नयी दिल्ली, दो मार्च पिछले दिनों उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों में बेमौसम बारिश के कारण किसानों के चेहरे मुरझाये हुए हैं क्योंकि गेहूं, सरसों सहित रबी की फसलों को काफी नुकसान पहुंचने का अंदेशा है। ऐसे में एक ओर खाद्यान्न उत्पादन प्रभावित होने की आशंका व्यक्त की जा रही है तो दूसरी ओर महंगाई बढ़ने एवं पशुओं के चारे की कीमत में इजाफा होने से पशुपालन आधारित कृषि तंत्र पर भी असर पड़ सकता है। इसी से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर अर्थशास्त्री और भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणव सेन से ‘ के पांच सवाल’ और उनके जवाब :
सवाल: पिछले दिनों बेमौसम बरसात के कारण कई राज्यों में रबी की फसलों को नुकसान की खबरें आई हैं। इसका खेती और खाद्यान्न उत्पादन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
जवाब : बेमौसम बारिश के कारण गेहूं के उत्पादन में कुछ कमी आ सकती है लेकिन बहुत अधिक फर्क नहीं पड़ेगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब हमारा उत्पादन सामान्य रहता है तब उत्पादन का बड़ा हिस्सा स्टॉक (भंडार) में चला जाता है। बाजार में गेहूं की उपलब्धता से इसका कोई सीधा संबंध नहीं होता। बेमौसम वर्षा के कारण थोड़ा नुकसान होता भी है तब भी हम इसे बर्दाश्त कर सकते हैं। कुछ इलाकों में सरसों की उपज पर इसका असर जरूर दिख सकता है।
आज की खाद्य व्यवस्था में बारिश का फलों, सब्जियों पर पड़ने वाला प्रभाव महंगाई की दृष्टि से अहम होता है क्योंकि घरेलू बजट में इसकी अहम हिस्सेदारी होती है। ऐसे में मेरे हिसाब से इसका आंशिक प्रभाव पड़ेगा।
सवाल : पिछले साल गेहूं के उत्पादन में पूर्व के वर्षों की तुलना में कमी आई थी तथा कीमतों में भी उछाल देखा गया था। बेमौसम बरसात का गेहूं और आटे की कीमतों पर कितना प्रतिकूल असर पड़ सकता है?
जवाब : पिछले वर्ष गेहूं और आटे की कीमतें बढ़ने का एक प्रमुख कारण सरकार द्वारा गेहूं के मुफ्त वितरण किए जाने से स्टॉक में होने वाली कमी थी। लोगों को ऐसा महसूस हुआ कि सरकार के पास गेहूं का पर्याप्त भंडार नहीं है और व्यापारियों ने इसका फायदा उठाकर जमाखोरी की।
हाल ही में भारत सरकार ने 30 लाख टन गेहूं बाजार में उतारा है जिससे कीमतों में कमी आई है। लोगों को यह विश्वास दिलाना होगा कि सरकार के पास साधन हैं और जरूरत पड़ी तो उसे बाजार में उतारा जायेगा।
जाड़े के समय बारिश पहले भी होती रही है लेकिन यह जनवरी के महीने में होती थी। इस बार मार्च के अंत में हुई है जब कटाई का समय होता है। ऐसे में यह ध्यान देने की बात होगी कि सरकार गेहूं की खरीद किस प्रकार से करती है ताकि स्टॉक प्रभावित नहीं हो।
सवाल : कोविड-19 के काल में कृषि क्षेत्र ने सकारात्मक वृद्धि दर्ज की थी लेकिन बारिश के कारण अगर रबी की फसल का उत्पादन प्रभावित होता है तो कृषि क्षेत्र के साथ और किन क्षेत्रों पर असर पड़ेगा?
जवाब : देश में आज भी करीब 50 प्रतिशत लोगों की आमदनी कृषि क्षेत्र से होती है। अगर कृषि क्षेत्र ठीक ढंग से नहीं बढ़ता है तो लगभग आधी आबादी की आमदनी पर असर पड़ता है। ऐसी स्थिति में बेमौसम बरसात के कारण अगर फसलों को नुकसान होता है तब इसका असर कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों की आमदनी पर पड़ेगा और इसका सीधा असर लघु उद्योगों पर होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि लघु क्षेत्र से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ऐसे लोग जुड़े होते हैं जिनकी आय का स्रोत कृषि क्षेत्र पर निर्भर करता है। इसका बड़े उद्योगों या कॉर्पोरेट सेक्टर पर असर नहीं पड़ेगा।
सवाल : देश में बढ़ती आबादी के हिसाब से कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर को आप कितना संगत मानते हैं। देश में प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाने की जरूरत पर अपकी क्या राय है ?
जवाब : भारत में कृषि उत्पादन सालाना तीन प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है जबकि देश की आबादी करीब दो प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। ऐसी स्थिति करीब 20 वर्ष से चल रही है। अभी हालात में सतत सुधार हो रहा है। ऐसी स्थिति में आबादी के अनुपात में कृषि उत्पादन को लेकर चिंता करने की बात नहीं है। यहां प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाने का सवाल महत्वपूर्ण है। मसलन, चीन में क्षेत्रफल के हिसाब से कृषि योग्य भूमि कम है लेकिन उसक प्रति हेक्टेयर उत्पादन भारत की तुलना में 40 प्रतिशत से अधिक है।
जब भारत में बात प्रति हेक्टयर उत्पादन बढ़ाने के तौर तरीकों को लेकर आती है तब किसान पुश्तों से चली आ रही अपनी पद्धति को बदलना नहीं चाहते हैं क्योंकि उन्हें इसमें जोखिम लगता है। हमारे छोटे-छोटे जोत क्षेत्र भी एक समस्या हैं।
सवाल : बेमौसम बरसात के कारण गेहूं की फसल खराब होने से सूखे चारा भूसे का संकट उत्पन्न होने की आशंका व्यक्त की जा रही है जिससे इसके महंगा होने खतरा बढ़ गया है। आप इस पर क्या कहेंगे?
जवाब : पशुओं के चारे से संबंधित मुद्रास्फीति की समस्या पिछले दो वर्षों से चली आ रही है और यह काफी (करीब 25 प्रतिशत) है। बेमौसम बारिश के कारण गेहूं की फसल और पौधे खराब होने से भूसे की समस्या गहरा सकती है। चारा मुद्रास्फीति एक समस्या है जिसका सरकार को इंतजाम करना होगा। यह जरूरी है क्योंकि इसका पशुपालन आधारित कृषि व्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है।
दीपक
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