पवन ऊर्जा से चलने वाला दुनिया का पहला तेल-वाहक टैंकर अपनी पहली यात्रा पर निकल गया है. 'केमिकल चैलेंजर' नाम का यह तेल टैंकर एंटवर्प बंदरगाह से रवाना हुआ.जहाजरानी उद्योग में कार्बन फुटप्रिंट घटाने की बड़ी उम्मीद बनकर एक जहाज रॉटरडैम बंदरगार से रवाना हुआ है. 'एमटी केमिकल चैलेंजर' नाम का यह जहाज एक तेल टैंकर है जिसके मालिक को उम्मीद है कि शिपिंग इंडस्ट्री के नाक में दम करने वाली कार्बन उत्सर्जन की समस्या को हल करने में यह यात्रा मील का पत्थर साबित होगी.
एमटी केमिकल चैलेंजर रसायन ढोने वाला एक जहाज है जो 16 हजार टन केमिकल एक बार में ले जा सकता है. शुक्रवार को यह बेल्जियम के एंटवर्प से तुर्की के इस्तांबुल के लिए रवाना हुआ था. रास्ते में इस पर समुद्री यात्रा के परीक्षण होंगे.
इस जहाज को जापान में बनाया गया है. इसके ऊपर 16 मीटर यानी लगभग 53 फुट ऊंचे चार पंखे लगे हैं. ये ठीक वैसे ही हैं जैसे विमान के पंख होते हैं. जहाज कंपनी को उम्मीद है कि इन पवनचक्कियों से जो ऊर्जा मिलेगी, उससे ईंधन की खपत में 10 से 20 फीसदी का फायदा होगा.
अमेरिका से लेकर भूमध्यसागर तक रसायनों को लाने-ले जाने का काम करने वाली कंपनी केमशिप के चीफ एग्जिक्यूटिव नील्स ग्रोत्स ने कहा, "मैं खुद एक जुनूनी नाविक हूं. बहुत लंबे समय से मैं सोच रहा था कि कैसे हमारे उद्योग को पर्यावरण के ज्यादा अनुकूल बनाया जाए. आज हमने अपना पहला केमिकल टैंकर पानी में उतारा है, जो पवन ऊर्जा से चलता है. हम उम्मीद करते हैं कि यह दुनिया के लिए एक मिसाल बनेगा.”
मुश्किल है लक्ष्य
जहाजरानी उद्योग कार्बन उत्सर्जन के मामले में सबसे बदनाम उद्योगों में से एक है. जहाजों के ईंधन में डीजल से लेकर तमाम तरह के तेल इस्तेमाल होते हैं. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक 2022 में जितना कुल कार्बन उत्सर्जन हुआ, उसका दो फीसदी इसी उद्योग के कारण था.
जहाजरानी उद्योग में उत्सर्जन कम करने के लिए दुनियाभर में कोशिशें हो रही हैं. इंटरनेशनल मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन ने 2030 तक उद्योग के कार्बन उत्सर्जन को 40 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य तय किया है. अगर पेरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करना है तो जहाजरानी उद्योग का कार्बन उत्सर्जन 2050 तक शून्य होना जरूरी है. इस वजह से ऐसे जहाजों का निर्माण और मांग बढ़ रही है जो पर्यावरण के अधिक अनुकूल हैं.
ग्रोत्स मानते हैं कि यह काम आसान नहीं है. वह कहते हैं, "शिपिंग में प्रतिद्वन्द्विता बहुत ज्यादा है और इन लक्ष्यों को हासिल करना बहुत मुश्किल होगा. लेकिन हमें सीओ2 उत्सर्जन कम करना ही होगा. और हमने फैसला किया कि हाथ पर हाथ धरकर बैठने और किसी चमत्कार का इंतजार करने से काम नहीं चलेगा.”
500 कारों के बराबर उत्सर्जन घटेगा
ग्रोत्स के मुताबिक जहाज की पहली यात्रा से उन्हें कोई वित्तीय लाभ नहीं मिलेगा. केमशिप ने एक बयान में कहा, "इस जहाज की यात्रा से हम (कार्बन उत्सर्जन में) सालाना 850 टन की कमी की उम्मीद कर रहे हैं, जो हर साल 500 कारों के कार्बन उत्सर्जन के बराबर है.”
ग्रोत्स बताते हैं कि जहाज को पवन ऊर्जा से चलाने का विचार तीन साल पहले तब जन्मा जब उन्होंने एक डच कंपनी इकोनोविंड के साथ इस पर चर्चा की. इकोनोविंड जहाजों के लिए प्रोपल्सन सिस्टम बनाती है. पिछले हफ्ते ही रॉटरडैम में केमिकल चैलेंजर पर चार पवनचक्कियां लगाने का काम पूरा हुआ.
वैसे, यह पहली बार नहीं है जब किसी जहाज पर पवनचक्की लगाई गई है. पिछले साल एक ब्रिटिश कंपनी करगिल ने भी अपने एक जहाज को पवन ऊर्जा से चलाया था. केमशिप का कहना है कि उनका जहाज पहला केमिकल टैंकर है जो पवन ऊर्जा से चलाया जा रहा है. इसमें जो तकनीक इस्तेमाल हुई है, वह भी पहले से अलग है. इसके पंखे ठोस एल्युमिनियम से बनाए गए हैं जिनमें रोशनदान और छेद हैं ताकि तेज हवा के बहाव को झेला जा सके. ये पंखे 61 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार की हवा को झेल सकते हैं.
इकोनोविंड के सेल्स मैनेजर रेन्स ग्रूट कहते हैं, "इस सिस्टम को वेंटिलेटेड विंगसेल कहते हैं. यह पवन ऊर्जा को पांच गुना तक बढ़ा सकता है और उतनी ही ऊर्जा पैदा करता है जितना 30x30 मीटर का पंख पैदा करेगा.”
वीके/एए (एएफपी)