लखनऊ, 20 अक्टूबर : पेरिस ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने से चूकने वाले भारत के भालाफेंक स्टार नीरज चोपड़ा ने कहा कि उनके प्रदर्शन में कोई कमी नहीं थी लेकिन वह दिन पाकिस्तान के अरशद नदीम का था जो उन्हें पछाड़कर चैम्पियन बने . चोपड़ा ने आठ अगस्त को हुए फाइनल में 89 . 45 मीटर भाला फेंककर रजत पदक जीता लेकिन नदीम ने नया ओलंपिक रिकॉर्ड बनाते हुए पहले ही प्रयास में 92 . 97 मीटर का थ्रो फेंककर स्वर्ण पदक जीता . तोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले चोपड़ा लगातार दो ओलंपिक में पदक जीतने वाले पहले भारतीय ट्रैक और फील्ड खिलाड़ी बने . चोपड़ा ने यहां पीटीआई को दिये इंटरव्यू में कहा ,‘‘ कुछ भी गलत नहीं था, सब कुछ सही था. थ्रो भी अच्छा था. ओलंपिक में रजत प्राप्त करना भी कोई छोटी चीज़ नहीं है, लेकिन, मुझे लगता है कि प्रतियोगिता बहुत अच्छी थी और स्वर्ण पदक उसी ने जीता है जिसका वह दिन था . वह नदीम का दिन था .”
यहां फीनिक्स पलासियो मॉल में अंडर आर्मर के नए प्रारूप वाले ब्रांड हाउस स्टोर का उद्घाटन करने आये चोपड़ा ने इस धारणा को खारिज किया कि हॉकी और क्रिकेट के बाद भाला फेंक भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता का गवाह बनने वाला नया खेल बन गया है . उन्होंने कहा ,“भाला फेंकने में कोई दो टीमें नहीं हैं, लेकिन विभिन्न देशों के 12 एथलीट हैं जो एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. मैं 2016 से भाला फेंक में नदीम के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा हूं और यह पहली बार है कि नदीम ने जीत हासिल की है." नदीम के बारे में पूछने पर चोपड़ा ने कहा, ''वह (नदीम) एक अच्छा इंसान है, अच्छे तरीके से बोलता है, सम्मान करता है, इसलिए मुझे अच्छा लगता है.” यह भी पढ़ें : SA W vs NZ W, 2024 ICC Women’s T20 World Cup Live Telecast On DD Sports: क्या फ्री डिश पर उपलब्ध होगा न्यूज़ीलैंड बनाम दक्षिण अफ्रीका महिला टी20 विश्व कप फाइनल मैच का लाइव टेलीकास्ट? यहां जानें पूरी डिटेल्स
भालाफेंक में अपनी शुरूआत के बारे में उन्होंने कहा ,‘‘वह एक अप्रत्याशित पल था, जब मैंने इसकी शुरुआत की. मुझे इसके बारे में कुछ भी नहीं पता था. जब मैं मैदान पर गया, उस समय, यह निर्णय लिया.'' यह पूछे जाने पर कि भाला फेंकने वाले को सबसे ज्यादा किस चीज की आवश्यकता होती है , चोपड़ा ने कहा कि ताकत, सहनशक्ति, मानसिक सहनशक्ति. 2011 में पहली बार भाला उठाने वाले चोपड़ा कहा , "यह इन सभी चीजों का संयोजन है, और कोई एक चीज काम नहीं करेगी, बल्कि इन सभी चीज़ों को मिलाकर, जिसके पास सबसे अच्छी तकनीक होगी वह अच्छा प्रदर्शन करेगा.” पहले भी लखनऊ आ चुके चोपड़ा ने कहा, "मैं इससे पहले 2012 में खेलने के लिए लखनऊ आया था और तोक्यो ओलंपिक के बाद जब मुख्यमंत्री ने मुझसे आने के लिए कहा था. यह मेरा (लखनऊ का) तीसरा दौरा है."
26 वर्षीय इस खिलाडी ने कहा " पहले के लखनऊ और अब के लखनऊ में बहुत अंतर है. उस वक्त मैं काफी छोटा था और चीजें ज्यादा याद नहीं रहतीं, उस वक्त मैं ट्रेन से आया था और अब अच्छा एयरपोर्ट बन गया है, अच्छा मॉल बना है और यह पहली बार है कि मैं यात्रा करके शहर को इतना करीब से देख पा रहा हूं. मुझे बहुत अच्छा लगा.'' चोपड़ा ने लखनऊ के लालबाग इलाके में एक प्रसिद्ध आउटलेट ('शर्मा की चाय') पर चाय भी पी और लोगों के साथ सेल्फी ली. चोपड़ा ने युवाओं को सलाह देते हुए कहा, "युवाओं से मैं कहूंगा कि उन्हें शुरुआत में ही यह नहीं मान लेना चाहिए कि वे पदक जीत लेंगे. उन्हें धैर्य रखना चाहिए, क्योंकि खेल में आपका काफी समय खर्च होता है. आपके शरीर को बढ़ने के लिए समय चाहिए, आपकी मांसपेशियां अच्छे तरीके से मजबूत होंगी, धैर्य रखें और अपनी तकनीकों पर काम करें."