Corona Pandemic: कोरोना काल में भीख मांगने वाले बच्चों के हाथ में किताब
कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए उठाए गए एहतियाती कदमों का आम-आदमी से लेकर बच्चों तक की जिंदगी पर बड़ा असर पड़ा है. स्कूल बंद चल रहे हैं, ऐसे में बच्चों को जहां काम में लगाया जा रहा है, वहीं भीख मांगने भी जाते हैं, इसे रोकने के लिए भी पहल करने वालों की कमी नहीं है.
राजगढ़, 21 दिसम्बर: कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए उठाए गए एहतियाती कदमों का आम-आदमी से लेकर बच्चों तक की जिंदगी पर बड़ा असर पड़ा है. स्कूल बंद चल रहे हैं, ऐसे में बच्चों को जहां काम में लगाया जा रहा है, वहीं भीख मांगने भी जाते हैं, इसे रोकने के लिए भी पहल करने वालों की कमी नहीं है. मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के राजगढ़ (Rajgarh) जिले में गरीब परिवारों के बच्चे भीख मांगने न जाएं, उनकी पढ़ाई होती रहे, इसके लिए अनुपम पहल की गई है. राजगढ़ जिले में कई इलाके ऐसे हैं जहां नाथ समुदाय के परिवारों का निवास है. इन परिवारों की माली हालत अच्छी नहीं है, वे मजदूरी और भीख मांगकर अपना भरण पोषण करते हैं. कोरोना के कारण स्कूल बंद हैं तो बच्चे अपने गांव से निकलकर भीख मांगने का काम करते हैं. कोरोना काल में बच्चों की पढ़ाई जारी रहे, इसके लिए अहिंसा वेलफेयर सोसायटी के सदस्यों ने मुहिम छेड़ी है.
सोसायटी के अरुण सालातकर (Arun Salatkar) बताते हैं कि, "एक दिन उनकी संस्था के सदस्य बाजार में निकले, जहां कई बच्चे भीख मांगते दिखे. जब बच्चों से पूछा गया कि आखिर वो भीख क्यों मांग रहे हैं, तो उन्होंने बताया कि वे नाथ समुदाय से हैं और टिटोड़ी गांव में रहने वाले हैं. इन दिनों उनके स्कूल बंद हैं इसलिए भीख मांगने निकले हैं."यह भी पढ़े: लखपति भिखारी! ट्रेन में भीख मांगने वाले शख्स के पास से मिली लाखों की एफडी और सिक्के, जानकर आप भी रह जाएंगे दंग.
टिटोड़ी (Titodi) गांव तीन टोलों में बसा है, इन सभी टोलों में 70 स्कूल और आंगनवाड़ी जाने योग्य बच्चे हैं और कुल जनसंख्या 139 है. परिवारों की संख्या 22 है. तीनों टोलों में नाथ समुदाय के लोग रहते हैं, जो भिक्षा मांगने, चटाई और प्लास्टिक की कुर्सियां बेचने का काम करते हैं.
सालातकर बताते हैं कि, "बच्चे भीख न मांगे और पढ़ाई करें, इसके लिए उन्होंने चाइल्ड राइट ऑब्जरवेटरी के साथ मिलकर इन बच्चों को घर पर ही पढ़ाने की योजना बनाई. कोरोना के कारण स्कूल बंद हैं, तो ऑनलाइन पढ़ाई कराई जा रही है. इन बच्चों के पास न तो टीवी है और न ही मोबाइल. इस पर संस्था के सदस्यों ने तय किया कि इन बच्चों को घर पर जाकर ही पढ़ाया और लिखाया जाए, इसके साथ ही खेलकूद का भी इंतजाम किया जाए. उसी के मुताबिक संस्था के सदस्य नियमित तौर पर 20 बच्चों को पढ़ाते हैं, इनमें अधिकांश बच्चे प्राथमिक कक्षाओं के हैं."