देश की खबरें | यूआईडीएआई व राज्य सरकार सत्यापन कर विस्थापितों को आधार कार्ड मुहैया कराएं: मणिपुर हिंसा पर न्यायालय

नयी दिल्ली,25 सितंबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) और मणिपुर सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि राज्य में खूनी जातीय संघर्ष में विस्थापित हुए उन लोगों को ‘आधार’ कार्ड मुहैया कराया जाए, जिनके रिकार्ड यूआईडीएआई के पास उपलब्ध हैं।

न्यायालय ने कहा कि आधार कार्ड शीघ्रता से जारी करने से पहले आवश्यक सत्यापन किया जाए।

प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि यूआईडीएआई विस्थापित लोगों के आधार कार्ड खोने के दावों का सत्यापन करेगा। पीठ ने कहा कि जिन लोगों को पहले आधार कार्ड जारी किया जा चुका है उनका बायोमेट्रिक विवरण प्राधिकरण के पास होगा।

पीठ में न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं।

न्यायालय ने दस्तावेज खो चुके लोगों के बैंक खातों के विवरण उपलब्ध कराने के लिए मणिपुर के वित्त विभाग को राज्य के प्रभावित हिस्सों में सभी बैंकों को इस बारे में उपयुक्त निर्देश जारी करने को कहा।

पीठ ने कहा कि मणिपुर के स्वास्थ्य विभाग के सचिव राहत शिविरों में दिव्यांगता प्रमाणपत्र/ दिव्यांग्ता प्रमाणपत्रों की नकल (प्रति) विशेष जरूरतों वाले लोगों को जारी करने के लिए शीघ्रता से कदम उठाएं।

पीठ ने शीर्ष न्यायालय द्वारा नियुक्त न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा दाखिल रिपोर्ट पर विचार करते हुए ये निर्देश जारी किए। समिति की सभी सदस्य महिला हैं और उच्च न्यायालयों की पूर्व न्यायाधीश हैं। इसमें न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) शालिनी पी जोशी और न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) आशा मेनन भी शामिल हैं।

शीर्ष न्यायालय में दाखिल रिपोर्ट में समिति ने विस्थापितों के खो चुके निजी दस्तावेजों सहित अन्य मुद्दों पर कुछ खास निर्देश जारी करने का अनुरोध किया था।

पीठ ने कहा, ‘‘यूआईडीएआई के गुवाहाटी स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के उप महानिदेशक, और मणिपुर के गृह विभाग के सचिव यह सुनिश्चित करने के लिए हर कदम उठाएंगे कि विस्थापन के दौरान अपने आधार कार्ड खो देने वाले सभी विस्थापित व्यक्तियों को आधार कार्ड प्रदान किए जाएं, बशर्ते कि उनका रिकॉर्ड यूआईडीएआई के पास पहले से उपलब्ध हो।’’

पीठ ने कहा कि आधार कार्ड जारी करने के लिए प्राधिकरण को यह सत्यापित करना होगा कि क्या ये वास्तविक निवासी या नागरिक हैं।

न्यायालय ने सवाल किया, ‘‘यदि कोई अवैध रूप से प्रवेश किया होगा तो क्या होगा? पीठ ने कहा, ‘‘हम कहेंगे कि अधिकारी सत्यापित करेंगे कि वह व्यक्ति वास्तविक है या नहीं।’’

केंद्र और मणिपुर सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ऐसे कई मुद्दों का हल कर लिया जाता, यदि समिति उन पर अधिकारियों के साथ चर्चा करती।

मेहता ने कहा, ‘‘मैं समिति से आग्रह करूंगा कि मुख्य सचिव से टेलीफोन पर बातचीत करने से ज्यादातर मुद्दों का समाधान हो सकता है और आपको (पीठ को) परेशान नहीं होना पड़ेगा।’’

विषय में पेश हुए एक वकील ने हिंसा के दौरान आग के हवाले कर दी गई संपत्तियों का मुद्दा उठाया। इस पर पीठ ने कहा कि यह कानून-व्यवस्था का विषय है।

मृतकों के शवों की अंत्येष्टि के मुद्दे पर मेहता ने कहा कि अधिकारी समिति के निर्देश के अनुरूप काम कर रहे हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘यहां होने वाली हर चीज को प्रचारित किया जा रहा है, भले ही जमीन पर कुछ भी काम किया गया हो या नहीं...।’’

विषय में पेश हुए वकीलों ने जब विभिन्न मुद्दों का जिक्र किया, पीठ ने कहा, ‘‘आप मुझे एक चीज बताइए, या तो हम समिति को रद्द कर दें और हर चौथे सप्ताह बाद विषय की सुनवाई करें क्योंकि हम हर हफ्ते इसकी सुनवाई नहीं करने जा रहे हैं। हमारे पास हर हफ्ते इसकी सुनवाई करने का समय नहीं है क्योंकि हम उच्चतम न्यायालय में मणिपुर सरकार नहीं चला सकते।’’

पीठ ने विषय की सुनवाई एक हफ्ते बाद के लिए स्थगित कर दी।

राज्य में तीन मई को शुरू हुई जातीय हिंसा में 170 लोग मारे गये और सैकड़ों अन्य घायल हुए हैं।

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