Economic Survey 2019-20: इकोनॉमिक सर्वे की मुख्य बातें, जो हर किसी के लिए है बेहद जरुरी
आम बजट 2020-21 के आने से एक दिन पहले शुक्रवार को संसद में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने इकोनॉमिक सर्वे (Economic Survey) पेश किया. इकोनॉमिक सर्वे में आगामी वित्तीय वर्ष में हालात चुनौतीपूर्ण बने रहने की संभावना जताई है. हालांकि साल 2020-21 के दौरान जीडीपी ग्रोथ 6 से 6.5 रहने का अनुमान जताया गया है.
Budget 2020: आम बजट 2020-21 के आने से एक दिन पहले शुक्रवार को संसद में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने इकोनॉमिक सर्वे (Economic Survey) पेश किया. इकोनॉमिक सर्वे में आगामी वित्तीय वर्ष में हालात चुनौतीपूर्ण बने रहने की संभावना जताई है. हालांकि साल 2020-21 के दौरान जीडीपी ग्रोथ 6 से 6.5 रहने का अनुमान जताया गया है. साथ ही सरकार को सुधारों पर शीघ्रता से काम शुरू करने की बात कही गई है.
सरकार द्वारा शुक्रवार को संसद में पेश वित्त वर्ष 2020 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार वृद्धि दर में तेजी लाने के लिए राजकोषीय समेकन लक्ष्य को सरल बनाने की जरूरत है. आईये जानते है आर्थिक समीक्षा यानि इकोनॉमिक सर्वे की मुख्य बातें-
आर्थिक समीक्षा में 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने संबंधी भारत की आकांक्षा का उल्लेख किया गया है जो निम्नलिखित पर काफी निर्भर है:
- बाजार के अदृश्य सहयोग को मजबूत करना
- इसे भरोसे का सहारा देना
- बिजनेस अनुकूल नीतियों को बढ़ावा देकर अदृश्य सहयोग को मजबूत करना
- नए प्रवेशकों को समान अवसर देना
- उचित प्रतिस्पर्धा और कारोबार में सुगमता सुनिश्चित करना
- सरकार के ठोस कदमों के जरिए बाजारों को अनावश्यक रूप से नजरअंदाज करने वाली नीतियों को समाप्त करना
- रोजगार सृजन के लिए व्यापार को सुनिश्चित करना
- बैंकिंग सेक्टर का कारोबारी स्तर दक्षतापूर्वक बढ़ाना
- एक सार्वजनिक वस्तु के रूप में भरोसे का आइडिया अपनाना जो अधिक इस्तेमाल के साथ बढ़ता जाता है.
- आर्थिक समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि नीतियां ऐसी होनी चाहिए जो डेटा एवं प्रौद्योगिकी के उपयोग के जरिए पारदर्शिता और कारगर अमल को सशक्त बनाए.
जमीनी स्तर पर पर उद्यमिता और धन सृजन
- उत्पादकता को तेजी से बढ़ाने और धन सृजन के लिए एक रणनीति के रूप में उद्यमिता.
- विश्व बैंक के अनुसार, गठित नई कंपनियों की संख्या के मामले में भारत तीसरे पायदान पर.
- वर्ष 2014 के बाद से ही भारत में नई कंपनियों के गठन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है:
- वर्ष 2014 से लेकर वर्ष 2018 तक की अवधि के दौरान औपचारिक क्षेत्र में नई कंपनियों की संचयी वार्षिक वृद्धि दर 12.2 प्रतिशत रही, जबकि वर्ष 2006 से लेकर वर्ष 2014 तक की अवधि के दौरान यह वृद्धि दर 3.8 प्रतिशत थी.
- वर्ष 2018 में लगभग 1.24 लाख नई कंपनियों का गठन हुआ जो वर्ष 2014 में गठित लगभग 70,000 नई कंपनियों की तुलना में तकरीबन 80 प्रतिशत अधिक है.
- आर्थिक समीक्षा में भारत में प्रशासनिक पिरामिड के सबसे निचले स्तर पर यानी 500 से अधिक जिलों में उद्यमिता से जुड़े घटकों और वाहकों पर गौर किया गया है.
