MANTO FILM REVIEW: मंटो और उसकी कहानी समाज को दिखाती है सच्चाई का आईना

उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो के जीवन पर आधारित फिल्म 'मंटो' में नवाजुद्दीन सिद्दकी उनकी मुख्य भूमिका में हैं. इसकी रिलीज से पहले पढ़ें हमारा ये रिव्यू

फिल्म 'मंटो' का रिव्यू

फिल्म: मंटो

स्टार्स: 3.5

कास्ट: नवाजुद्दीन सिद्दीकी, रसिका दुग्गल, रणवीर शोरे, ताहिर राज भसीन, इला अरुण, दिव्या दत्ता, जावेद अख्तर, परेश रावल, ऋषि कपूर, गुरदास मान.

नवाजुद्दीन सिद्दीकी की फिल्म ‘मंटो’ कल सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है. ये फिल्म उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो के जीवन पर आधारित है और इस फिल्म में नवाज ‘मंटो’ की मुख्य भूमिका में हैं. नंदिता दास द्वारा निर्देशित इस फिल्म को विश्वभर के फिल्म फेस्टिवल्स में काफी शानदार रिस्पोंस मिला जिसके बाद इसे भारत समेत अन्य देशों में रिलीज किया जा रहा है. एक तरफ जहां वेब सीरीज ‘सेक्रेड गेम्स’ को देखने के बाद नवाज से दर्शकों की उम्मीदें काफी बढ़ गई है वहीं आपको बता दें कि फिल्म ‘मंटो’ में वो अपने फैंस को निराश नहीं करेंगे.

कहानी: फिल्म में सआदत हसन मंटो की जीवन कहानी की शुरुआत मुंबई शहर से होती है. फिल्म की कहानी प्री-इंडिपेंडेंस पीरियड में शुरू होती है. यहां पर देश के मौजूदा हालत को दिखाया गया है. देश में जहां वैश्यावृति जैसे धंदे जोर पर हैं वहीं भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारे के चलते यहां के लोगों में तनाव का माहोल है. हिंदू और मुसलामानों के बीच दंगे हो रहे हैं और देश की यही सब हालत को देखकर मंटो परेशान हैं. वो हर परिस्थिति को एक आम आदमी की तरह नहीं देखता. उसका नजरिया सबसे भिन्न है और वो हर असल कहानी को अपनी किताब और कोलम के जरिए आम जनता तक समाचार पत्र और मैगजीन्स द्वारा पहुंचाता है. फिल्म में बताया गया है कि किस तरह से मंटो द्वारा लिखे गए साहित्य और लेख अन्य लेखकों से अलग हैं. तेजी से बदलते दौर में भी वो अपने लेख के साथ समझौता नहीं करते और अक्सर उनकी लिखी गई कहानी को गलत समझकर उनपर सवाल उठाए जाते हैं. मंटो सच बयान करते हैं लेकिन उस सच्चाई को बहुत ही कम लोग समझ पाते हैं. फिल्म में बताया गया कि साहित्य की दुनिया में मंटो इतने खोए हुए हैं कि उन्हें अपना, अपने परिवार, अपने दोस्तों का भी ख्याल नहीं है. उनका परिवार उनकी हालत से तंग है. लेकिन अपनी बिगड़ती हालत के बाद वो खुदको शारीरिक और मानसिक रूप से ठीक करने की ठान लेते हैं और एक बार फिर अपने कलाम से समाज को आयना दिखाने निकल पड़ते हैं.

अभिनय: सबसे पहले बात करें नवाजुद्दीन सिद्दकी की तो वो पूरी तरह से मंटो के बोल चाल, उनके हावभाव और स्टाइल में ढले हुए नजर आए. ये एहसास बहुत कम ही होता है कि नवाज यहां पर मंटो के किरदार की नकल कर रहे हैं. फिल्म में जिस तरह से वो डायलॉग्स बोलते हैं वो वाकई काबिल-ए-तारीफ है. फिल्म में मंटो की पत्नी साफिया की भूमिका निभा रहीं रसिका दुगल का काम भी काफी बढ़िया है. यहां वो एक ऐसी पत्नी के रूप में नजर आईं जो अपने पति को सही रास्ता दिखाने में लगी है और हमेशा उनके सुख-दुख में उनका साथ देती है. यहां उनका करैक्टर सादगी से भरा है और इसे उन्होंने बारीकी से निभाया है. यही इसकी खासियत भी है. फिल्म में ताहिर राज भसीन मंटो यानी की नवाज के दोस्त श्याम का किरदार निभा रहे हैं. यहां वो सपोर्टिंग रोल में नजर आए लेकिन उनकी एक्टिंग और उनका किरदार फिल्म से पूरी तरह से जुड़ पाया है. यहां ऋषि कपूर फिल्म के डायरेक्टर की भूमिका में हैं और परेश रावल वेश्यावृति से भरे इलाके में एक दलाल के रूप नजर आए. ये दोनों ही यहां कैमियो रोल में नजर आए लेकीन अपनी हर फिल्म की तरह इन्होंने अपने किरदार के साथ न्याय किया.

म्यूजिक: क्योंकि ये एक गंभीर और इंटेंस टाइप की फिल्म है, इसलिए इसके गाने भी कुछ ऐसे हैं जो आपको सोचने पर मजबूर कर देंगे. सॉन्ग ‘बोल के लब आजाद हैं तेरे’ समेत इसके अन्य गानें आपको बेहद पसंद आएंगे. फिल्म में बैकग्राउंड म्यूजिक को भी सादगी और सरलता के साथ रखा गया है.

फिल्म की खूबियां: इस फिल्म के डायलॉग्स इसकी सबसे बड़ी खासियत है. नवाजुद्दीन सिद्दकी की एक्टिंग लाजवाब है. मंटो की कहानी अपने आप में आपको समाज और देश की कई ऐसी परिस्थितयों पर सोचने को मजबूर कर देंगी जिन्हें बरसों से अब तक ठीक नहीं गया है. आपको एहसास होगा मंटो मात्र एक लेखक नहीं बल्कि अपने आप में एक क्रांति और समाज का एक आयना है.

फिल्म की खामियां: देखा जाए तो फिल्म की कहानी और एक्टर्स की परफॉर्मेंस में काफी दम है जिसके चलते इसमें कमियां निकाल पाना थोड़ा मुश्किल है. लेकिन हम आपको बताना चाहेंगे कि इस फिल्म का फर्स्ट हाफ स्लो मूविंग है जिसके चलते आपको बोरियत भी महसूस हो सकती है. इसी के साथ देखा गया कि मंटो के जीवन के मुख्य तत्थों और महत्वपूर्ण लम्हों को जोड़कर ये फिल्म बनाई गई है. लेकिन फिल्म की स्टोरी सेटिंग में आपको गड़बड़ महसूस होगा. फिल्म की कहानी के साथ बने रहने के लिए आपको थोड़ा एक्स्ट्रा अटेंशन देना होगा. बावजूद इसके आप एक समय कंफ्यूज भी हो सकते हैं कि इस छोर से उस छोर किस तरह से मुड़ रही है.

ओवरऑल बात की जाए तो ये फिल्म समाज को मंटो की विचारधारा उनके काम और उनके जीवन से अवगत कराती है. फिल्म की कहानी बेहद प्रभावशाली और गहराई से सोचने की लिए भी आपको विवश करेगी.

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