नयी दिल्ली, 26 जुलाई उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि बिना दावे वाली ऐसी मुआवजा राशि राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा है, जिसका भुगतान दावेदारों को किया जाना था लेकिन यह रकम वाहन दुर्घटना दावा प्राधिकरण (एमएसीटी) और श्रम अदालतों में जमा है।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने पूछा कि जिन दावेदारों के लिए मुआवजा दिया गया है, वे पैसे लेने के लिए आगे क्यों नहीं आते हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘यह एक राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा है।’’
आठ जुलाई को मामले की सुनवाई करते हुए पीठ ने अपने आदेश में उल्लेख किया था कि भारत के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के प्रशासनिक आदेश के अनुसार, गुजरात के एक सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश द्वारा 25 मई को भेजे गए ई-मेल के आधार पर एक स्वत: संज्ञान रिट याचिका पंजीकृत की गई थी।
आठ जुलाई के आदेश में कहा गया था कि ई-मेल में उल्लेख किया गया है कि मुआवजे के रूप में देय बड़ी रकम पर दावा नहीं किया गया है और वह एमएसीटी तथा श्रम अदालतों के पास जमा है।
इसने कहा था कि ई-मेल के अनुसार, अकेले गुजरात में, लगभग 2,000 करोड़ रुपये की राशि बिना दावे के पड़ी है और उन लाभार्थियों का पता लगाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है जिन्हें मुआवजा दिया जाना था।
पीठ ने इसके बाद मामले में गुजरात सरकार और गुजरात उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल से जवाब मांगा था।
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय की ओर से पेश वकील ने सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश द्वारा भेजे गए ई-मेल का उल्लेख किया।
इस पर, पीठ ने वकील से कहा, ‘‘मुआवजा लेने के लिए दावेदार आगे क्यों नहीं आते? इस पर हमारी सहायता करें।’’
इसने कहा, ‘‘कुछ निर्देश जारी करने होंगे।’’
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह पहले गुजरात तक सीमित आदेश पारित करेगा और उसके बाद अन्य राज्यों के लिए भी ऐसा करने पर विचार करेगा।
न्यायालय ने गुजरात उच्च न्यायालय की ओर से पेश वकील से न्यायमित्र के रूप में सहायता करने का अनुरोध किया और मामले की अगली सुनवाई दो सितंबर के लिए तय की।
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