Chandu Champion Review: कार्तिक आर्यन स्टारर 'चंदू चैंपियन' की कहानी दमदार, पर ये खामियां फिल्म को ले डूबी!
Chandu Champion Review (Photo Credits: Sajid Nadiadwala Grandson)

Chandu Champion Review: कार्तिक आर्यन और कबीर खान फिल्म 'चंदू चैंपियन' को लेकर लगातार सुर्खियों में रहे हैं. दर्शकों को भी इस जोड़ी से काफी उम्मीदे थीं. फिल्म अब सिनेमाघरों में उतर चुकी है. यह एक बायोपिक है जोकि भारत के पहले पैरालिंपिक स्वर्ण पदक विजेता मुरलीकांत पेटकर के जीवन पर आधारित है. फिल्म में मुरलीकांत पेटकर का किरदार कार्तिक आर्यन ने निभाया है. वे इस किरदार के साथ कितना न्याय कर पाए हैं और कबीर खान ने कप्तानी पारी किस तरह से खेली है, जानने के लिए आपको पूरा रिव्यू पढ़ना होगा.

कहानी क्या कहती है?

फिल्म की कहानी शुरु होती है मुरली (कार्तिक आर्यन) से, जो महाराष्ट्र के सांगली स्थित एक गांव में अपने माता-पिता और बड़े भाई के साथ रहता है. एक दिन ऐसा कुछ होता है कि मुरली के दिमाग में ओलंपिक में गोल्ड मैडल लाने का भूत सवार हो जाता है और वह पहलवानी में खुद को झोक देता है. पर उसकी पहलवानी एक दिन उसी को भारी पड़ जाती है और उसे जान बचाकर एक लंगोटी में गांव से भागना पड़ता है. पर यहां से मुरली की किस्मत का एक नया दरवाजा खुलता है और वह सेना में भर्ती हो जाता है. पर उसका सपना अब भी वही है गोल्ड मैडल जीतना. इस सपने को पूरा करने में उसका साथ देते हैं अली सर (विजय राज) वे मुरली को मुक्केबाजी में दक्ष करते हैं. मुरली का कभी न हार मानने वाला स्वभाव बहुत ही जल्द उन्हें एक अच्छा मुक्काबाज बना देता है.

किस्मत से उसे ओलंपिक में हिस्सा लेने का एक मौका भी मिलता है, जिसे भुनाकर वह गोल्ड मैडल हासिल कर सकता है. पर मुरली की गलती उस पर भारी पड़ जाती है और सब किए कराए पर पानी फिर जाता है. एक बार फिर किस्तम मुरली की सोई हुई किस्मत को जगाने के लिए दरवाजा खटखटाती है पर कश्मीर में हुए हमले में मुरली को 9 गोलियां लगती है. अब कहानी में आगे क्या होता है? जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी.

अदाकारी में कितना है दम?

कार्तिक आर्यन ने फिल्म में मुरलीकांत पेटकर का किरदार निभाया है. फिल्म देखने के बाद ऐसा जान पड़ता है कि किरदार में ढलने के लिए कार्तिक ने सबसे ज्यादा फोकस फिजिक पर किया है. वे मराठी लहजे और भाषा से रुबरू नहीं हुए. वैसे देखा जाए तो कार्तिक की एक्टिंग पहले की अपेक्षा प्रभावी लगी है, पर मुरली के किरदार के लिए वह काफी नहीं थी. साथ ही वृद्ध मुरली के किरदार में ऐसा लगता है कि वे बस बाल और दाढ़ी-मूंछ सफेद करके आ गए हैं. फिल्म में सबसे ज्यादा उभरकर कोई किरदार सामने आया है तो वह है अली का जिसे विजय राज ने निभाया है. विजय जब फी स्क्रीन के सामने आते हैं एक अलग तरह की ऊर्जा समेटे नजर आते हैं. उनकी डायलॉग डिलीवरी कमाल की है. इसके साथ राजपाल यादव छोटे पैकेट में बड़ा धमाका हैं वे आपको सरप्राइज करेंगे. इसके अलावा सभी कलाकार अपने-अपने किरदार में रमते नजर आए हैं.

कप्तानी पारी कैसी?

फिल्म की आत्मा होती है उसकी कहनी और डायरेक्शन. मुरलीकांत की कहानी बेहद प्रेरणात्मक है पर डायरेक्शन कमजोर होने की वजह से जो यह कहानी डिजर्व करती थी वह हासिल नहीं कर पाई है. फिल्म का स्क्रीनप्ले काफी ढीला लगता है, खासकर सेकंड हाफ तो काफी उबाऊ है. इसी के साथ फिल्म के वॉर सीन्स, फाइट सीन्स में वह मैजिक नहीं है जिस तरह से इसे प्रमोट किया गया था. फिल्म के गानों में भी इतना दम नहीं है कि थिएटर से निकलने के बाद याद रह सकें. पर हां फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक कहानी के साथ अच्छा खासा घुलता-मिलता नजर आया है.

अब आई निर्णय की बारी

अगर आप प्रेरणात्मक कहानियों को बड़े पर्दे पर देखने के शौकीन हैं तो इस फिल्म को आप एक बार जरूर देख सकते हैं. अगर आपके भीतर धीरज है तो ओटीटी पर आने का इंतजार कर लें. साथ ही अगर आप कार्तिक के फैंस हैं तब तो आपको फिल्म देखने से कोई नहीं रोक सकता.

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