Bankim Chandra Chattopadhyay Punyatithi 2020: बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की पुण्यतिथि, जानें राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' के रचयिता से जुड़ी रोचक और अनसुनी बातें
राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के रचयिता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की आज पुण्यतिथि है. उनका निधन 8 अप्रैल 1894 में हुआ था. उनका पूरा नाम बंकिम चंद्र चटर्जी था, लेकिन लोग उन्हें बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के नाम से जानते हैं. वे बंगला के बेहद सम्मानित और प्रख्यात साहित्यकार, कवि, उपन्यासकार और पत्रकार थे. उनकी लेखन का अन्य भाषाओं पर भी व्यापक प्रभाव देखने को मिला.
Bankim Chandra Chattopadhyay Death Anniversary 2020: राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' (National Song Vande Mataram) के रचयिता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की आज पुण्यतिथि (Bankim Chandra Chattopadhyay Punyatithi) है. उनका निधन 8 अप्रैल 1894 को हुआ था. उनका पूरा नाम बंकिम चंद्र चटर्जी था, लेकिन लोग उन्हें बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय (Bankim Chandra Chattopadhyay) के नाम से जानते हैं. वे बंगला के बेहद सम्मानित व प्रख्यात साहित्यकार, कवि, उपन्यासकार और पत्रकार थे. उनकी लेखन का अन्य भाषाओं पर भी व्यापक प्रभाव देखने को मिला. बता दें कि बंकिम चंद्र द्वारा रचित राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम से स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारियों को प्रेरणा मिलती थी और आज भी इस गीत पर हर हिंदुस्तानी गर्व महसूस करता है.
उनका जन्म 27 जून 1838 को पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के कांठलपाड़ा नामक गांव में एक समृद्ध और परंपरागत बंगाली परिवार में हुआ था. बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय व राष्ट्रीय गीत के रचयिता की पुण्यतिथि के अवसर पर चलिए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी रोचक बातें.
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय से जुड़ी रोचक बातें
1- बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने मेदिनीपुर में अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद हुगली के मोहसीन कॉलेज में दाखिला लिया. कहा जाता है कि जब उनके अंग्रेजी अध्यापक ने उन्हें बुरी तरह से डांटा था, तब से अंग्रेजी भाषा के प्रति उनका लगाव खत्म हो गया और अपनी मातृभाषा के प्रति उनकी रूचि बढ़ने लगी.
2- बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की शादी 11 साल की उम्र में ही हो गई थी, लेकिन कुछ साल में ही उनकी पहली पत्नी के स्वर्गवास हो गया, जिसके बाद उन्होंने दूसरी शादी की थी.
3- साल 1856 में उन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में एडमिशन लिया और 1857 के विद्रोह के दौरान प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीए की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले भारतीय बने.
4- बीए की डिग्री पाने के बाद उन्होंने कानून की डिग्री भी हासिल की और अपने पिता की इच्छा का मान रखते हुए उन्होंने 1858 में डिप्टी मजिस्ट्रेट का पदभार संभाला और 1891 में सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हुए.
5- वे सरकारी नौकरी में थे, जिसके चलते किसी सार्वजनिक आंदोलन में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं ले सकते थे, लेकिन उनका मन हमेशा कचोटता रहता था. लिहाजा उन्होंने साहित्य के जरिए स्वतंत्रता आंदोलन के लिए जागृति का संकल्प लिया.
6- बंकिम चंद्र चटर्जी कविता और उपन्यास दोनों ही विधाओं में पारंगत थे, उन्होंने अपनी एक से बढ़कर एक बेहतरीन रचनाओं से भारतीय साहित्य को समृद्ध किया.
7- उन्होंने अपना पहला उपन्यास 'रायमोहन्स वाईफ' (अंग्रेजी में) लिखा था. साल 1865 में उनकी पहली बांग्ला कृति दुर्गेशनंदिनी प्रकाशित हुई थी. इसके अलावा उन्होंने कपालकुंडला, मृणालिनी, विषवृक्ष, रजनी, राजसिंह, देवी चौधुरानी आईं, सीताराम, कमला कांतेर दप्तर, कृष्ण कांतेर विल, विज्ञान रहस्य, लोकरहस्य और धर्मतत्व जैसी कई रचनाएं लिखीं. यह भी पढ़ें: Mangal Pandey Death Anniversary 2020: मंगल पांडे की 163वीं पुण्यतिथि, जानें 1857 की क्रांति के नायक के जीवन से जुड़ी अनसुनी दिलचस्प बातें
8- उन्होंने साल 1872 में मासिक पत्रिका बंगदर्शन का भी प्रकाशन किया. बंग दर्शन में लिखकर ही रबीन्द्रनाथ ठाकुर जैसे लेखक भी साहित्य के क्षेत्र में आए. वे बंकिम चंद्र चटर्जी को अपना गुरु मानते थे.
9- बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय का सबसे चर्चित उपन्यास आनंदमठ है जिसका प्रकाशन साल 1882 में हुआ था, इसी उपन्यास से प्रसिद्ध राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम लिया गया है.
10- बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ऐसे पहले साहित्यकार हैं, जिन्हें विश्वव्यापी ख्याति मिली. उनकी रचनाओं का अनुवाद दुनिया की कई भाषाओं में किया गया और उन पर कई फिल्में भी बन चुकी हैं. सबसे खास बात तो यह है कि सरकारी नौकरी में होते हुए भी उन्होंने अपने लेखन से देश में राष्ट्रवाद का अलख जगाया.
गौरतलब है कि 8 अप्रैल 1894 को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का निधन हो गया था, उनकी मृत्यु से सिर्फ बंगाल ही नहीं, बल्कि पूरा भारत शोक में डूब गया था. बहरहाल, उनकी लोकप्रियता का आलम तो यह है कि पिछले डेढ़ सौ सालों से उनके उपन्यास विभिन्न भाषाओं में अनुवादित होते रहे हैं.