Ashfaqulla Khan Death Anniversary 2019: अशफाक उल्ला खां ने काकोरी कांड में निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिका, 27 साल की उम्र में देश के लिए हुए थे शहीद

काकोरी कांड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले भारत के वीर क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां की आज पुण्यतिथि है. महज 27 साल की उम्र में उन्हें काकोरी कांड के लिए फैजाबाद जेल में 19 दिसंबर 1927 को फांसी पर चढ़ा दिया गया था. अशफाक उल्ला खां ऊर्दू के बेहतरीन शायर होने के साथ-साथ एक महान स्वतंत्रता सेनानी भी थे, जिन्होंने देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया.

अश्फाक उल्ला खान (Photo Credits: Wikimedia Commons)

Ashfaqulla Khan Death Anniversary 2019: काकोरी कांड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले भारत के वीर क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां (Ashfaqulla khan) की आज पुण्यतिथि है. महज 27 साल की उम्र में उन्हें काकोरी कांड के लिए फैजाबाद जेल में 19 दिसंबर 1927 को फांसी पर चढ़ा दिया गया था. अशफाक उल्ला खां के साथ महान स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल (Ram Prasad Bismil), रोशन सिंह (Roshan Singh) और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी (Rajendra Nath Lahidi) को भी फांसी दी गई थी, इसलिए इस दिन को बलिदान दिवस (Balidan Diwas) के रूप में भी मनाया जाता है. देश के लिए अपने प्राणों को हंसते-हंसते न्योछावर करने वाले अशफाक उल्ला खां ऊर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे.

अशफाक उल्ला खां और पंडित रामप्रसाद बिस्मिल गहरे दोस्त थे. इन वीर स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने अन्य क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार की नाक के नीचे से सरकारी खजाना लूट लिया था, जिसे काकोरी कांड के नाम से जाना जाता है. अशफाक उल्ला खां की पुण्यतिथि के अवसर पर चलिए जानते हैं उनसे जुड़ी रोचक बातें.

6 भाई-बहनों में थे सबसे छोटे

अशफाक उल्ला खां का जन्म 22 अक्टूबर 1900 में उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर जिले के 'शहीदगढ़' में हुआ था. उनके पिता एक पठान परिवार से ताल्लुक रखते थे. वे अपने छह भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. हालांकि उनके परिवार के सभी लोग सरकारी नौकरी में थे, लेकिन अशफाक उल्ला खां बचपन से ही अपने देश के लिए कुछ करना चाहते थे.

देश के लिए कुछ करने का था जज्बा

एक पठान परिवार में जन्म लेने वाले अशफाक उल्ला खां के दिल में बचपन से ही देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा था. उनके जीवन पर बंगाल के क्रांतिकारियों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा. बचपन से ही उन्हें पढ़ने-लिखने में कुछ खास रुचि नहीं थी, लेकिन देश की भलाई के लिए किए जाने वाले आंदोलनों की कथाओं को वे बहुत ही रुचि से पढ़ा करते थे. उन्हें घुड़सवारी, निशानेबाजी और तैराकी का भी शौक था.

ऊर्दू के बेहतरीन शायर थे अशफाक उल्ला

स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ अशफाक उल्ला खान ऊर्दू के बेहतरीन शायर भी थे, उन्होंने काफी अच्छी कविताएं लिखीं. कविता में वे अपना उपनाम हसरत लिखा करते थे. वे कविताएं अपने लिए लिखा करते थे, इसलिए उन्होंने कभी अपनी कविताओं को प्रकाशित करवाने की कोई कोशिश नहीं की.

ऐसे दिया था काकोरी कांड को अंजाम

अशफाक उल्ला खां के जीवन पर महात्मा गांधी का प्रभाव शुरु से था. जब गांधीजी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया तो उन्हें बहुत दुख हुआ. इसके बाद अशफाक उल्ला खां, राम प्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में 8 अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों की एक अहम बैठक हुई, जिसमें 9 अगस्त 1925 को सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को काकोरी स्टेशन पर लूटने की योजना बनाई गई. उस ट्रेन में ब्रिटिश सरकार का सरकारी खजाना था. दरअसल, इन क्रांतिकारियों ने जिस सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनाई थी, उसे अंग्रेजो ने भारतीयों से ही हड़पा था.

9 अगस्त 1925 को अशफाक उल्ला खां, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह, सचिंद्र बख्शी, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुकुंद लाल जैसे वीर क्रांतिकारियों ने अपनी योजना को अंजाम देते देते हुए ट्रेन से ले जा रहे सरकारी खजाने को लखनऊ के पास काकोरी में लूट लिया. इस घटना को काकोरी कांड के नाम से जाना जाता है.

काकोरी कांड से बौखला गई अंग्रेजी हुकूमत

काकोरी कांड को अंजाम देने के दौरान सभी क्रांतिकारियों ने अपना नाम बदल दिया था. अशफाक उल्ला खां ने अपना नाम कुमार जी रखा था. क्रांतिकारियों द्वारा सरकारी खजाना लूटे जाने की खबर मिलते ही अंग्रेजी हुकूमत बौखला उठी. इसके बाद कई निर्दोष लोगों को पकड़कर जेल में बंद कर दिया गया. हालांकि इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार ने एक-एक कर सभी क्रांतिकारियों को पकड़ लिया, लेकिन अशफाक उल्ला खां और चंद्रशेखर आजाद पुलिस के हाथ नहीं आए थे. यह भी पढ़ें: Independence Day 2019: भारत के इन वीर क्रांतिकारियों की बदौलत मिली थी देश को आजादी, आइए 73वें स्वतंत्रता दिवस पर उन्हें करें नमन

27 साल की उम्र में हुए देश के लिए शहीद

काकोरी कांड के बाद 26 सितंबर 1925 के दिन कुल 40 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर उनके खिलाफ राजद्रोह करने, सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने और मुसाफिरों की हत्या करने के आरोप में मुकदमा चलाया गया. 19 दिसंबर 1927 को अशफाक उल्ला खां समेत राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई. काकोरी कांड में शामिल अन्य 16 क्रांतिकारियों को कम से कम 4 साल से लेकर अधिकतम काला पानी यानी उम्रकैद की सजा दी गई.

गौरतलब है कि अशफाक उल्ला खां को भारत के उन वीर क्रांतिकारियों में गिना जाता है, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. बताया जाता है कि जिस दिन उन्हें फांसी होनी थी, उस दिन वे रोज की तरह उठे. सुबह अपने कामों से निवृत्त हुए, फिर कुरान पढ़ा. 'मेरे ये हाथ इंसानी खून से नहीं रंगे, खुदा के यहां मेरा इंसाफ होगा'. यह वो वाक्य है जिसे अशफाक उल्ला ने फांसी लगने के दौरान कहा था.

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