केंद्र ने दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा- वक्फ अधिनियम के खिलाफ 120 से अधिक याचिकाएं उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित
केंद्र ने बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट को सूचित किया कि देशभर के विभिन्न उच्च न्यायालयों में वक्फ अधिनियम, 1995 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली कम से कम 120 याचिकाएं लंबित हैं.
नई दिल्ली, 22 मार्च : केंद्र ने बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) को सूचित किया कि देशभर के विभिन्न उच्च न्यायालयों में वक्फ अधिनियम, 1995 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली कम से कम 120 याचिकाएं लंबित हैं. रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार के स्थायी वकील (सीजीएससी) कीर्तिमान सिंह ने वक्फ अधिनियम के खिलाफ याचिकाओं का जवाब दाखिल करने के लिए और समय की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया.
सरकारी वकील को मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ ने कार्रवाई शुरू करने और समेकन और सभी मामलों को हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने के लिए आदेश मांगने के लिए कहा था. याचिकाओं में से एक भारतीय जनता पार्टी अश्विनी उपाध्याय की है. सरकार ने अपने आवेदन में दावा किया कि उसे सावधान और एकसमान रुख अपनाना चाहिए क्योंकि देश भर में कई मामले लंबित हैं जो एक या एक से अधिक वक्फ अधिनियम प्रावधानों को चुनौती देते हैं. यह भी पढ़ें : धनशोधन मामला : उच्च न्यायालय ने सत्येंद्र जैन की जमानत अर्जी पर फैसला सुरक्षित किया
सरकार ने प्रस्तुत किया कि वक्फ अधिनियम, 1995 की विभिन्न धाराओं को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को ध्यान में रखते हुए, प्रतिवादियों-आवेदकों के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि एक स्पष्ट और सुसंगत ²ष्टिकोण लिया जाए. इसमें याचिकाओं की गहन जांच, सरकारी वकीलों द्वारा परामर्श/जांच और राज्य सरकारों जैसे अन्य हितधारकों के साथ विचार-विमर्श शामिल है. कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 26 जुलाई के लिए सूचीबद्ध की है.
अपनी याचिका में, उपाध्याय ने तर्क दिया कि वक्फ अधिनियम वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए बनाया गया, लेकिन ईसाई धर्म, बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म, यहूदी धर्म, पारसी धर्म और बहा धर्म के अनुयायियों के लिए कोई समान कानून नहीं हैं. याचिका में कहा गया है कि इसलिए, यह धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्र की एकता और अखंडता के खिलाफ है.
इसमें कहा गया है कि वक्फ बोर्ड में मुस्लिम विधायक, सांसद, आईएएस अधिकारी, नगर योजनाकार, अधिवक्ता और विद्वान सदस्य हैं, जिन्हें सरकारी खजाने से भुगतान किया जाता है, इस तथ्य के बावजूद कि केंद्र मस्जिदों या दरगाहों से कोई पैसा नहीं लेता है. उपाध्याय ने तर्क दिया, दूसरी ओर, राज्य चार लाख मंदिरों से लगभग एक लाख करोड़ रुपये एकत्र करते हैं, लेकिन हिंदुओं के लिए समान प्रावधान नहीं हैं. इस प्रकार, अधिनियम अनुच्छेद 27 का उल्लंघन करता है. दलील में आगे दावा किया गया कि वक्फ संपत्तियों को अन्य धर्मार्थ धार्मिक संगठनों पर प्राथमिकता दी गई थी और वक्फ अधिनियम ने वक्फ बोडरें को बेलगाम शक्ति प्रदान की थी.