- सेवा क्षेत्र में गठित नई कंपनियों की संख्या विनिर्माण, अवसंरचना या कृषि क्षेत्र में गठित नई कंपनियों की तुलना में काफी अधिक है.
- सर्वे में यह बात रेखांकित की गई है कि जमीनी स्तर पर उद्यमिता केवल आवश्यकता से ही प्रेरित नहीं होती है.
- किसी जिले में नई कंपनियों के पंजीकरण में 10 प्रतिशत की वृद्धि होने से सकल घरेलू जिला उत्पाद (जीडीडीपी) में 1.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है.
- जिला स्तर पर उद्यमिता का उल्लेखनीय असर जमीनी स्तर पर धन सृजन पर होता है.
- भारत में नई कंपनियों का गठन विषम है और ये विभिन्न जिलों एवं सेक्टरों में फैली हुई हैं.
- किसी भी जिले में साक्षरता और शिक्षा से स्थानीय स्तर पर उद्यमिता को काफी बढ़ावा मिलता है:
- यह असर सबसे अधिक तब नजर आता है जब साक्षरता 70 प्रतिशत से अधिक होती है.
- जनगणना 2011 के अनुसार, न्यूनतम साक्षरता दर (59.6 प्रतिशत) वाले पूर्वी भारत में सबसे कम नई कंपनियों का गठन हुआ है.
- किसी भी जिले में भौतिक अवसंरचना की गुणवत्ता का नई कंपनियों के गठन पर काफी असर होता है.
- कारोबार में सुगमता और लचीले श्रम कानूनों से विशेषकर विनिर्माण क्षेत्र में नई कंपनियों का गठन करने में आसानी होती है.
- आर्थिक समीक्षा में यह सुझाव दिया गया है कि कारोबार में सुगमता बढ़ाने और लचीले श्रम कानूनों को लागू करने से जिलों और इस तरह से राज्यों में अधिकतम रोजगारों का सृजन हो सकता है.
बिजनेस अनुकूल बनाम बाजार अनुकूल
- आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने संबंधी भारत की आकांक्षा निम्नलिखित पर निर्भर करती है:
- बिजनेस अनुकूल नीति को बढ़ावा देना जो धन सृजन के लिए प्रतिस्पर्धी बाजारों की ताकत को उन्मुक्त करती है.
- सांठगांठ वाली नीति से दूर होना जिससे विशेषकर ताकतवर निजी स्वार्थों को पूरा करने को बढ़ावा मिल सकता है.
- शेयर बाजार के नजरिये से देखें, तो उदारीकरण के बाद व्यापक बदलाव लाने वाले कदमों में काफी तेजी आई :
- उदारीकरण से पहले सेंसेक्स में शामिल किसी भी कंपनी के इसमें 60 वर्षों तक बने रहने की आशा थी. यह अवधि उदारीकरण के बाद घटकर केवल 12 वर्ष रह गई.
- प्रत्येक पांच वर्ष में सेंसेक्स में शामिल एक तिहाई कंपनियों में फेरबदल देखा गया जो अर्थव्यवस्था में नई कंपनियों, उत्पादों और प्रौद्योगिकियों की निरंतर आवक को दर्शाता है.
- प्रतिस्पर्धी बाजारों को सुनिश्चित करने में उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद सांठगांठ को बढ़ावा देने वाली नीतियों ने अर्थव्यवस्था में मूल्य पर अत्यंत प्रतिकूल असर डाला:
- वर्ष 2007 से लेकर वर्ष 2010 तक की अवधि के दौरान आपस में संबंधित कंपनियों के इक्विटी इंडेक्स का प्रदर्शन बाजार के मुकाबले 7 प्रतिशत सालाना अधिक रहा जो आम नागरिकों की कीमत पर प्राप्त असामान्य लाभ को दर्शाता है.
- इसके विपरीत वर्ष 2011 पर इक्विटी इंडेक्स का प्रदर्शन बाजार के मुकाबले 7.5 प्रतिशत कम रहा जो इस तरह की कंपनियों में अंतनिर्हित अक्षमता और मूल्य में कमी को दर्शाता है.
