सेंचुरियन: भारत के मुख्य कोच राहुल द्रविड़ ने ऑस्ट्रेलिया के हाथों विश्व कप फाइनल में मिली हार के संदर्भ में रविवार को यहां कहा कि पेशेवर खिलाड़ी निराशा से जल्द से जल्द उबरने और नई चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रशिक्षित होते हैं. अहमदाबाद में 19 नवंबर को ऑस्ट्रेलिया से हारने वाली टीम के सदस्यों में शामिल रहे केएल राहुल, रविंद्र जडेजा और श्रेयस अय्यर ने इसके बाद सीमित ओवरों के कुछ मैच खेले लेकिन अन्य खिलाड़ी पांच सप्ताह में पहली बार अंतरराष्ट्रीय मैच खेलेंगे.
द्रविड़ ने यहां पत्रकारों से नई चुनौतियों के बारे में कहा,‘वह दिल तोड़ने वाली हार थी लेकिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में आपको तेजी से आगे बढ़ना होता है और हमारे सामने एक और महत्वपूर्ण श्रृंखला है और यह सभी श्रृंखलाएं एक अन्य आईसीसी प्रतियोगिता (विश्व टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल) के लिए क्वालीफाई करने के संदर्भ में काफी मायने रखती हैं.’ IND vs SA 1st Test: साउथ अफ्रीका के खिलाफ पहले टेस्ट के लिए कप्तान रोहित शर्मा ने नेट्स पर जमकर बहाया पसीना, देखें वीडियो
पूर्व भारतीय कप्तान द्रविड़ समझते हैं कि फाइनल की हार को पचा पाना आसान नहीं है लेकिन वह इस तथ्य से भी अवगत हैं कि इस निराशा को लंबे समय तक खींचने से परेशानियां खड़ी हो सकती हैं. उन्होंने कहा,‘आपके पास निराशा में डूबे रहने के लिए वक्त नहीं होता. आपको उससे उबरकर आगे बढ़ना होता है और हमारे खिलाड़ियों ने ऐसा बहुत अच्छी तरह से किया. हम निराश थे लेकिन अब हम उससे आगे बढ़ चुके हैं. मुझे लगता है कि हमारी वनडे टीम ने वास्तव में अच्छा प्रदर्शन करके श्रृंखला जीती.’
द्रविड़ ने कहा,‘खिलाड़ी निराशा से उबरकर आगे बढ़ने में माहिर होते हैं क्योंकि उन्हें बचपन से ऐसा करना सिखाया जाता है. आपको इससे बाहर निकलना होता है और आप लंबे समय तक निराशा के साथ नहीं जी सकते हैं. इससे अगले मैच में आपका प्रदर्शन प्रभावित होगा.’
भारत ने दक्षिण अफ्रीका में अभी तक टेस्ट श्रृंखला नहीं जीती है और द्रविड़ ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका के विकेट इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया की तुलना में थोड़ा भिन्न चुनौती पेश करते हैं. उन्होंने कहा,‘आंकड़ों के लिहाज से देखें तो यहां खेलना आसान नहीं होता है लेकिन हमने यहां अच्छा प्रदर्शन भी किया है. ऐसा नहीं है कि यहां खेलना असंभव है लेकिन अन्य देशों की तुलना में यहां उछाल असमान होता है. आपको यहां इंग्लैंड की तरह अधिक स्विंग या ऑस्ट्रेलिया की तरह पर्याप्त गति और उछाल नहीं मिलता है.’
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