MP हाईकोर्ट का बड़ा फैसला! रेप पीड़िताओं की मेडिकल जांच में अब प्रेग्नेंसी टेस्ट अनिवार्य, समय रहते हो सकेगा एबॉर्शन
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MP High Court Big Decision: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने रेप पीड़िताओं के हित में एक बेहद अहम और मानवीय फैसला सुनाया है. अब राज्य में दुष्कर्म की शिकायत मिलते ही पीड़िता की मेडिकल जांच के दौरान प्रेग्नेंसी टेस्ट अनिवार्य कर दिया गया है. जस्टिस विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने डीजीपी (डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस) को आदेश दिया है कि वे प्रदेश के सभी जिलों के एसपी को इस आदेश का पालन कराने के निर्देश दें. हाईकोर्ट का मानना है कि अगर शुरूआती जांच में ही यह पता चल जाए कि पीड़िता गर्भवती है.

इससे समय रहते गर्भपात (एबॉर्शन) जैसे फैसले लिए जा सकते हैं, जिससे पीड़िता की जान बचाई जा सकती है. खासकर नाबालिग पीड़िताओं के मामलों में यह देरी जानलेवा साबित हो सकती है.

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सीहोर जिला का है मामला

इस फैसले की पृष्ठभूमि में सीहोर जिले का एक मामला है. वहां एक नाबालिग रेप पीड़िता की गर्भावस्था का पता बहुत देर से चला, जब गर्भ 24 हफ्तों से ज्यादा का हो चुका था. ऐसे में भारतीय कानून के मुताबिक, गर्भपात के लिए हाईकोर्ट की मंजूरी जरूरी हो जाती है. मेडिकल रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि गर्भ को जारी रखना भी नाबालिग की जान के लिए खतरनाक हो सकता है और गर्भपात करना भी जोखिम से खाली नहीं है. कोर्ट के सामने यह बड़ा सवाल था कि जान बचाने का सही रास्ता क्या हो सकता है.

इस मामले को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने यह ऐतिहासिक आदेश दिया कि अब से हर दुष्कर्म पीड़िता की जांच प्रक्रिया में प्रेग्नेंसी टेस्ट को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए. कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर पीड़िता या उसके माता-पिता गर्भपात कराना चाहते हैं तो समय पर निर्णय लेना जरूरी है, वरना देरी जान के लिए घातक हो सकती है.

रेप पीड़िताओं को मिलेगी राहत

हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद अब राज्य पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी है कि वे इस निर्णय को जमीनी स्तर पर लागू करें. सभी संबंधित विभागों को सहयोग के लिए तैयार रहने को कहा गया है.

यह फैसला न केवल न्याय प्रक्रिया को तेज करेगा, बल्कि रेप पीड़िताओं को मानसिक और शारीरिक राहत देने की दिशा में भी मील का पत्थर साबित हो सकता है. माता-पिता और परिजनों को भी अब और जागरूक रहना होगा ताकि समय रहते सही कदम उठाए जा सकें.