ईसीए के तहत औषधि मूल्य नियंत्रण
- डीपीसीओ 2013 के जरिए औषधियों के मूल्यों को नियंत्रित किए जाने से नियंत्रित दवाओं की कीमतें अनियंत्रित समान दवाओं की तुलना में ज्यादा बड़ी.
- सस्ती दवाओं के फॉर्मुलेशन की कीमत खर्चीली दवाओं के फॉर्मुलेशन से ज्यादा बढ़ी.
- इसने इस बात को साबित किया कि डीपीसीओ सस्ती दवाओं की उपलब्धता के जो प्रयास किए वे उल्टे रहे.
- सरकार दवाओं का एक बड़ा खरीददार होने के कारण सस्ती दवाओं की कीमतें कम करने के लिए दबाव डाल सकती है.
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को सरकार की ओर से दवाओं की खरीद का सौदा अपने हिसाब से करने के इस अधिकार का पारदर्शी तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए.
खाद्यान्न बाजार में सरकार के हस्तक्षेप
- खाद्यान्न बाजार में सरकारी हस्तक्षेप के कारण, सरकार गेहूं और चावल की सबसे बड़ी खरीददार होने के साथ ही सबसे बड़ी जमाखोर भी हो गई है.
- निजी कारोबार से सरकार का हटना
- सरकार पर खाद्यान्न सब्सिडी का बोझ बढ़ना
- मार्केट की अक्षमताएं बढ़ने से कृषि क्षेत्र का दीर्धावधि विकास प्रभावित
- खाद्यन्न में नीति को अधिक गतिशील बनाना तथा अनाजों के वितरण के लिए पारंपरिक पद्धति के स्थान पर नकदी अंतरण – फूड कूपन तथा स्मार्ट कार्ड का इस्तेमाल करना.
कर्ज माफी
- केंद्र और राज्यों की ओर से दी जाने वाली कर्ज माफी की समीक्षा
- पूरी तरह से कर्ज माफी की सुविधा वाले लाभार्थी कम खपत, कम बचत, कम निवेश करते हैं जिससे आंशिक रूप से कर्ज माफी वाले लाभार्थियों की तुलना में उनका उत्पादन भी कम होता है.
- कर्ज माफी का लाभ लेने वाले ऋण उठाव के चलन को प्रभावित करते हैं.
- वे कर्ज माफी का लाभ प्राप्त करने वाले किसानों के लिए औपचारिक ऋण प्रवाह को कम करते हैं और इस तरह कर्ज माफी के औचित्य को खत्म कर देते हैं.
समीक्षा के सुझाव
- सरकार को अपने अनावश्यक हस्तक्षेप वाले बाजार के क्षेत्रों की व्यवस्थित तरीके से जांच की करनी चाहिए.
- सुझाव दिया गया है कि विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में जो सरकारी हस्तक्षेप कभी सही रहे थे वे अब बदलती अर्थव्यवस्था के लिए अप्रासंगिक हो चुके हैं.
- ऐसे सरकारी हस्तक्षेपों के खत्म किए जाने से बाजार प्रतिस्पर्धी होंगे जिससे निवेश और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा.
नेटवर्क उत्पादों में विशेषज्ञता के जरिए विकास और रोजगार सृजन
- समीक्षा में कहा गया है कि भारत के पास श्रम आधारित निर्यात को बढ़ावा देने के लिए चीन के समान अभूतपूर्व अवसर हैं.
- दुनिया के लिए भारत में एसेम्बल इन इंडिया और मेक इन इंडिया योजना को एक साथ मिलाने से निर्यात बाजार में भारत की हिस्सेदारी 2025 तक 3.5 प्रतिशत तथा 2030 तक 6 प्रतिशत हो जाएगी.
- 2025 तक देश में अच्छे वेतन वाली 4 करोड़ नौकरियां होंगी और 2030 तक इनकी संख्या 8 करोड़ हो जाएगी.
