Chandra Shekhar Azad Death Anniversary: बरतानिया हुकुमत जिस क्रांतिकारी के नाम से कांप उठती थी, ऐसे थे भारत माता के सपूत चंद्रशेखर आजाद
भारत के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ( फाइल फोटो )

‘दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे'.... भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक और अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) 89वां शहादत दिवस है.  चंद्रशेखर आजाद के इस बलिदान को हर साल 27 फरवरी के दिन शहादत दिवस के तौर पर मनाया जाता है. चंद्रशेखर ने अपनी जिंदगी में कसम खाई हुई थी कि वह कभी भी जिंदा पुलिस के हाथ नहीं लगेंगे. उन्होंने जो कहा तथा उसपर वे कायम भी रहे. 27 फरवरी 1931 के दिन चंद्रशेखर आजाद पार्क इलाहाबाद के अलफ्रेड पार्क में बैठे थे. उसी समय अंग्रेजों ने उन्हें चारो तरफ से घेर लिया. इस दौरान चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजो का डटकर मुकाबला किया. लेकिन जब उनके पास अंतिम गोली बची तो पार्क में स्वयं को गोली मारकर मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दे दी. उन्होंने कहा था कि मैं आजाद था और आजाद ही रहूंगा.

स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान एक सनातनधर्मी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. पिता पं. सीताराम तिवारी प्रकाण्ड पंडित थे, मगर स्वभाव से निहायत दयालु प्रवृत्ति के थे. मां जगरानी देवी गृहिणी थीं. चंद्रशेखर का बालपन ज्यादातर आदिवासी बहुल इलाके में बीता. भील बच्चों के साथ वह काफी छोटी उम्र में तीर-धनुष के निशाने में पारंगत हो गये थे. बालक चन्द्रशेखर आज़ाद का मन शुरु से देश की आज़ादी के लिए कुछ करने को मचलता था.

अंग्रेज पीठ पर मारते बेंत तो चिल्लाते थे वन्देमातरम

आजाद का नाम ही आजाद नहीं था उनका ख्वाब भी आजादी पाना था. चंद्रशेखर आजाद का सपना था कि भारत माता को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराएं. यही कारण था कि युवा अवस्था में आते ही वे 1921 में असहयोग आन्दोलन के दौरान आजादी की लड़ाई में आजाद भी कूद पड़े थे. उन्होंने काशी के अपने विद्यालय में भी इसकी मशाल जलाई इसी दौरान अन्य लोगों के साथ पुलिस ने आजाद को भी हिरासत में ले लिया. जिसके बाद 15 बेंतो की सख्त सजा सुनाई गई. इस दौरान आजाद जरा भी डरे नहीं हर बेंत लगने पर वंदे मातरम चिल्लाते थे. यह भी पढ़ें:- मंगल पांडे जन्मदिन विशेष: 1857 में जिसने हिला दी थी बरतानिया सरकार की नींव, जल्लादों ने फांसी देने से कर दिया था इनकार.

जलियांवाला कांड ने झकझोर दिया था

चंद्रशेखर आजाद को 1922 में गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन से बाहर कर दिया था. अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार ने युवा चंद्रशेखर को झकझोर के रख दिया था. फिर प्रणवेश चटर्जी के सम्पर्क में आये और क्रान्तिकारी दल "हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ" के सदस्य बन गये. राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड को अंजाम दिया तथा गिरफ़्तारी से बचने के लिए फरार हो गये थे. शेखर आजाद ने 1928 में लाहौर में ब्रिटिश पुलिस ऑफिर एसपी सॉन्डर्स को गोली मारकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया था.