जयपुर, 29 दिसम्बर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंगलवार को कहा कि केंद्र सरकार को अपना अहं छोड़कर अविलंब किसानों से संवाद स्थापित करना चाहिये। साथ ही किसानों को राहत देने के लिये राष्ट्रीयकृत वाणिज्यिक एवं भूमि विकास बैंकों से ऋण लिए हुये किसानों के कर्जमाफ कर उन्हें राहत देनी चाहिये।
एक सरकारी बयान में मंगलवार को यह जानकारी दी गई।
बयान के अनुसार, मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले दिनों एक आरटीआई के जवाब से पता चला है कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में कुल 7.95 लाख करोड़ रुपये उद्योगपतियों के कर्ज ‘राइट ऑफ’ हुए हैं, लेकिन मोदी सरकार ने किसानों की कोई कर्जमाफी नहीं की है।
बयान के मुताबिक, उन्होंने कहा कि 2018 में कांग्रेस सरकार बनने के बाद राजस्थान में 20 लाख 56 हजार से ज्यादा किसानों के कर्ज माफ किए गए हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने कुल 14 हजार करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया है, जिसमें से 6000 करोड़ रुपये राज्य की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार द्वारा घोषित कर्जमाफी के भी शामिल हैं।
बयान के अनुसार, मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा, ‘‘मुझे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर राजस्थान के किसानों की कर्जमाफी के बारे में फिर से ध्यान दिलाना पड़ा, क्योंकि 18 दिसंबर को पीएम ने भाजपा द्वारा आयोजित मध्य प्रदेश के किसान सम्मेलन में कहा कि राजस्थान में किसान कर्जमाफी का इंतजार कर रहे हैं, जबकि ऐसा नहीं है, वास्तविकता दूसरी है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘कोई भी किसान ऐसा नहीं है जो राजस्थान सरकार के अधीन आने वाले सहकारी बैंकों से कर्जमाफी का इंतजार कर रहा हो। कर्जमाफी का इंतजार वही बचे हुये किसान कर रहे हैं, जिन्होंने केंद्र सरकार के अधीन राष्ट्रीयकृत एवं वाणिज्यिक बैंकों से कर्ज लिया और केंद्र सरकार ने उनके कर्ज माफ नहीं किये हैं।’’
मुख्यमंत्री ने कहा कि वह याद दिलाना चाहते हैं कि संप्रग सरकार ने राष्ट्रीयकृत और वाणिज्यिक बैंकों से देशभर के किसानों के 72 हजार करोड़ रुपये के कर्ज माफ किये थे। मौजूदा सरकार आगे आकर इस तरह के किसानों की कर्जमाफी क्यों नहीं करती।
उन्होंने कहा कि यह भी विडंबना है कि एक तरफ तो भाजपा के नेता भ्रम फैलाकर राजस्थान के किसानों को भड़का रहे हैं और दूसरी ओर जो किसान एक महीने से धरने पर बैठे हुये हैं उनसे अभी तक कोई सकारात्मक संवाद नहीं हुआ है।
उन्होंने कहा कि मीडिया के मुताबिक 40 से अधिक किसानों की मौत हो गई है।
गहलोत ने कहा कि अगर केंद्र सरकार ये विधेयक लाने से पहले किसान संगठनों, कृषि विशेषज्ञों और राजनीतिक दलों से संवाद स्थापित करती तो इस तरह की परिस्थितियां पैदा नहीं होतीं।
गौरतलब है कि दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर पिछले एक महीने से अधिक समय से देश के विभिन्न हिस्सों के किसान केंद्र के तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान सरकार से इन तीन कृषि कानूनों को वापस लेने और एमएसपी की गारंटी के लिये कानून बनाने की मांग कर रहे हैं। राजस्थान में भी किसान इन कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।
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