- 2025 तक भारत को 5 हजार अरब वाली अर्थव्यवस्था बनाने के लिए जरूरी मूल्य संवर्धन में नेटवर्क उत्पादों का निर्यात एक तिहाई की वृद्धि करेगा.
- समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि निम्नलिखित अवसरों का लाभ उठाने के लिए भारत को चीन जैसी रणनीति का पालन करना चाहिए.
- श्रम आधारित क्षेत्रों विशेषकर नेटवर्क उत्पादों के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विशेषज्ञता हासिल करना.
- नेटवर्क उत्पादों के बड़े स्तर पर एसेम्लिंग की गतिविधियों पर खासतौर से ध्यान केंद्रित करना.
- अमीर देशों के बाजार में निर्यात को बढ़ावा देना.
- निर्यात नीति सुविधाजनक होना.
- आर्थिक समीक्षा में भारत की ओर से किए गए व्यापार समझौतों का कुल व्यापार संतुलन पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण किया गया है.
- इसके अनुसार भारत की ओर निर्यात किए कुल उत्पादों में 10.9 प्रतिशत की जबकि विनिर्माण उत्पादों के निर्यात में 13.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई.
- कुल आयातित उत्पादों में 8.6 प्रतिशत तथा विनिर्माण उत्पादों के आयात में 12.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई.
- प्रति वर्ष भारत के विनिर्माण उत्पादों के व्यापार अधिशेष में 0.7 प्रतिशत तथा कुल उत्पादों के व्यापार अधिशेष में 2.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
भारत में कारोबारी सुगमता लक्ष्य
विश्व बैंक के कारोबारी सुगमता रैंकिंग में भारत 2014 में जहां 142वें स्थान पर था वहीं 2019 में वह 63वें स्थान पर पहुंच गया.
हालांकि इसके बावजूद भारत कारोबार शुरू करने की सुगमता संपत्ति के रजिस्ट्रेशन, करों का भुगतान और अनुबंधों को लागू करने के पैमाने पर अभी भी काफी पीछे हैं.
समीक्षा में कई अध्ययनों को शामिल किया गया है:
- वस्तुओं के निर्यात में लॉजिस्टिक सेवाओं का प्रदर्शन निर्यात की तुलना में आयात के क्षेत्र में ज्यादा रहा.
- बेंगलूरू हवाई अड्डे से इलेक्ट्रॉनिक्स आयात और निर्यात ने यह बताया कि किस तरह भारतीय लॉजिस्टिक सेवाएं किस तरह विश्वस्तरीय बन चुकी है.
- देश के बंदरगाहों में जहाजों से माल ढुलाई का काम 2010-11 में जहां 4.67 दिन था वहीं 2018-19 में करीब आधा रहकर 2.48 हो गया.
कारोबारी सुगमता को और बेहतर बनाने के सुझाव
- कारोबारी सुगमता को बेहतर बनाने के लिए दिए गए सुझावों में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड, जहाजरानी मंत्रालय औरअन्य बंदरगाह प्राधिकरणों के बीच में करीबी सहयोग शामिल है.
- सुझाव में कहा गया है कि पर्यटन या विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में अवरोध खड़े करने वाली नियामक प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिए ज्यादा लक्षित उपायों की जरूरत है.
बैंकों के राष्ट्रीयकरण की स्वर्ण जयंती एक समीक्षा
- समीक्षा में कहा गया कि 2019 में भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण का 50 वर्ष पूरे हुए.
- कहा गया कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण की स्वर्ण जयंती के अवसर पर सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों के कर्मचारियों ने खुशी मनाई कि सर्वेक्षण सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों के वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन का सुझाव दिया गया.
- इसमें कहा गया कि वर्ष 1969 से जिस रफ्तार से देश की अर्थव्यवस्था का विकास हुआ उस हिसाब से बैंकिंग क्षेत्र विकसित नहीं हो सका.
- भारत का केवल एक बैंक विश्व के 100 शीर्ष बैंकों में शामिल हैं. यह स्थिति भारत को उन देशों की श्रेणी में ले जाती हैं जिनकी अर्थव्यवस्था का आकार भारत के मुकाबले कई गुना कम जैसे कि फिनलैंड जो भारत (लगभग 1/11वां भाग) और (डेनमार्क लगभग 1/8वां भाग).
