केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा-गर्भपात के लिए 20 सप्ताह की समयसीमा नहीं बढ़ायी जा सकती
प्रतीकात्मक तस्वीर (फाइल फोटो)

नई दिल्ली. केंद्र ने उच्चतम न्यायालय में कहा है कि प्रजनन स्वायत्तता का अधिकार किसी भ्रूण के जीवन की रक्षा करने में राज्य के अधिकार को प्रभावित नहीं करता और इसलिए गर्भपात के लिए 20 सप्ताह की समयसीमा को व्यापक रूप से नहीं बढ़ाया जा सकता है. सरकार ने कहा कि कोई अजन्मा शिशु अपनी माँ द्वारा पहुंचाए गए नुकसान से अपनी रक्षा नहीं कर सकता है. केंद्र का यह जवाब एक याचिका पर आया है जिसमें गर्भपात संबंधी कानून, 1971 की धारा 3 (2) (बी) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गयी है. इस कानून के तहत गर्भपात के लिए 20 सप्ताह की समयसीमा तय की गयी है.

याचिकाकर्ताओं ने कानून के तहत 20 सप्ताह के बजाय 26 सप्ताह की तर्कसंगत समयसीमा तय करने की मांग की है. याचिकाकर्ताओं ने उस प्रावधान को भी रद्द करने की मांग की है जो गर्भवती महिला के जीवन को बचाने के मामले में गर्भपात को प्रतिबंधित करता है. यह भी पढ़े-तेलंगाना: गर्भपात के दौरान गर्लफ्रेंड की मौत, प्रेमी ने 24 घंटे तक कार में छुपाकर रखा शव, उसके बाद जो हुआ...

केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि अपने विवेक से विधायिका ने गर्भपात के संबंध में सख्त शर्तों को शामिल किया है और उसने यह ध्यान रखा है कि राज्य अपने नागरिकों का संरक्षक के रूप में नैतिक रूप से बाध्य है तथा उसे गर्भ में भ्रूण के जीवन की रक्षा करने का अधिकार है.