1947 का ज़ख्म! जब रेलगाड़ियां लाशों से भरी आती थीं, भारत-पाकिस्तान विभाजन की खौफनाक कहानी
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India Pakistan Partition: 1947 का साल. देश आज़ाद हो चुका था, लेकिन इस आज़ादी के साथ आया था एक ऐसा ज़ख्म, जो आज भी हमारे इतिहास के पन्नों में दर्द बनकर दर्ज है – भारत और पाकिस्तान का बंटवारा. उस वक्त पंजाब और बंगाल के दोनों तरफ से करोड़ों लोग अपने घर-बार छोड़कर दूसरी तरफ जा रहे थे. किसी के हाथ में बच्चे थे, किसी के साथ बुजुर्ग, और किसी के पास सिर्फ एक छोटा सा बंडल जिसमें उनकी पूरी ज़िंदगी की कमाई थी.

लेकिन यह सफर आसान नहीं था. उस समय की सबसे डरावनी तस्वीरें थीं – लाशों से भरी ट्रेनें. ये ट्रेनें लोगों को सुरक्षित पहुंचाने के लिए निकली थीं, लेकिन पहुंचने से पहले ही खून और हिंसा के तूफान में फंस गईं. स्टेशन पर जब ये रेलगाड़ियां पहुंचतीं, तो यात्री नहीं, सिर्फ सन्नाटा और मौत उतरती थी. डिब्बों में घायल, खून और चीखों के निशान ही बचते थे.

गांव-गांव में अफवाहें फैल जातीं, “ट्रेन आ रही है, लेकिन ज़िंदा कोई नहीं.” लोगों का भरोसा टूट चुका था. न हिंदू सुरक्षित थे, न मुसलमान, न सिख. नफरत इतनी बढ़ गई थी कि इंसान की पहचान सिर्फ उसके धर्म से होने लगी. महिलाएं और बच्चे सबसे ज्यादा शिकार बने.

इतिहासकार बताते हैं कि उस वक्त करीब 15 लाख लोग मारे गए और 1 करोड़ से ज्यादा लोग बेघर हो गए. आज़ादी की खुशियों के साथ-साथ विभाजन का यह दर्द हर परिवार ने किसी न किसी रूप में महसूस किया.

आज, जब हम आज़ादी का जश्न मनाते हैं, तो हमें उन रेलगाड़ियों को भी याद करना चाहिए, जो कभी उम्मीद लेकर चली थीं, लेकिन सिर्फ मौत लेकर लौटीं. यह हमें याद दिलाती हैं कि नफरत की आग कितनी खतरनाक होती है और इंसानियत सबसे पहले होनी चाहिए.