- एक बड़ी अर्थव्यवस्था में सशक्त बैंकिंग क्षेत्र को होना बहुत जरूरी है.
- चूकिं भारतीय बैंकिंग व्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत है इसलिए अर्थव्यवस्था को सहारा देने में इनकी जिम्मेदारी बड़ी है.
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक प्रदर्शन के पैमाने पर अपने समकक्ष समूहों की तुलना में उतने सक्षम नहीं हैं.
- 2019 में सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों में औसतन प्रति एक रूपये के निवेश पर 23 पैसे का घाटा हुआ, जबकि गैर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 9.6 पैसे का मुनाफा हुआ.
- पिछले कई वर्षों से सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों में ऋण वृद्धि गैर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की तुलना में काफी कम रही.
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अधिक सक्षम बनाने के उपाय
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के शेयर में कर्मचारियों के लिए हिस्सेदारी की योजना.
- बैंक के बोर्ड में कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व बढ़ाना तथा उन्हें बैंक के शेयर धारकों के अनुसार वित्तीय प्रोत्साहन देना.
- जीएसटीएन जैसी व्यवस्था करना ताकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से उपलब्ध आंकड़ों का संकलन किया जा सके और बैंक से कर्ज लेने वालों पर बेहतर निगरानी रखने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजैंस और मशीन लर्निंग जैसी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना.
एनबीएफसी क्षेत्र में वित्तीय जोखिम
- बैंकिंग क्षेत्र में नकदी के मौजूदा संकट को देखते हएु शेडों बैंकिंग के खतरों को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारणों का पता लगाना.
आवर्ती जोखिम के मुख्य घटक
- आस्ति देयता प्रबन्धन (एएलएम) जोखिम
- अंतर संयोगी जोखिम
- गैर-वित्तीय कम्पनी के वित्तीय और संचालन लचीलापन
- अल्पावधि के बड़े फंडिंग पर अत्यधिक निर्भरता
समीक्षा नैदानिक (हेल्थ स्कोर) की गणना करता है इसके लिए हाउसिंग फाइनान्स कम्पनी और रिटेल गैर-बैंकिंग रिटेल कम्पनियों की आवर्ती जोखिम की गणना की जाती है.
हेल्थ स्कोर का विश्लेषण
- हाउसिंग फाइनान्स कम्पनी क्षेत्र के लिए हेल्थ स्कोर में 2014 के बाद घटते हुए रूझान को प्रदर्शित किया गया है. 2019 के अंत तक सम्पूर्ण क्षेत्र का हेल्थ स्कोर काफी खराब रहा.
- रिटेल गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों हेल्थ स्कोर 2014 से 2019 तक काफी कम था.
- बड़ी रिटेल गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों का हेल्थ स्कोर अधिक था परन्तु मध्यम और छोटी कम्पनियों के पास 2014 से 2019 तक का हेल्थ स्कोर कम था.
- उपर्युक्त निष्कर्षों से पता चलता है कि हेल्थ स्कोर से आसन नगदी समस्याओं की पूर्व चेतावनी का संकेत मिलता है.
निजीकरण और धन सृजन
- समीक्षा में सीपीएससी के विनिवेश से होने वाले लाभों की जांच की गई है और इससे सरकारी उद्यमों के विनिवेश करने को बल मिलता है.
- एचपीसीएल में सरकार की 53.29 प्रतिशत हिस्सेदारी के विनिवेश से राष्ट्रीय सम्पदा में 33,000 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई.
- 1999-2000 से 2003-04 के दौरान 11 केन्द्रीय उद्यमों के रणनीतिक विनिवेश के प्रदर्शन का विश्लेषण किया गया है.
- केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के नेटवर्थ कुल लाभ परिसम्पत्तियों से आय, इक्विटी पर लाभ आदि में वृद्धि दर्ज की गई है.
- निजी हाथों में सौपे गए केन्द्रीय उपक्रमों ने समान संसाधनों से अधिक संपत्ति अर्जित करने में सफलता प्राप्त की है.
