31 जनवरी: भारत में अंग्रेजी शासन के नींव की पहली ईंट, ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’
निसंदेह 31 जनवरी का दिन भारतीय इतिहास के लिए एक काले दिवस से कम नहीं कहा जायेगा. जब देश की बागडोर मुगलों से ब्रिटिश शासकों के हाथों में जाने की प्रक्रिया शुरु हुई और इसका माध्यम बनी ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’. अँग्रेजों की सोची समझी रणनीति के तहत व्यापार करने के इरादे से भारत में दाखिल हुई ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ आगे चलकर भारत में ब्रिटिश शासन के नींव का पत्थर साबित हुई.
वह 31 जनवरी सन 1600 का ही दिन था, जब कुछ अंग्रेज व्यापारी इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम से व्यापार करने की अनुमति लेकर भारत आये थे. ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के बैनर तले अंग्रेजों ने भारत में व्यापार के बहाने अपने पैर जमाने शुरु किये. कहा जाता है कि ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के 217 पार्टनर्स में एक स्वयं महारानी एलिजाबेथ थीं.
ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ प्रथम की अनुमति लेकर 1601 में ब्रिटेन से पांच जहाजों का एक बेड़ा भारत के लिए रवाना हुआ. लेकिन पुर्तगालियों का भारत में वर्चस्व होने के कारण इस बेड़े को सुमात्रा में लंगर डालना पड़ा. यह भारत के बाहर का हिस्सा था. लेकिन इसके साथ ही धीरे-धीरे ईस्ट इंडिया कंपनी के जहाजों की गतिविधियां हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ने लगी.
सूरत से शुरुआत
अंततः 24 अगस्त 1608 में ईस्ट इंडिया कंपनी का पहला जहाज ‘हेक्टर’ भारत के लिए रवाना हुआ. इस जहाज का कैप्टन था हाकिंस. हाकिंस ने सोची समझी रणनीति के तहत जहाज का पहला लंगर सूरत के बंदरगाह पर डाला. उन दिनों सूरत को व्यवसाय के नजरिये से भारत का सबसे महत्वपूर्ण शहर माना जाता था. हाकिंस बेहद शातिर और मौकापरस्त किस्म का व्यापारी था. वह तत्कालीन मुगल बादशाह जहांगीर के दरबार में ब्रिटिश एंबेसडर के रूप में पहुंचा था. ब्रिटिश राजदूत होने के नाते जहांगीर ने उसके आतिथ्य सत्कार का पूरा ध्यान रखा. यही नहीं नवाबी शान बघारते हुए उसने हाकिंस को पुरस्कार देकर सम्मानित भी किया.
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पुर्तगालियों के खिलाफ कुचक्र
हॉकिंग्स को इस बात का अहसास था कि भारत में पुर्तगालियों का वर्चस्व है, इसलिए वे ब्रिटिशों को आसानी से टिकने नहीं देंगे. तब हॉकिंग्स ने पुर्तगालियों को रास्ते से हटाने के लिए उनके खिलाफ षड़यंत्र रचना शुरु किया. शीघ्र ही हॉकिंग्स जहांगीर पर विश्वास प्राप्त कर लिया. मौके का फायदा उठाते हुए वह अकसर पुर्तगालियों का जहाज लूट लेता था. पुर्तगालियों को भारत से खदेड़ने की वह कोई कसर नहीं छोड़ता था.1611 में अंग्रेजों ने आंध्रप्रदेश के मछलीपटनम में अपनी पहली फैक्टरी स्थापित की.
फरवरी 1613 को हॉकिंग्स ने बादशाह जहांगीर से अपनी सुविधानुसार एक शाही फरमान जारी करवाकर सूरत में अपना कारखाना स्थापित करवा कर मनमर्जी से व्यापार करना शुरु किया. उसने जहांगीर को पटाकर न केवल सूरत में अपना एक राजदूत रखने की अनुमति ली, बल्कि 1615 में इंग्लैंड से सर थामस रो को बतौर राजदूत बुलवा भी लिया.
शातिर दिमाग वाला थामस रो
थामस रो हॉकिंग्स से भी ज्यादा शातिर दिमाग वाला था. वह महारानी एलिजाबेथ के काफी विश्वस्त लोगों में था. उसके सूरत पहुंचते ही पुर्तगालियों में खलबली मच गयी. गुजरात पहुंचते ही थामस रो ने अपने प्रतिद्वंदिवयों को रास्ते से हटाना शुरु किया. थामस रो ने जहांगीर के मन में यह विश्वास जमा लिया कि पुर्तगालियों की तुलना में ब्रिटिशियन्स ज्यादा शक्तिशाली हैं और भारत को ज्यादा मुनाफा दिलवायेंगे. जहांगीर ने थामस रो पर विश्वास करते हुए उसे 1615 से 1618 यानी तीन साल के लिए विशेषाधिकार दे दिया.
व्यापार के बहाने हुकूमत का षड़यंत्र
विशेषाधिकार मिलते ही थामस ने ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से भारत में अपने कल- कारखाने लगाने शुरु कर दिये. देखते ही देखते सूरत से अहमदाबाद, बरहामपुर, आगरा तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कारखाने सक्रिय हो गये. दूसरे शब्दों में उसने काफी हद तक भारत की अर्थ व्यवस्था को अपने नियंत्रण में ले लिया. अपने कुटिल चालों से ईस्ट इंडिया कंपनी का एकाधिकार पूरे भारत फैल गया. इसके साथ ही ब्रिटिश प्रशासकों की भी भारत में गतिविधियां बढ़ती गयीं. 1639 में चंद्रगिरी के राजा दरमेला वेंकटप्पा ने फ्रांसिस डे नामक अंग्रेज को पूरा मद्रास पट्टे पर दे दिया. यहां अंग्रेजों ने अपनी सुरक्षा के लिए फोर्ट सेंट जॉर्ज नामक किले का निर्माण करवाया. भारत में अंग्रेजों का यह पहला किला था. प्रदेश दर प्रदेश कब्जे का यह दायरा बंबई तक बढ़ता चला गया.
दमनात्मक रवैये से उत्पन्न हुई विद्रोह की ज्वाला
धीरे-धीरे ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के सभी प्रदेशों पर व्यापार के साथ-साथ प्रशासनिक कब्जा भी करते चले गये. लॉर्ड डलहौजी के भारत आने के बाद दत्तक प्रथा को समाप्त कर उन सभी राज्यों को अपने नियंत्रण में ले लिया, जिसका कोई वारिस नहीं था. अंग्रेजों का दमनात्मक रवैया दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था. अंग्रेजों की बढ़ती ज्यादतियों का नतीजा क्रांति और विद्रोह के रूप में निकलना शुरु हुआ. 1857 में जब यह असंतोष दावानल के रूप में पूरे देश में फैलने लगा, तब 1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी को समाप्त कर पूरे भारत में ब्रिटिश हुकूमत लागू कर दिया गया. लेकिन इसके बाद विद्रोह की ज्वाला शांत नहीं हुई. स्वतंत्रता संग्राम की इस लड़ाई की इतिश्री 15 अगस्त 1947 में हुई, और एक प्रजातंत्रीय देश के रूप में भारत का उदय हुआ.