Shaheed Bhagat Singh Birth Anniversary: भारत के वीर सपूत शहीद भगत सिंह की 112वीं जयंती, जाने उनसे जुड़ी खास बातें
वीर सपूत सरदार भगत सिंह (Photo Credit: File Photo)

Bhagat Singh 112th Birth Anniversary: भारत के वीर सपूत सरदार भगत सिंह (Shaheed Bhagat Sing) का 28 सितंबर यानी शनिवार को 112वीं जयंती है. 28 सितंबर 1907  को उनका जन्म अविभाजित पंजाब के लायलपुर अब जो पाकिस्तान (Pakistan) बन चुका हैं वहां पर हुआ था. भगत सिंह देश की आजादी के लिए छोटी उम्र से ही  लड़ाई में शामिल हो गए और उनकी क्रांतिकारी भावना को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उनके 23 मार्च 1931 को 23 बरस के भगत को फांसी पर लटका दिया. उन्होंने अपनी जान की परवाह ना करते हुए हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गए थे. उनके इस बलिदान को आज भी याद किया जाता है.

आज हम आपको उनसे जुडी कुछ अहम बाते बताने जा रहे हैं. शायद कुछ लोगों के उनके बारे में वह बाते नहीं मालूम होगी कि वह क्यों क्रांतिकारी बने और उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ क्यों बंदूक उठानी पड़ी.

बंदूक की खेती की:

क्रांतिकारी भगत सिंह के बारे में बताया जाता है कि जब छोटे से थे. उनके घर में रखी बंदूक एक दिन खेलते खेलते उनके हाथ में लग गई. उन्होंने घर वालों को देखा कि वे खेत में पेड़ पौधे लगा रहे है. जिसके बाद उन्होंने घर में रखी बंदूक को खेत में लाकर गढ्ढा खोदना शुरू कर दिए. जब  उनके पिता जी और परिवार वाले उनसे पूछा कि वे क्या कर रहे है तो उनका जवाब दिया कि वे बंदूक की खेती कर रहे हैं. ताकि एक बंदूक से वे कई बंदूक उगा कर  बंदूक के सहारे लड़कर अग्रेजों को अपने देश से भागकर  देश को आजाद करा सके. यह भी पढ़े: Bhagat Singh Birth Anniversary: जब भगत सिंह की मां से हुई थी मुलाकात, तब उनकी गोद में सर रखकर सोये थे मनोज कुमार

जलियांवाला बाग की घटना के बाद बने क्रांतिकारी

1919 में जलियांवाला बाग कांड हुआ. इस घटना में जनरल डायर ने कई मासूमों की जान ले ली. जिसके बाद भगत सिंह के दिल में अंग्रेजों के खिलाफ नफरत पैदा हो गई. उन्होंने कसम खा ली की वे अंग्रेजों को देश से भगा कर रहेंगे. फिर क्या था उनके बारे में बताया जाता है कि इस कांड के बाद भगत सिंह जब जलियांवाला बाग में गए थे तो उन्होंने उस मिट्टी को माथे से लगाकर नमन किया था. जिसके भगत सिंह अपनी कॉलेज छोड़कर क्रांतिकारी बन गए .

सेंट्रल असेम्बली पर फेंके बम:

सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाने के लिए सेंट्रल असेम्बली में आठ अप्रैल, 1929 को बम फेंका था. पर यह बम किसी को मारने के लिए नहीं फेंका था. इसीलिए बम भी असेम्बली की खाली जगह पर फेंका था. इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार कांप उठी. जिसके बाद इस घटना को लेकर सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर सेंट्रल असेम्बली में बम फेंकने को लेकर केस दर्ज हुआ और सुखदेव और राजगुरू को भी गिरफ्तार किया गया. अदालत ने 7 अक्टूबर 1930 को दोषी करार देते हुए फैसला सुनाया था कि भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को फांसी और बटुकेश्वर दत्त उम्रकैद की सजा दी.

लाहौर की सेंट्रल जेल में दी गई थी फांसी

भारत माता के इस वीर सपूत को  लाहौर की सेंट्रल जेल में 23 मार्च 1931 को फांसी की सजा दी गई. भगत सिंह देश के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए. अंग्रेजों ने भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी तो दे दी लेकिन उन्हें डर था कि कहीं कोई आंदोलन ना भड़क जाए. इसलिए उन्होंने   फांसी की सजा 24 तारीख की बजाय उन्हें 23 मार्च को फांसी दे दी गई.

फांसी से पहले तीनों देशभक्ति के गाने गा रहे थे:

मेरा रंग दे बसन्ती चोला, मेरा रंग दे

मेरा रंग दे बसन्ती चोला

माय रंग दे बसंती चोला

हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए:

सरदार भगत सिंह को अंग्रेजों द्वारा जब फांसी की सजा सुनाई गई. अंग्रेजों को लगा था कि सरदार भगत सिंह फांसी की सजा को सुनकर डर जाएंगे. लेकिन वे फांसी की खबर सुनकर डरने की बजाय हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए. वहीं फांसी से पहले जब भगत सिंह से पूछा गया कि आप आखिरी शब्द क्या कहना चाहते हो तो उन्होंने कहा था, ''सिर्फ़ दो संदेश है साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और 'इंक़लाब ज़िदाबाद.'' जिसके बाद वे फांसी का चूमकर फांसी पर लटक गए. आज यही वजह है कि भारत के वीर सपूत भगत सिंह के शहादत को हर कोई याद कर उसका सीना देश के लिए चौड़ा हो जाता है.