देश की खबरें | झारखंड की कोयला खदानों की वाणिज्यिक नीलामी के केन्द्र के फैसले को राज्य सरकार ने न्यायालय में दी चुनौती

नयी दिल्ली, तीन जुलाई झारखंड की कोयला खदानों के वाणिज्यिक खनन के लिये नीलामी के केन्द्र के फैसले को राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है। झारखंड सरकार का आरोप है कि केन्द्र ने उससे परामर्श के बगैर ही एकतरफा घोषणा की है।

झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत केन्द्र के खिलाफ वाद दायर किया है। केन्द्र के साथ विवाद होने पर राज्य इसी अनुच्छेद के तहत सीधे उच्चतम न्यायालय में मामला दायर कर सकते हैं।

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इससे पहले, झारखंड सरकार ने राज्य की 41 कोयला खदानों के वाणिज्यिक खनन के लिये डिजिटल नीलामी प्रक्रिया की केन्द्र की कार्रवाई के खिलाफ शीर्ष अदालत मे याचिका दायर की थी।

इस नये वाद में राज्य ने दावा किया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान केन्द्र द्वारा कोयला खदानों की नीलामी करना बहुत ही अनुचित है और केन्द्र को इस खतरनाक संक्रमण की वजह से नागरिकों की समस्याओ को कम करने के लिये आदेश देने चाहिए।

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वाद में यह भी दावा किया गया है कि इसे दायर करने का मकसद झारखंड की सीमा में स्थित नौ कोयला खदानों में वाणिज्यक खनन के लिये नीलामी प्रक्रिया शुरू करने के केन्द्र के एकतरफा, मनमाने और गैरकानूनी कार्रवाई की आलोचना करना है।

राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता तापेश सिंह और अन्य अधिवक्ताओं द्वारा तैयार किये गये इस वाद में कहा गया है, ‘‘प्रतिवादी (केन्द्र) ने वादी से परामर्श के बगैर ही नीलामी की एकतरफा घोषणा की है। वादी राज्य उसकी सीमा के भीतर स्थित इन खदानों और खनिज संपदा का मालिक है।’’

वाद में आगे कहा गया है, ‘‘फरवरी, 2020 की बैठक का कोइ मतलब नहीं है क्योंकि इसमें कोविड-19 की वजह से बदली हुये परिस्थितियों को ध्यान में नहीं रखा गया है। कोविड-19 महामारी, जिसने देश को ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अभूतपर्वू ठहराव ला दिया है, की वजह से नये सिरे से वादी के साथ परामर्श की आवश्यकता है ।’’

वाद में पांच और 23 फरवरी को हुयी बैठकों का जिक्र करते हुये कहा गया है कि केन्द्र ने राज्य द्वारा उठाई गयी आपत्तियों पर विचार नहीं किया है। इसी तरह वाद में संविधान की पांचवी अनुसूची का जिक्र करते हये कहा गया है कि झारखंड में नौ कोयला खदानों में से छह-चकला, चितरपुर, उत्तरी ढाडू, राजहर उत्तर, सेरगढ़ और उर्मा पहाड़ीटोला-जिन्हें नीलामी के लिये रखा गया है, पांचवी अनुसूची के इलाके हैं।

इसमें कहा गया है कि झारखंड की 3,29,88,134 आबादी में से 1,60,10,448 लोग आदिवासी इलाकों में रहते हैं।

वाद में यह भी आरोप लगाया गया है कि केन्द्र की कार्रवाई पर्यावरण मानकों का उल्लंघन करती है और इससे राज्य के पर्यावरण, वन और जमीन को अपूर्णीय क्षति होगी।

वाद के अनुसार झारखंड में 29.4 प्रतिशत वन क्षेत्र है और नीलामी के लिये रखी गयी कोयला खदानें वन भूमि पर हैं। इसमें आगे कहा गया गया है कि इस समय कोयला खदानों की नीलामी का मतलब राष्ट्रीय हित की कीमत पर पूंजीवादी लॉबी के हाथों में खेलना होगा।

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