कि आप जेल में ही रहें."