महापरिनिर्वाण दिन: जानें बाबा साहेब अंबेडकर के जीवन से जुड़ी कुछ अनकही रोचक बातें
भारतीय संविधान के रचयिता बाबा साहेब आंबेडकर को कौन नहीं जानता, भारतीय संविधान बनाने के साथ- साथ वो एक समाज सुधारक और महान नेता भी थे. जिनके अहम योगदान को पूरी दुनिया जानती है...
भारतीय संविधान के रचयिता बाबा साहेब आंबेडकर (BR Ambedkar death anniversary )को कौन नहीं जानता, भारतीय संविधान बनाने के साथ- साथ वो एक समाज सुधारक और महान नेता भी थे. जिनके अहम योगदान को पूरी दुनिया जानती है. बाबा साहेब आंबेडकर दलितों के उत्थान के लिए और समाज में उनके अधिकार के लिए जीवन भर संघर्ष करते रहे. अंबेडकर महार जाति के थे. इस जाति के लोगों को समाज में अछूत माना जाता था और उनके साथ भेदभाव किया जाता था. इसी वजह से बाबा साहेब को दलितों और पिछड़े तबके के लोगों के लिए आवाज़ उठाने कि प्रेरणा मिली. आज 6 दिसंबर है, आज ही के दिन बाबा साहेब का आज के दिन निधन हुआ था. जिसे महापरिनिर्वाण दिवस के नाम पर मनाया महापरिनिर्वाण दिवस (Mahaparinirvan Din) के रूप में मनाया जाता है. आइए जानते हैं बाबा साहेब से जुड़े कुछ रोचक तथ्य.
1. बाबा साहेब का पूरा नाम भीमराव आंबेडकर था. उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के छोटे से गांव महू में हुआ था. वो एक मराठी परिवार से थे और मूलरूप से रत्नागिरी जिले के आंबडवे से थे.उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था. बाबा साहेब पिछड़ी जाती से थे इसलिए उनके साथ समाज में भेद भाव किया जाता था.
2. अंबेडकर बचपन तेज बुद्धि के थे लेकिन छुआछूत कि वजह उन्हें प्रारंभिक शिक्षा में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. वो जब अपनी स्कूली पढ़ाई के लिए मुंबई एल्फिंस्टन रोड पर स्थित गवर्नमेंट स्कूल आये तो उनके साथ छुआछूत का व्यवहार किया गया था. 1913 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए उनका सेलेक्शन किया गया. जहां से उन्होंने पॉलिटिकल साइंस में ग्रैजुएशन किया. 1913 में एक रिसर्च के लिए उन्हें पीएचडी(PHD)से सम्मानित किया गया.
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3. बाबा साहेब लंदन से इकोनॉमिक्स(ECONOMICS)में डॉक्टरेट करना चाहते थे लेकिन स्कॉलरशिप ख़त्म होने की वजह से उन्हें भारत वापस आना पड़ा. भारत आने के बाद उन्होंने ट्यूटर और कंसल्टिंग का काम शुरू किया लेकिन भेदभाव कि वजह से उन्हें सफलता नहीं मिली. काफी कठिनाइयों के बाद उनकी मुंबई के सिडनेम कॉलेज(SYDENHAM COLLEGE)में प्रोफ़ेसर के रूप में नियुक्ति हुई.
4. बाबा साहेब ने 1936 में स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना कि, 1937 के चुनाव में इस पार्टी ने 15 सीटें जीती. दलितों को महात्मा गांधी हरिजन कहकर बुलाते थे, इसपर बाबा साहेब ने उनका विरोध किया. उन्होंने 'थॉट्स ऑन पाकिस्तान' और 'वॉट कांग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स' जैसी कई विवादित किताबें लिखीं.
5. वो बहुत बड़े विद्वान थे, इसलिए उन्हें भारत का पहला कानून मंत्री बनाया गया और 29 अगस्त 1947 को भारतीय संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष चुना गया. आपको बता दें मरणोपरांत उन्हें भारत रत्न से नवाज़ा गया.
6. 14 अक्टूबर 1956 में बाबा साहेब ने विजया दशमी के दिन नागपुर में अपने पांच लाख साथियों के साथ बौद्ध धर्म कि दीक्षा ली. उन्होंने 1956 में बौद्ध धर्म पर आखिरी किताब लिखी जिसका नाम था 'द बुद्ध एंड हिज़ धम्म'.इस किताब को पूरा करने के तीन दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई. यह किताब उनकी मृत्यु के बाद 1957 में प्रकाशित हुई.