
नयी दिल्ली, 12 फरवरी दिल्ली पुलिस ने बुधवार को उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य की जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे पता चले कि अभियोजन पक्ष ने आरोपियों के खिलाफ यूएपीए मामले में निचली अदालत की कार्यवाही में देरी कराने का प्रयास किया और कहा कि त्वरित सुनवाई का अधिकार कोई ‘मुफ्त पास’ नहीं है।
न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शैलिंदर कौर की पीठ के समक्ष पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा और विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने कहा कि देरी के लिए आरोपियों को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
शर्मा ने कहा, ‘‘निचली अदालत के रिकॉर्ड से यह पता नहीं चलता कि अभियोजन पक्ष की ओर से मामले में देरी करने का कोई प्रयास किया गया।’’
प्रसाद ने कहा कि निचली अदालत के न्यायिक आदेश हैं जो दिखाते हैं कि कैसे आरोपियों के इशारे पर मामले में देरी की गई।
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘आरोपों पर बहस चल रही है। दूसरे आरोपी ने दलीलें पूरी कर ली हैं.. वे दो सप्ताह की देरी चाहते थे। दिन-प्रतिदिन की सुनवाई के बावजूद आरोपी बहस के लिए आगे नहीं आ रहे हैं।’’
शर्मा ने कहा कि देरी के मुद्दे को प्रत्येक मामले की ‘जटिलता’ के साथ संतुलित किया जाना चाहिए था और आतंकवाद तथा राज्य की अखंडता से जुड़े मामलों में, निर्णय अलग-अलग मानदंड का था।
उन्होंने कहा कि त्वरित सुनवाई एक आवश्यकता थी, लेकिन राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के मामलों में, विचाराधीन कैदियों की लंबी कैद अपने आप में उन्हें जमानत पर रिहा करने का आधार नहीं है, जब तथ्य उनकी संलिप्तता को दर्शाते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘त्वरित सुनवाई का अधिकार कोई मुफ्त पास नहीं है.. समाज के अधिकार को व्यक्ति के अधिकार के ऊपर रखा जाना चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि वर्तमान मामले में अभियुक्त आजीवन कारावास की अधिकतम सजा वाले अपराधों के लिए हिरासत में थे।
शर्मा ने कहा, ‘‘यह एक ऐसा मामला है जिसमें 53 लोगों की जान चली गई या उन्हें जान गंवाने के लिए मजबूर किया गया.. उच्च न्यायालय की दो पीठों ने स्पष्ट रूप से माना कि हां, एक साजिश रची गई थी और हां, यूएपीए लागू होता है।’’
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