मद्रास HC कोर्ट का निर्देश, 9 साल के बच्चे के इच्छामृत्यु पर चिकित्सा समिति करें जांच
मद्रास उच्च न्यायालय ने एक चिकित्सा विशेषज्ञ समिति को नौ वर्षीय एक बालक की जांच करने के सोमवार को निर्देश दिये है. बालक के पिता ने उसकी इच्छामृत्यु के लिए एक याचिका दायर की थी
चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय ने एक चिकित्सा विशेषज्ञ समिति को नौ वर्षीय एक बालक की जांच करने के सोमवार को निर्देश दिये है. बालक के पिता ने उसकी इच्छामृत्यु के लिए एक याचिका दायर की थी. अदालत ने तीन विशेषज्ञों की टीम को यह जांच करने के भी निर्देश दिये कि क्या यह मामला सतत निष्क्रियता स्थिति संबंधी मापदंड के तहत आता है और क्या बच्चे के इलाज के लिए कोई गुंजाइश है. इससे पूर्व अदालत ने बच्चे की जांच करने के लिए विशेषज्ञों के नामों पर सुझाव देने के लिए तीन सदस्यीय स्वंतत्र पैनल गठित किया था.
न्यायमूर्ति एन किरूबाकरन और न्यायमूर्ति एस भास्करण की एक खंडपीठ के समक्ष जब यह याचिका लाई गई तो पैनल ने विशेषज्ञों के नाम सुझाये। इन नामों को समिति की मंजूरी के बाद पीठ ने तमिलनाडु सरकार के मल्टी-सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, ओमंदुरर सरकारी एस्टेट, के निदेशक को बच्चे की जांच और विशेषज्ञों को अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के निर्देश दिये थे. विशेषज्ञ समिति को जल्द से जल्द बच्चे की जांच करने और यह बताने के निर्देश दिये थे कि ‘‘ क्या आज के चिकित्सा क्षेत्र में बालक का इलाज संभव है.’’ ये भी पढ़े: देश के गरीबों को मोदी सरकार का बड़ा गिफ्ट, अब अस्पताल में भर्ती होने से पहले नहीं लगेगा डर
आर थिरूमेनी ने अदालत का रूख करके अपने बेटे के लिए इच्छामृत्यु की अनुमति दिये जाने का अनुरोध किया था. याचिकाकर्ता ने कहा था कि बच्चे के 30 सितम्बर,2008 को जन्म के बाद से उसकी स्थिति लगातार निष्क्रिय बनी हुई है. याचिकाकर्ता के पुत्र टी प्रवीनधन को मिर्गी के दौरे भी पड़ते है. यह तंत्रिका तंत्र की बीमारी है। इस बीमारी में दौरा पड़ने पर रोगी अपना दिमागी संतुलन खो बैठता है। उसे एक दिन में 10 से 20 बार दौरे पड़ते हैं जिसे दवाओं द्वारा नियंत्रित किया जाता है.
पेशे से एक दर्जी थिरुमेनी को दवा खर्चों को पूरा करने के लिए 10,000 रुपये प्रति माह खर्च करना पड़ता है. याचिकाकर्ता थिरुमेनी का कहना है कि उसने सभी डॉक्टरों से विचार विमर्श किया और उन्होंने इस बात पर सहमति जताई कि इस तरह के मामले में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है. थिरुमेनी ने अदालत से आग्रह किया कि वह उसे अपने बेटे को भोजन, पोषण और दवाएं नहीं दिये जाने की अनुमति दे ताकि उसकी मौत की प्रक्रिया को सुगम बनाया जा सके.