अबुल कलाम आजाद पुण्यतिथि: आधुनिक शिक्षा के जनक जिन्होंने बनाया था आईआईटी-आईआईएम

मौलाना अबुल कलाम आजाद आज की पीढ़ी के लिए एक अनजाना नाम हो सकता है, लेकिन इन युवाओं को शायद ही पता होगा कि आज वे विकसित शिक्षा के जिस कैनवास पर अपने करियर में रंग भर रहे हैं, उसका आधार आजाद देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद ने तैयार किया था...

मौलाना अबुल कलाम आजाद, (Photo Credit: फाइल फोटो)

मौलाना अबुल कलाम आजाद (Abul Kalam Azad) आज की पीढ़ी के लिए एक अनजाना नाम हो सकता है, लेकिन इन युवाओं को शायद ही पता होगा कि आज वे विकसित शिक्षा के जिस कैनवास पर अपने करियर में रंग भर रहे हैं, उसका आधार आजाद देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद ने तैयार किया था. भारतीय औद्योगिक संस्थान (आईआईटी), भारतीय प्रबंधन संस्थान () संगीत नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी और ललित कला अकादमी की स्थापना उन्हीं के कार्यकाल में की गई थी. यही नहीं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना भी अबुल कलाम आजाद की ही देन है. अबुल कलाम आजाद कभी नहीं चाहते थे कि देश का बटवारा हो, और हिंदू-मुस्लिम के बीच किसी तरह की खाई खिंचे. बंटवारे के समय के सर्वोच्च कद के मुस्लिम नेता थे, जिन्होंने पाकिस्तान के बजाय अपने देश भारत को अपना ठौर बनाया था. वर्ष 2008 से भारत सरकार ने अबुल कलाम की जयंती 11 नवंबर को ही ‘राष्ट्रीय शिक्षा दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की. पंडित जवाहरलाल नेहरू मंत्रिमंडल में मौलाना आज़ाद देश के पहले शिक्षा मंत्री थे.1992 में मरणोपरांत उन्हें ‘भारत रत्न’ अवार्ड से सम्मानित किया गया.

मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को मक्का में हुआ था. उनका मूल नाम अबुल कलाम गुलाम मोईउद्दीन था. उनके पिता मौलाना खैरुद्दीन बंगाली मौलाना थे. उन्होंने मदीना के एक मौलवी की बेटी आलिया से निकाह किया था. बताया जाता है कि मौलाना आजाद के पूर्वज अफगानिस्तान से आकर बंगाल में बस गये थे. लेकिन 1857 में ब्रिटिश सरकार के विद्रोह की लड़ाई में उन्हें भारत छोड़कर अरब जाकर बसना पड़ा. यहीं पर मौलाना आजाद का जन्म हुआ. जन्म के दो साल बाद मौलाना अबुल कलाम पुनः सपरिवार भारत आ गए. अबुल जब मात्र 13 वर्ष के थे उनका निकाह जुलेखा बेगम से हुआ. बताया जाता है कि मौलाना इतनी जल्दी शादी करने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन उन्होंने परिवार के खिलाफ जाकर कभी कोई कार्य नहीं किया.

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बहुमुखी प्रतिभावान शख्सियत: कुशाग्र बुद्धि का होने के कारण मौलाना अबुल कलाम को काफी कम उम्र में हिंदी उर्दू के अलावा फारसी, बंगाली, अरबी और अंग्रेजी सहित कई भाषाओं की

जानकारी हो गई थी. वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. बहुत कम उम्र में उन्होंने एक उत्कृष्ट कवि, लेखक, पत्रकार के तौर पर अपनी पहचान बना ली थी.

कलम को बनाया तलवार: मौलाना आजाद बचपन से बहुत कुशाग्र बुद्धि के थे. मगर उनका परिवार रूढ़िवादी ख्यालों वाला था. काफी छोटी उम्र में उन्होंने कुरान को कंठस्थ कर लिया था. कलकत्ता में रहते हुए उन्होंने लिसान-उल-सिद नामक पत्रिका शुरु की. कम उम्र में वह संपादक बन गये थे. 1912 में मौलाना ने ‘अल हिलाल’ नामक उर्दू अखबार का प्रकाशन शुरु किया. इस अखबार ने हिंदू-मुस्लिम एकता को सुद्दढ़ करने में अहम भूमिका निभाई. मौलाना द्वारा लिखे पुस्तकों में ‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ (अंग्रेजी) और ‘गुबार-ए-खातिर’ (उर्दू) विशेष रूप से लोकप्रिय रहे.

राष्ट्रवादी क्रांतिकारी: मौलाना अबुल कलाम आजाद राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी थे. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था. मौलाना गांधीवादी नीति को मानने वाले थे. ब्रिटिशकाल में महात्मा गांधी के साथ असहयोग आंदोलन और अंग्रेजों की किसी भी गलत नीतियों का विरोध करने के कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. अपने क्रांतिकारी विचारों को जन-जन तक पहुंचाने एवं हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए ‘अल-बलाग’ नामक साप्ताहिक पत्रिका का भी प्रकाशन किया. इस पत्रिका ने अंग्रेजों की खिलाफत में अहम भूमिका निभाई. बटवारे के समय भड़के सांप्रदायिक दंगों के दौरान मौलाना ने हिंसा प्रभावित प्रदेशों पंजाब, बंगाल, बिहार और असम राज्यों के शरणार्थी कैंपों में जाकर राशन-कपड़े और सुरक्षा आदि की व्यवस्था भी की. उन्होंने कभी भी हिंदू-मुस्लिम को अलग-अलग नजर से नहीं देखा.

शिक्षा के संस्थापक: आजादी के बाद भारत में शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक बदलाव लाने की शुरुआत मौलाना आजाद ने ही की थी. शिक्षा मंत्री की हैसियत से वह शिक्षा को जिस ऊंचाई पर ले गए अगर इसके लिए उन्हें भारत में आधुनिक शिक्षा के संस्थापक का नाम दिया जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. आज मौलाना अबुल कलाम के अथक प्रयासों के चलते ही भारत शिक्षा के क्षेत्र में इतना आगे है. वह जानते थे कि देश की उन्नति एवं विकास के लिए शिक्षा का सशक्त होना बहुत जरूरी है.

आधुनिक शिक्षा के इस जनक की मृत्यु 22 फरवरी 1958 को हार्ट अटैक के कारण हो गई. उनका जाना देश के लिए अपूरणीय क्षति कहा जायेगा, जिन्होंने ताउम्र हिंदू-मुस्लिम समुदाय को मिलजुल कर देश के विकास की नसीहत दी.

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