दिल्ली को ‘बंदर मुक्त’ बनाने के लिए कराई जाएगी जनगणना, अब तक करोड़ों हो चुके है खर्च
बंदर (Photo Credits: Pixabay)

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) के आदेश के बाद भी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली (Delhi) में बंदरों (Monkey) की समस्या जस की तस बनी हुई है. अब दिल्ली में मौजूद बंदरों की जनगणना करने का फैसला किया गया है. इसके पीछे तर्क दी जा रही है कि ऐसा करने पर दिल्ली को बंदर मुक्त बनाने के लिए सही योजना बनाई जा सकेगी. इस काम में देहरादून के वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (Wildlife Institute of India) भी मदद करेगी.

आपको बता दें कि दिल्ली के रिहायशी इलाकों में बंदरों को पकड़ने के लिए अब तक करोंड़ों रुपये खर्च किए जा चुके है. साल 2007 में दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को बंदरों को पकड़ने का आदेश दिया था. कोर्ट ने कहा था कि बंदरों को पकड़ने के लिये पिंजरा मुहैया कराया जाए तथा नगर निगम इन्हें अलग-अलग स्थानों पर रखे. कोर्ट ने निर्देश दिया था कि बंदरों को असोला वन्यजीव अभयारण्य भेजा जाए. साथ ही वन विभाग को भोजन उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए थे जिससे बंदर रिहायशी इलाकों में नहीं जाए.

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रिपोर्ट्स के मुताबिक दिल्ली में पिछले साल बंदरों के काटने के 950 मामले सामने आए थे. इसमें दो लोगों की मौत भी हुई थी. कई लोगों के मुताबिक बंदरों की समस्या इसलिए बनी हुई है क्योंकि इन्हें पकड़ने और इनके बंध्याकरण के लिये नगर निगम या वन्य विभाग कौन जिम्मेदार है, इसे लेकर अब भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है. हालांकि एक नगर निगम अधिकारी का कहना है कि बंदर वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के तहत ‘रिसस मकाक’ एक संरक्षित पशु है, इसलिए इसकी पूरी जिम्मेदारी वन विभाग की बनती है.

साल 2018 में नगर निगमों ने कुल 878 बंदरों को पकड़ा था जिसमें पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी) ने सिर्फ 20 बंदर पकड़े थे. अब तक 20,000 से अधिक बंदरों को पकड़कर अभयारण्य भेजा गया है. लेकिन मौजूदा समय में मानव बस्तियों में कितने बंदर इधर-उधर भटक रहे हैं, इसका कोई आंकड़ा नहीं है.

(एजेंसी इनपुट के साथ)