- समीक्षा में केन्द्रीय उपक्रमों के विनिवेश का सुझाव दिया गया है.
- अधिक लाभ के लिए
- दक्षता को बढ़ावा देने के लिए
- प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए
- व्यवसायवाद को बढ़ावा देने के लिए
थालीनॉमिक्सः भारत में भोजन की थाली की अर्थव्यवस्था
- पूरे भारत में थाली के लिए आम व्यक्ति द्वारा कितना भुगतान किया जाता है परिमाणित करने का एक प्रयास है.
- 2015-16 को वह वर्ष माना जा सकता है जब खाद्य मूल्य के व्यवहार में परिवर्तन हुआ था.
- पूरे भारत के चारों क्षेत्रों में हम देखते है कि 2015-16 से शाकाहारी थाली के मूल्य में काफी कमी आई है हालांकि मूल्य में 2019-20 में वृद्धि हुई है.
- 2015-16 के बाद
- शाकाहारी थाली के मामले में खाद्य मूल्य में कमी होने से औसत परिवार को औसतन लगभग 11,000 रुपये का लाभ हुआ है.
- जो परिवार औसतन दो मांसाहारी थाली खाता है उसे समान अवधि के दौरान लगभग 12,000 रुपये का लाभ हुआ है.
- 2006-07 से 2019-20 तक
- शाकाहारी थाली की वहनीयता 29 प्रतिशत बेहतर हुई है.
- मांसाहारी थाली की वहनीयता 18 प्रतिशत बेहतर हुई है.
2019-20 में भारत का आर्थिक प्रदर्शन
- भारत की जीडीपी 2019-20 की पहली छमाही में 4.8 प्रतिशत रही इसका कारण कमजोर वैश्विक विनिर्माण, व्यापार और मांग है.
- वास्तविक उपभोग वृद्धि दूसरी तिमाही में बेहतर हुई है. इसका कारण सरकारी खपत में वृद्धि होना है.
- कृषि और सम्बन्धित गतिविधि, लोक प्रशासन, रक्षा और अन्य सेवाओं में 2019-20 की पहली छमाही में वृद्धि 2018-19 की दूसरी छमाही से अधिक थी.
- चालू खाता घाटा कम होकर 2019-20 की पहली छमाही में जीडीपी का 1.5 प्रतिशत रह गया. जबकि 2018-19 में यह 2.1 प्रतिशत था.
- विदेशी प्रत्यक्ष निवेश बेहतर हुआ.
- पोर्टफॉलियो प्रवाह मजबूत हुआ.
- विदेशी मुद्रा भण्डार मजबूत हुआ.
- 2019-20 की पहली छमाही में निर्यात की तुलना में आयात में कमी आई.
- महंगाई दर में साल के अंत तक कमी आएगी.
- 2019-20 की पहली छमाही में 3.3 प्रतिशत से बढ़कर दिसम्बर में 7.35 प्रतिशत हो गई.
- सीपीआई तथा डब्ल्यूपीआई में वृद्धि दर्शाती है कि मांग में वृद्धि हुई है.
- जीडीपी में मंदी का कारण विकास चक्र का धीमा होना है.
- निवेश खपत और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 2019-20 के दौरान निम्न सुधार किए गए.
- दिवाला प्रक्रिया (दिवाला एवं दिवालियापन संघीता) को तेज बनाया गया
- राज्यों का वित्तीय घाटा एफआरबीएम अधिनियम द्वारा निर्धारित लक्ष्यों के दायरे में है.
- समीक्षा में कहा गया है कि सरकारें (केन्द्र और राज्य) वित्तीय मजबूती के पथ पर है.
उल्लेखनीय है कि यह 2015-16 के बाद पहली बार होगा, जब बजट शनिवार को पेश किया जाएगा. फरवरी की शुरुआत में बजट पेश करने के पीछे का कारण 31 मार्च तक बजटीय प्रक्रिया को पूरा करना होता है, ताकि 12 महीने के लिए खर्च की कवायद एक अप्रैल से ही शुरू हो सके.