नयी दिल्ली, 21 अप्रैल उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि किसी विदेशी नागरिक को वीजा पाने का अधिकार नहीं है और ऐसे व्यक्ति को काली सूची में डाले जाने की स्थिति में केन्द्र द्वारा उन्हें नोटिस जारी किए जाने के बाद प्रशासन मामला-दर-मामला वीजा आवेदन पर विचार करेगा।
न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार की पीठ तमाम याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिसमें तबलीगी जमात की गतिविधियों में कथित रूप से शामिल होने को लेकर 35 देशों के कई नागरिकों की भारत यात्रा पर 10 साल के लिए प्रतिबंध लगाते हुए उन्हें कालीसूची में डाले जाने के आदेश को चुनौती दी गई है।
केन्द्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वीजा देने या उससे इंकार करने का अधिकार कार्यपालिका को है और सरकार उचित हल निकालने का प्रयास कर रही है ताकि राष्ट्रीय हित और विदेशियों के हितों की रक्षा हो सके।
कुछ विदेशी नागरिकों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सी. यू. सिंह ने कहा कि सैकड़ों विदेशी नागरिकों को कालीसूची में डाल दिया गया है और वे अगले 10 साल तक वीजा के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘हर बार जब आप आवेदन करते हैं, तो क्या आपको लगता है कि वीजा मिल जाएगा? उत्तर है ‘ना’। यह तय करना सरकार का अधिकार है। वीजा हमेशा एक तय अवधि के लिए वीजा होता है.... एक साल, दो साल या किसी तय अवधि के लिए।’’
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि वीजा देने या उससे इंकार करने के भारत के अधिकार से विदेशियों को कोई गुरेज नहीं है और समस्या यह है कि उन्हें 10 साल के लिए काली सूची में डाला गया है और यह उनपर भी लागू है जिन्हें कोविड-19 2020 के दौरान तबलीगी जमात के कार्यक्रम में शामिल होने के मामले में अदालत आरोप मुक्त या बरी कर चुकी है।
सिंह ने कहा, ‘‘हमारी प्रार्थना सिर्फ इतनी है कि वे 10 साल तक भारतीय वीजा के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं, इस प्रतिबंध (ब्लैंकेट बैन) को हटा लिया जाए।’’
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