कोलकाता, 21 अगस्त पश्चिम बंगाल की राजनीति में कुछ समय को छोड़कर 1950 के दशक के उत्तरार्ध से ही हिंसा का बोलबाला रहा है। विश्लेषकों का कहना है कि बेरोजगारी, गरीबी, राजनीतिक दलों पर निर्भरता और लंबे समय तक एक पार्टी के सत्ता में रहने से लगातार हिंसा को बढ़ावा मिला।
कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हुए ‘‘जघन्य अपराधों’’ की केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा जांच का आदेश देने के साथ राजनीतिक रूप से जागरूक समझे जाने वाले राज्य के इस तथ्य की ओर ध्यान गया है कि इसकी विरासत में हिंसा की जड़ें गहरी हुई हैं।
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि बेरोजगारी, गरीबी, राजनीतिक दलों पर अत्यधिक निर्भरता से जमीनी स्तर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं के बीच कटुता बढ़ती गयी है और वर्षों तक एक ही दल का दबदबा हिंसा का आधार हो सकता है।
प्रेसीडेंसी कॉलेज के समाजशास्त्र के एमेरिटस प्रोफेसर प्रशांत रॉय ने कहा, ‘‘स्वतंत्रता पूर्व बंगाल क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था। फिर विभाजन के दौरान हिंसा, उसके बाद तेभागा आंदोलन और साठ के दशक में नक्सली आंदोलन ने इसे आगे बढ़ाने का काम किया। हालांकि, अब हिंसा ज्यादातर आर्थिक कारणों से होती है।’’
प्रख्यात इतिहासकार सौगत बोस का मानना है कि किसी एक दल का बहुत लंबे समय तक प्रभुत्व समस्या के मूल कारणों में से एक रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘शुरू में यह कम्युनिस्टों और कांग्रेस के बीच संघर्ष था, फिर नक्सली काल आया। इस दौरान कम्युनिस्टों के विभिन्न गुटों में मारपीट हुई। जब वामपंथी सत्ता में थे, तो उन्होंने शासन के दौरान लोगों को डराया-धमकाया। एक पार्टी के वर्चस्व का लंबा इतिहास रहा है विशेष रूप से 34 साल तक वामपंथी शासन, राज्य की हिंसा की विरासत के प्रमुख कारणों में से एक है।’’
सामाजिक कार्यकर्ता और अर्थशास्त्र की प्रोफेसर शाश्वती घोष ने कहा, ‘‘पिछले तीन-चार दशकों में बेरोजगारी में वृद्धि के कारण ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में लोग जीवन यापन के लिए ज्यादातर सरकार पर निर्भर हो गए हैं, और सत्तारूढ़ दलों ने इस निर्भरता का अपने लाभ के लिए उपयोग किया है। इसके अलावा, अवैध हथियारों का प्रचलन एक अन्य प्रमुख कारण है’’
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक 2019 में राजनीतिक हत्याओं के मामले में पश्चिम बंगाल शीर्ष पर रहा। पूर्व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी) नजरूल इस्लाम का मानना है कि ‘‘पुलिस बल का राजनीतिकरण’’ ‘‘प्रचलित अराजकता’’ का प्रमुख कारण है। उन्होंने कहा, ‘‘यह राजनीतिकरण वामपंथी शासन के दौरान शुरू हुआ और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) शासन में यह चक्र पूरा हो गया। अगर पुलिस प्रशासन को स्वतंत्र रूप से काम करने दिया जाए तो एक महीने के भीतर हिंसा पर रोक लग सकती है।’’
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