वायनाड (केरल), एक अगस्त वायनाड में मेप्पाडी के निकट मुंडक्कई और चूरलमाला हरे-भरे जंगलों से घिरे हुए गांव थे, लेकिन मंगलवार की सुबह वहां हुए भीषण भूस्खलन में जीवित बचे परिवारों ने प्रकृति की कठोर क्रूरता देखी।
जिले में दो दिन पहले हुए भीषण भूस्खलन में 177 लोगों की मौत हुई है और 200 लोग घायल हुए हैं। जिला प्रशासन ने बृहस्पतिवार को बताया कि यह संख्या बढ़ने की आशंका है क्योंकि बचावकर्मी मलबे में दबे शवों को निकालने का काम जारी रखे हुए हैं। मारे गए 177 लोगों में 25 बच्चे और 70 महिलाएं भी शामिल हैं।
हादसे में बचे लोगों ने उस भयावह अनुभव के बारे में बताया जो हमेशा के लिए उनकी यादों में बस गया है।
मेप्पाडी में राहत शिविर से मीडिया से बात करते हुए बुजुर्ग महिला सुजाता ने बताया कि कैसे उन्होंने और उनके पोते ने एक जंगली हाथी के बगल में रात बिताई और जानवर से सुरक्षित रहीं। उन्होंने देखा कि भूस्खलन में उनका सबकुछ नष्ट हो गया। वह वहां चाय बागान में काम करती थीं।
सुजाता ने कहा, ‘‘हम अपने गिरते हुए घर से मुश्किल से बच पाए। हम नजदीकी पहाड़ी की ओर भागे। वहां पहुंचकर हमें एहसास हुआ कि हम एक हाथी के पास खड़े हैं।’’
सुजाता ने बताया कि उन्होंने जंगली हाथी से वैसे ही बात की जैसे किसी इंसान से करती हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने उससे (हाथी से) कहा कि हमने सबकुछ खो दिया है और वह हम पर हमला न करे। हमने पूरी रात उसके बगल में बिताई।’’
भूस्खलन में जीवित बचे सिराजुद्दीन और उनके परिवार ने भी अकल्पनीय और असहाय होकर देखा कि कैसे उनका घर, जिसमें उनकी आजीविका का साधन एक ऑटोरिक्शा भी शामिल था, विशाल पत्थरों के नीचे दब गया।
सिराजुद्दीन ने बताया कि मंगलवार की सुबह उन्हें तेज आवाजें और पानी बहता हुआ सुनाई दिया। जब उन्होंने देखा कि उनके घर में कीचड़ भरा पानी घुस रहा है, तो वह किसी तरह भागकर अपने घर के पीछे की ऊंची जगह पर पहुंचे।
उनके परिवार ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हमने देखा कि बड़े-बड़े पत्थर और पेड़ हमारी सारी चीजें कुचल रहे हैं। हमारा ऑटोरिक्शा पूरी तरह नष्ट हो गया।’’
चूरलमाला निवासी गणेश भी उन खुशकिस्मत लोगों में हैं जिनकी जान बच गई। उन्होंने बताया कि वह सुरक्षा गार्ड की नौकरी करते हैं और सोमवार देर रात घर आए थे। उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं घर पहुंचा तो कीचड़ भरा पानी देखा और अपनी पत्नी को जगाया जो सो रही थी। मैंने एक सेकंड भी बर्बाद नहीं किया। हम घर से निकलकर पास की पहाड़ी पर चले गए।’’
गणेश ने इस आपदा में अपनी बहन, जीजा, बहन के बेटे-बहू, पोते-पोतियों को भी खो दिया है।
उस खौफनाक मंजर को बयां करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘जैसे ही पानी बढ़ा, हम पहाड़ी की चोटी पर भागे। हमने देखा कि पहले भूस्खलन में मेरी बहन का घर बह गया। दूसरे भूस्खलन में मेरा घर भी बह गया।’’
गणेश ने बताया कि सौभाग्य से हादसे के समय उनके बच्चे रिश्तेदार के घर मन्नतवाडी में थे।
कुछ बचे हुए लोग अपने लापता प्रियजनों की तलाश करते नजर आए। ऐसे ही लोगों में एक पिता अपनी 14 वर्षीय बेटी की तलाश करने में मदद मांगते देखे गए। उन्होंने कहा, ‘‘मेरी सबसे छोटी बेटी लापता है। जब तक मैं उसे पहचान नहीं लेता, मुझे विश्वास नहीं होगा कि वह चली गई है। मैं समझूंगा कि वह उच्च शिक्षा के लिए किसी दूर स्थान पर चली गई है।’’
उनकी बेटी अनामिका नौवीं कक्षा में पढ़ती थी और नजदीक ही अपनी दादी के साथ रहती थी।
मैसूरु के रहने वाले दो भाई माधवन और नंजुंदन अपनी बहन और जीजा की तलाश में मेप्पाडी आए हैं। उनकी बहन और जीजा एक चाय बागान में काम करते थे।
नंजुंदन ने मीडिया से कहा, ‘‘हमने उनसे कहा था कि वे बारिश खत्म होने तक एक सप्ताह के लिए हमारे साथ रहें लेकिन वे तैयार नहीं हुए। भूस्खलन से दो दिन पहले मेरे बड़े भाई माधवन यहां आए थे और उनसे मैसूरु चलने को कहा था।’’
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