बिहार में ज्ञानवापी मामले में सियासी उठापटक को लेकर चुप हैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद का मुद्दा भाजपा शासित राज्यों में गर्म होने के बावजूद बिहार में इसका असर दिखाई नहीं दे रहा है. प्रदेश की अधिकतर जनता इसका श्रेय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दे रही है, जो विवादास्पद मुद्दों पर भले ही खामोश हैं.

बिहार सीएम नीतीश कुमार (Photo Credits: PTI)

पटना, 22 मई : ज्ञानवापी मस्जिद विवाद (Gyanvapi Masjid Controversy) का मुद्दा भाजपा शासित राज्यों में गर्म होने के बावजूद बिहार में इसका असर दिखाई नहीं दे रहा है. प्रदेश की अधिकतर जनता इसका श्रेय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को दे रही है, जो विवादास्पद मुद्दों पर भले ही खामोश हैं. पटना में खानका मुनेमिया मस्जिद के स्पिरिचुअल उत्तराधिकारी हजरत सैयद शाह शमीमुद्दीन अहमद मुनेमी ने आईएएनएस से कहा, "बिहार देश में सांप्रदायिक भाईचारे की एक बड़ी मिसाल कायम कर रहा है और यह राज्य के मुख्यमंत्री के कारण संभव हुआ है. यहां दो तरह के लोग हैं. पहला वे हैं जो चुप रहते हैं और राज्य भर में गलत चीजें होने देते हैं. दूसरा वे हैं जो एक मूक व्यक्ति की तरह दिखते हैं, लेकिन राज्य में गलत कामों पर कड़ी नजर रखते हैं, खासकर उन मुद्दों पर जो सांप्रदायिक तनाव पैदा कर सकते हैं, हमारे मुख्यमंत्री दूसरी श्रेणी के हैं."

मुनेमी ने कहा, "यह राज्य का एक पहलू है. दूसरा पहलू और भी दिलचस्प है और वह है बिहार के लोग. वे इतने बुद्धिमान हैं कि क्या गलत है और क्या सही है के बीच अंतर कर सकते हैं. वे दूसरे राज्यों में चल रहे किसी भी सांप्रदायिक मुद्दे में भाग नहीं ले रहे हैं और नीतीश कुमार की नीतियों के पूरक हैं. मैं भाजपा के बिहार विंग के नेतृत्व को उन मुद्दों को नहीं भड़काने के लिए बधाई देता हूं, जो राज्य में सांप्रदायिक तनाव पैदा कर सकते हैं. मैं भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से अपने बिहार विंग से सीखने का आग्रह करना चाहता हूं."

राजद उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी का मानना है कि ज्ञानवापी देश में सांप्रदायिक विवाद पैदा करने के भाजपा के एजेंडे का हिस्सा है. "भाजपा के थिंक-टैंक ने लोगों को इन तर्ज पर सोचने के लिए सांप्रदायिक एजेंडा निर्धारित किया है. उन्होंने फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स', बुलडोजर, जहांगीरपुरी हिंसा और अब ज्ञानवापी मस्जिद जैसे मुद्दों के साथ विवाद पैदा किया है." तिवारी ने आईएएनएस से कहा, "लेकिन इन विवादास्पद मुद्दों का बिहार पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा है. बिहार के लोग सांप्रदायिक तनाव के परिणामों को जानते हैं. वे ऐसे मुद्दों से दूर रहने के लिए काफी समझदार हैं."ज्ञानवापी विवाद पर जदयू का रुख अडिग है. यह भी पढ़ें : दिल्ली सरकार ई-साइकिल खरीद पर सब्सिडी के लिए जल्द दिशा-निर्देश जारी करेगी: अधिकारी

जद-यू कोटे के तहत अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री जामा खान ने कहा, "हम ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे, जिससे समाज में भाईचारे की भावना को ठेस पहुंचे. जद-यू वह पार्टी है, जो सभी जातियों और धर्मों को आगे लेकर चलती है. हम सभी की भावनाओं का सम्मान करते हैं. देश के निर्माण में सबका योगदान है." नीतीश कुमार जहां इस विवाद पर मुखर नहीं हैं, वहीं ज्ञानवापी विवाद जैसे मुद्दों पर चुप्पी साधे हुए हैं. गुरुवार को जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा, "इस पर मेरी कोई राय नहीं है. आप (मीडियाकर्मी) अपनी टिप्पणी करने के लिए स्वतंत्र हैं." इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए बिहार की उपमुख्यमंत्री रेणु देवी ने कहा, "सच्चाई सामने आनी चाहिए. हमें नहीं पता कि समाज में सांप्रदायिक तनाव बढ़ेगा. अगर हमारे पास कोई सांस्कृतिक विरासत है, तो उसे सार्वजनिक डोमेन में आना चाहिए." भाजपा के वरिष्ठ नेता और पार्टी के प्रवक्ता अखिलेश सिंह ने आईएएनएस को बताया, "ज्ञानवापी एक विवादास्पद मुद्दा होने के बजाय हमारे लिए एक धार्मिक मुद्दा है. काशी विश्वनाथ मंदिर का हिंदू समुदाय के लिए एक महान आध्यात्मिक महत्व है और अगर बगल की मस्जिद में शिवलिंग पाया जाता है."

"जहां तक बिहार का सवाल है, वाराणसी बिहार के कई जिलों से लगा हुआ है. हिंदू समुदाय के लोग हर दिन बड़ी संख्या में भगवान शिव की पूजा करने जाते हैं. इसलिए, बिहार के लोग यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि ज्ञानवापी मस्जिद के 'वुजू खान' में आखिर है क्या?" "अगर अतीत में कुछ गलत हुआ है, तो इसे सुधारना हमारा कर्तव्य है. अंग्रेजों ने हमारे देश पर लगभग 200 वर्षों तक शासन किया और मुगलों ने भी. अगर मुगलों ने हमारा इतिहास बदल दिया, तो इसे सुधारना हमारा कर्तव्य है." सिंह ने कहा, "राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद एक ऐसा मुद्दा था, जिसे कानून की अदालत के माध्यम से ठीक किया गया. एक अन्य मामला मथुरा में भगवान कृष्ण के जन्म स्थान की भूमि का है, जिसे भी संबोधित करने की आवश्यकता है."

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