नेशनल साइंस डे: जानें कौन थे डॉ सीवी रमण जिनकी याद में मनाया जाता है विज्ञान दिवस
आज नैशनल साइंस डे है, 91 वर्ष पूर्व आज के ही दिन ‘भारतरत्न’ डॉ सीवी रमण को विज्ञान के क्षेत्र में ‘नोबल पुरस्कार’ प्राप्त हुआ था. इस क्षेत्र में यह पुरस्कार पाने वाले वे एशिया के पहले पुरुष थे. इसी उपलक्ष्य में 1986 से हर वर्ष 28 फरवरी के दिन 'राष्ट्रीय विज्ञान दिवस' के रूप में मनाया जाता है...
आज 'नैशनल साइंस डे'(National science day) है, 91 वर्ष पूर्व आज के ही दिन ‘भारतरत्न’ डॉ सीवी रमन (C.V. Raman) को विज्ञान के क्षेत्र में ‘नोबल पुरस्कार’ प्राप्त हुआ था. इस क्षेत्र में यह पुरस्कार पाने वाले वे एशिया के पहले पुरुष थे. इसी उपलक्ष्य में 1986 से हर वर्ष 28 फरवरी के दिन 'राष्ट्रीय विज्ञान दिवस' के रूप में मनाया जाता है.
चंद्रशेखर वेंकटरमन का जन्म 7 नवम्बर 1888 में तिरुचिरापल्ली (Tiruchirappalli), तमिलनाडु (Tamil Nadu) में हुआ था. पिता चन्द्रशेखर अय्यर गणित व भौतिक शास्त्र के प्रोफेसर थे. मां पार्वती अम्मल एक सुसंस्कृत परिवार की महिला थीं. प्रारंभ से ही घर में शैक्षणिक माहौल का असर बालक चंद्रशेखर पर पड़ा. चंद्रशेखर ने मात्र 11 वर्ष की उम्र में मैट्रिक और 13 वर्ष की उम्र में इंटरमीडिएट परीक्षा पास कर ली थी.
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विरासत में मिली शिक्षा: चंद्रशेखर को स्कूली जीवन से ही विज्ञान विषय में गहरी रुचि रही है. पिता ने उनकी प्रखर बुद्धि और विज्ञान के ही प्रति रुझान को गंभीरता से लेते हुए उनकी पढ़ाई लिखाई पर विशेष ध्यान रखा. विशाखापत्तनम से स्कूली शिक्षा पूरी करने के पश्चात उच्च शिक्षा के लिए पिता ने उन्हें मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला करवा दिया. 1904 में मद्रास विश्वविद्यालय से भौतिक विज्ञान में गोल्ड मेडेल के साथ उन्होंने ग्रेजुएशन और 1907 में पोस्ट ग्रेजुशन पूरा किया. इसी दरम्यान उन्होंने एकॉस्टिक और ऑप्टिक विषय पर एक शोधात्मक लेख लिखा, जिसे 1906 में लंडन की फिलॉसिफिकल पत्रिका में विशेष जगह देते हुए प्रकाशित किया गया.
पत्नी का सहयोग और समर्पण: उन दिनों विज्ञान विषयों में कम लोग ही रुचि लेते थे. यद्यपि चंद्रशेखर ने तब तक वैज्ञानिक बनने की दिशा में कुछ भी नहीं सोचा था. लेकिन कठिन से कठिन परीक्षाओं में भाग जरूर लेते और प्रथम श्रेणी में पास होते थे. ऐसी ही एक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्हें असिस्टेंट एकाउंटेंट जनरल पद के लिए चुन लिया गया. इसी समय लोक सुंदरी नामक कन्या से उनका विवाह हो गया. कहा जाता है कि हर पुरुष की सफलता के पीछे एक औरत का हाथ होता है. चंद्रशेखर की पृष्ठ भूमि और भौतिक प्रेम को देखते हुए लोकसुंदरी ने उन्हें हर कदम पर कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया. उन्हें घरेलू समस्याओं और आवश्यकताओं की चिंता से दूर रखते हुए उन्हें हर दिशा में सहयोग दिया.
इस तरह तपस्या पूरी हुई: एक दिन ऑफिस से लौटते समय चंद्रशेखर की नजर ‘द इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस’ पर पड़ी. उत्सुकतावश वे इस संस्थान के संस्थापक अमृतलाल सरकार से मिले. चंद्रशेखर से बातों ही बातों में अमृतलाल सरकार ने उनमें एक उत्कृष्ट वैज्ञानिक होने का अहसास कर लिया था. उन्होंने संस्थान के दरवाजे चंद्रशेखर के लिए खोल दिए. चंद्रशेखर ने अपना अनुसंधान कार्य शुरु कर दिया. दस साल यहां कार्य करने के पश्चात चंद्रशेखर ने कलकत्ता के नए साइंस कॉलेज में भौतिक शास्त्र अध्यापन का कार्यभार संभाला. चंद्रशेखर अध्यापन कार्य के अतिरिक्त प्रयोगशाला में भी काफी समय बिताते थे. वे जानते थे कि इस तरह की सक्रियता ही उनके शोधकार्यों को पूरा करवा सकेगी. अपने शोध को पूरा करने के लिए उन्होंने ज्यादा से ज्यादा वक्त प्रयोगशाला को देना शुरु किया. यहां रहते हुए चंद्रशेखर वैंकेटरमण ने प्रकाश प्रकीर्णन के क्षेत्र में अपना शोध पूरा किया. इस शोध का निष्कर्ष था कि जब लाइट किसी पारदर्शी चीज से गुजरती है तब डिफ्लेक्टेड लाइट की वेवलेंथ कुछ बदल जाती है. उनके इस शोध को बाद में रमन इफेक्ट का नाम दिया गया. गुजरते वक्त के साथ यह शोध आज भी प्रासंगिक मानी जाती है.