नयी दिल्ली/पटना, 20 सितंबर ऐतिहासिक महत्व के पटना कलेक्ट्रेट परिसर को ढहाये जाने पर उच्चतम न्यायालय द्वारा रोक लगाए जाने पर इतिहासकारों, संरक्षण वास्तुकारों और अन्य धरोहर प्रेमियों ने राहत की सांस ली है। उन्होंने इस पर प्रसन्नता व्यक्त की और उनमें से कुछ ने कहा कि यह फैसला हमारे समृद्ध अतीत को संरक्षित करने के लिए समाज को एक "मजबूत संदेश" देगा।
गंगा के तट पर 12 एकड़ में फैले, प्रतिष्ठित कलेक्ट्रेट परिसर में डच वास्तुकला के कुछ अंतिम धरोहर बचे हुए हैं, जिनमें विशेष रूप से रिकॉर्ड रूम और पुराना जिला अभियंता कार्यालय शामिल हैं।
शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को मामले में यथास्थिति का आदेश दिया था, जिसके दो दिन पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उसके नए परिसर और अन्य परियोजनाओं के लिए आधारशिला रखी थी।
प्रसिद्ध इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा कि यह उन सभी लोगों के लिए बहुत अच्छी खबर है जो निर्मित धरोहरों की देखभाल करते हैं, संरक्षणविदों से लेकर आम आदमी तक आधुनिकता के हमले से विरासत को बचाने के लिए हर दिन लड़ाई लड़ते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे समय में जब कलेक्ट्रेट की ऐतिहासिक इमारत को गिराने के लिए बुलडोज़र लगभग तैयार थे, इसे ध्वस्त करने पर रोक न्यायपालिका में लोगों के विश्वास को भी बढ़ाएगा।’’
कलेक्ट्रेट और अन्य असुरक्षित धरोहर स्थलों के संरक्षण की वकालत करते रहने वाले पटना के लेखक सुरेंद्र गोपाल को उम्मीद है कि उनके शहर के उपेक्षित विरासत स्थलों का भविष्य अच्छा होने वाला है।
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