दक्षिण भारत में एक बार फिर हिंदी भाषा को लेकर सियासी गहमागहमी तेज हो सकती है. हिंदी में लगे साइनेज बोर्ड को हटाकर उसकी जगह पर कन्नड़ या इंग्लिश बोर्ड लगाने की बाते उठने लगी है. दरअसल कन्नड़ विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष टी नागभरण (T Nagabharana) ने मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के अधिकारियों के साथ बैठक के दौरान कहा कि बेंगलुरु मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (Bengaluru Metro Rail Corporation) को मेट्रो स्टेशनों और ट्रेनों से हिंदी साइनेज (Hindi Signage) को हटाना चाहिए. मेट्रो ट्रेनों और स्टेशनों में संकेत कन्नड़ और अंग्रेजी (Kannada & English) में होना चाहिए.
बता दें कि इससे पहले साल 2017 में मेट्रो बोर्ड पर लिखे हिंदी साइनेज पर स्याही लगाकर उन्हें ढक दिया गया था. हिंदी बोर्ड हटाने की मांग लेकर कन्नड़ रक्षणा वैदिक के कार्यकर्ताओं ने कई स्टेशंस पर बोर्ड के हिंदी वाले हिस्से पर स्याही लगा दी थी. प्रदर्शन करने वाले लोगों का कहना था कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में अगर कन्नड़ में बोर्ड नहीं लगाए जाते हैं. तो ऐसे में कर्नाटक में क्यों हिंदी के बोर्ड लगते हैं.
देश में हिंदी को लेकर इससे पहले भी विवाद उठ चुका है. इसी महीने दक्षिण भारत के कुछ राजनेताओं ने आयुष मंत्रालय पर आरोप लगाया है कि हिंदी भाषा नहीं बोलने वालों के साथ पक्षपात किया जा रहा है. जिसके बाद जेडीएस (JDS) नेता एचडी कुमार स्वामी (H. D. Kumaraswamy) ने इस मामले में कहा था कि हिंदी न जानने वाले दूसरी भाषाओं के कितने लोगों को बलिदान देना होगा.
ANI का ट्वीट:-
Bengaluru Metro Rail Corporation should remove Hindi signage from metro stations & trains. Signages in metro trains & stations should be in Kannada & English: Kannada Development Authority Chairman T Nagabharana said during meeting with Bengaluru Metro Rail Corporation officials
— ANI (@ANI) August 27, 2020
दरअसल आयुष सचिव वैद्य राजेश कोटेचा (Rajesh Kotecha) ने हाल ही में एक वर्चुअल प्रशिक्षण सत्र के दौरान कहा कि जो लोग हिंदी नहीं बोल सकते हैं वे छोड़कर जा सकते हैं, क्योंकि मुझे अंग्रेजी अच्छी तरह से नहीं आती है. राजेश कोटेचा के इस बयान के बाद मामला सियासी रंग ले चुका है, उसमें अब मेट्रो को हिंदी करने का मसला आग में घी का काम कर सकता है.