महानायक अमिताभ बच्चन ने कहा- 'मेरे पास अपने पीछे छोड़ने लायक कोई विरासत नहीं'

अमिताभ ने फिल्म 'सात हिंदुस्तानी' से रूपहले परदे पर अपने सफर की शुरुआत की थी। हालांकि 1973 में रिलीज हुई फिल्म जंजीर से उन्हें काफी शोहरत मिली और फिर उनकी दीवार, डॉन, शोले, शहंशाह एक से एक यादगार फिल्में आईं।

महानायक अमिताभ बच्चन ने कहा- 'मेरे पास अपने पीछे छोड़ने लायक कोई विरासत नहीं'
अमिताभ को अपनी अगली फिल्म '102 नॉट आउट' के रिलीज होने का इंतजार है

नई दिल्ली। दुनिया उन्हें बॉलीवुड के शहंशाह के रूप से जानती है। मगर वह चाहते हैं लोग उन्हें प्रख्यात कवि हरिवंश राय बच्चन के पुत्र के रूप में पहचानें।

हम बात मेगास्टार अमिताभ बच्चन की कर हैं जो बताते हैं कि वह जन्म से ही सार्वजनिक जीवन में रहे हैं लेकिन वह कहते हैं कि उनके पास अपने पीछे छोड़ने के लिए कोई विरासत नहीं है।

'एंग्री यंग मैन' से शहंशाह के रूप में पिछले चार दशक से ज्यादा समय तक बॉलीवुड पर अपना दबदबा बनाए रखने वाले अभिनेता कहते हैं कि उनके पिता की सार्वजनिक जीवन में मौजूदगी उनके कहीं ज्यादा थी।

ईमेल के जरिए आईएएनएस को एक दिए एक साक्षात्कार में अभिताभ बच्चन ने कहा, "जहां तक मेरे व्यक्तिगत सरोकार की बात है तो मैं तकरीबन 50 साल से सार्वजनिक जीवन में हूं। मगर प्रख्यात कवि हरिवंश राय बच्चन के पुत्र के रूप में मैं जन्म से ही सार्वजनिक जीवन में हूं क्योंकि सार्वजनिक जीवन में उनकी शख्सियत मुझसे अधिक बड़ी थी।"

उन्होंने कहा, "मेरी अपनी कोई विरासत नहीं है। मेरे पास मेरे पिता की विरासत है जिसे संजोने में ही मेरी दिलचस्पी है और आगे भी संभाले रखूंगा।"

अमिताभ बच्चन को अपनी अगली फिल्म '102 नॉट आउट' के रिलीज होने का इंतजार है। इस बीच वह अपने पिता के साथ जुड़ाव को लेकर अपनी संवेदनाओं को अपने ब्लॉग के जरिए संप्रेषित कर रहे हैं।

इससे पहले उन्होंने कॉपीराइट कानून की शर्तो को लेकर अपनी नाराजगी जताई थी, जिसके तहत लेखक के निधन के बाद 60 साल तक मूल साहित्यिक कृति का विशिष्ट अधिकार उनके वारिशों के पास होता है।

75 वर्षीय अमिताभ अपने पिता की कविताओं का पाठ करने में विशेष दिलचस्पी रखते हैं। खासतौर से 'मधुशाला' की कविताओं का वाचन वह सार्वजनिक कार्यक्रमों में करते हैं। अमिताभ अपने पिता मिली शिक्षाओं को आगे अपने पुत्र और अभिनेता अभिषेक बच्चन को हस्तांतरित करने ख्वाहिश रखते हैं।

बीग बी ने कहा, "पिता के साथ बिताए लहमे और उनकी यादें व्यक्तिगत हैं। लेकिन उनसे मिली शिक्षाएं निश्चित रूप से अभिषेक को सौंपेंगे।"

दादा की शिक्षा पोते-पोतियों तक पहुंचाने के बारे पूछे गए एक सवाल पर अमिताभ ने कहा, "यह सब परिवारिक परिस्थितियों के अनुकूल होता है। हर परिवार का अपना आचार-व्यवहार होता है जिसका अनुपालन इस प्रकार किया जाता है कि अगली पीढ़ी अतीत की विरासत को संजोए रखे। हर कोई कामना करता है कि उनकी संतानें इस मनोभाव को बनाए रखें।"

अमिताभ ने फिल्म 'सात हिंदुस्तानी' से रूपहले परदे पर अपने सफर की शुरुआत की थी। हालांकि 1973 में रिलीज हुई फिल्म जंजीर से उन्हें काफी शोहरत मिली और फिर उनकी दीवार, डॉन, शोले, शहंशाह एक से एक यादगार फिल्में आईं।

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